फिल्म के प्रदर्शन को देखते हुए सिनेमा हाल पर पुलिस की पुख्ता व्यवस्था की गई थी। हिन्दू वाहिनी के प्रदेश उपाध्यक्ष एडवोकेट आईएम बालरामन, हिन्दू युवा वाहिनी के दिल्ली बाबू, करणी सेना के तमिलनाडु प्रदेशाध्यक्ष जयपालसिंह राखी, चारण गढ़वी इंटरनेशनल फाउंडेशन के रीजनल डायरेक्टर व कंट्रोलर हिंगलाजदान चारण, हिन्दू वाहिनी के तिरुवल्लूर जिलाध्यक्ष ए. कमल, भगवानसिंह, हनुमान जाट, माधवसिंह, लालसिंह, प्रेमसिंह भाटी, कमल समेत कई कार्यकर्ताओं ने प्रदर्शन में हिस्सा लिया।
बाद में पुलिस ने आठ जनों को गिरफ्तार कर लिया और शाम को रिहा कर दिया। दो दिन पहले भी इन संगठनों ने तमिल संस्कृति मंत्री पांडियराजन को मुख्यमंत्री केे नाम ज्ञापन देकर फिल्म का प्रदर्शन नहीं करने की मांग की थी।
जिस देश की आजादी के लिए संग्राम किया वहीं के अधिकारियों ने किया तिरस्कार: हाईकोर्ट
अंग्रेजी हुकूमत से देश को आजाद कराने के लिए जेल तक जाने वाले ८९ वर्षीय स्वतंत्रता सेनानी को उनकी पेंशन देने से इंकार करने पर मद्रास हाईकोर्ट ने संबंधित प्राधिकरण को जमकर लताड़ लगाई।
मामले पर सुनवाई कर रहे न्यायाधीश के. रविचंद्र बाबू ने भावुक होते हुए कहा कि उनको हुई असुविधा के लिए उन्हें खेद है। उन्होंने कहा यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि जिसे देश को आजाद कराने के लिए आपने अंग्रेजों से जंग तक लड़ी, आजादी मिलने के बाद उसी देश के अधिकारी आपको कष्ट भोगने पर मजबूर कर रहे हैं।
उन्होंने खेद प्रकट करते हुए कहा कि कभी-कभी नौकरशाही ऐसे काम करती है जिसे देख कर दुख होता है। यह कहते हुए जज ने संबंधित प्राधिकरण को आड़े हाथों लिया और दो हफ्ते के भीतर बुजुर्ग स्वतंत्रता सेनानी के घर पर जाकर उनकी पेंशन मुहैया कराने का आदेश दिया। मामले की सुनवाई के दौरान उन्होंने कहा जिस आधार पर अधिकारियों ने उनको पेंशन सुविधा देने से इंकार किया था वह उनकी समझ से परे है।
नेताजी सुभाषचंद्र बोस द्वारा शुरू की गई इंडियन नेशनल आर्मी के सदस्य रहे याची वी. गांधी ने अपने आवेदन के साथ जो साक्ष्य दस्तावेज प्रस्तुत किए हैं उनमें से एक कर्नल लक्ष्मी सहगल द्वारा प्रदान किया गया है। उन्हें यह प्रमाणत्र स्वतंत्रता संग्राम के दौरान जेल की सजा न काटने के लिए दिया गया था। इसके अलावा प्राधिकरण की ओर से भी उन्हें प्रमाणपत्र प्रदान किया जा चुका है।
न्यायमूर्ति ने टिप्पणी करते हुए कहा इससे साबित होता है कि अधिकारी अपने दायित्वों का निर्वहन किस ढंग से करते हैं। पेंशन के लिए याची ने 1९८० में याचिका लगाई थी पर उम्र समेत कुछ अन्य कारणों का हवाला देते हुए उनके आवेदन को अस्वीकार कर दिया गया था। न्यायाधीश ने कहा कि इतने महत्वपूर्ण दस्तावेज होने के बावजूद केवल उम्र के आधार पर कैसे कोई अधिकारी पेंशन सुविधा देने से इंकार कर सकता है।