चेन्नई. एमकेबी नगर जैन स्थानक में विराजित साध्वी धर्मप्रभा ने पर्यूषण पर्व के दूसरे दिन कहा कि पर्यूषण शाश्वत भी है और अशाश्वत भी। भाव की दृष्टि से शाश्वत है और काल की दृष्टि से अशाश्वत है। सत्य दिवस रूप में मनाए गए इस दिवस पर कृष्ण चरित्र का वाचन करते हुए उन्होंने कहा वे महान कर्मयोगी भी थे और ध्यानयोगी भी। उन्होंने लोकनीति और अध्यात्म का समन्वय किया। वे एक सफल राजनीतिज्ञ भी थे। नम्रता और विनय की पराकाष्ठा के दर्शन उन महान योगीश्वर के जीवन में होते हंै। समाज सुधारक, शांति दूत, ज्ञानेश्वर, अध्यात्म योगी,प्रेम की मूर्ति, उदारता जैसे कई गुणों के स्वामी थे। सााध्वी स्नेह प्रभा ने सत्य दिवस पर चर्चा करते हुए कहा कि भगवान सत्य है यह कहने के बदले ये कहना उचित होगा कि सत्य ही भगवान है। मनुष्य के धर्म की जितनी भी क्रियाएं हैं उन सबका लक्ष्य सत्य ही है। हमारी आत्मा अनादि काल से असत्य के अंधकार में फंसकर दुखी और संतप्त हो रही है। जब तक आत्मा को सत्य की रोशनी का साक्षात्कार नहीं हो जाता तब तक संसार का भ्रमण छूटने वाला नहीं है। सत्य के बिना तो जीव का कोई अस्तित्व नहीं रह जाता। सत्य से ही सूर्य तपता है और वायु बहती है। यह पृथ्वी सत्य के बल पर ही टिकी हुई है।
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अपने और परायों की पहचान कराता है दुख
चेन्नई. एसएस जैन संघ ताम्बरम में विराजित साध्वी धर्मलता ने कहा कि सुख और दुख जीवन के दो फूल हैं। हमें दुख में से सुख निकालने की कला सीखनी चाहिए। सुख का कमल भी दुख के कीचड़ में एवं गुलाब कांटों की डाल पर खिलता है। जीवन में दुख आने पर रोने से काम नहीं चलता। सुख का काम है तो दुख भी निकम्मा नहीं है। वह अपने और परायों की पहचान कराता है। वैराग्य और गुरु दुख में ही याद आते हैं। यदि दुख के सागर में सुख के मोती बंटोरने हैं तो दो शर्तो को स्वीकार करना पड़ेगा-पहली भूलना सीखो एवं दूसरा विचार को नया मोड़ दो। दूसरों पर किए उपकार को भूल जाओ। सर्दी हो जाए तो ये मत समझो कि क्षय रोग हो जाएगा। विचारों को नया रूप दो। तभी दुख में सुख मिलेगा। सुख-दुख मन के ही प्रतिबिंब हैं। मन को मोड़ देेंगे तो आनंद का सागर लहराता मिलेगा। सुख में सावधान रहें, दुख में समाधान करें। साध्वी सुप्रतिभा ने अंतगड़ सूत्र के माध्यम से देवकी के 6 पुत्रों के बारे में बताया । इस मौके पर आयोजित सांस्कृतिक कार्यक्रम में जीवन परिवर्तन विषय पर सोनिया, पायल और निधि ने प्रस्तुति दी। धर्मसभा में पारसमल, खेमचंद बोहरा और सुरेश गुंदेचा उपस्थित थे।
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चेन्नई. एसएस जैन संघ मदुरान्तकम में पर्यूषण पर्व पर पधारे स्वाध्याय संघ की स्वाध्यायी प्रेमलता बंब ने कहा शास्त्रों ने देने के भाव को श्रेष्ठ कहा है। प्रकृति के नियम भी यही कहते हैं कि जो देता है वो पाता है। जो रोकता है वो सड़ता है। देने वाले निस्वार्थ होते है, अपना सब कुछ लुटाने के बाद भी उनको आंतरिक संतुष्टि और सुख की अनुभूति होती है। देने से जो दुआएं मिलती हैं उसके सामने बड़े से बड़ा भौतिक सुख भी फीका पड़ जाता है इसलिए हमें देने का संस्कार अपने भीतर उजागर करना चाहिए और आने वाली पीढ़ी में भी इसके लिए जागरूकता बढ़ानी चाहिए। आज के समय में यह दुर्भाग्यपूर्ण सत्य है कि हम अपना उचित हिस्सा दिए बिना सामने वाले से सिर्फ लेने का कार्य करते हैं। जब आप किसी को देते हैं तो आप उसकी ही नहीं खुद की नजर में भी बड़े बन जाते हैं। विश्वास रखने वाले की झोली कभी खाली नहीं होती, प्रकृति हमेशा उसकी भरपाई करती है। संचालन संघ महामंत्री प्रफुल्ल कोटेचा ने किया।