यह अपनी बेटी की जिंदगी बचाने का कड़ा संघर्ष ही था जिससे वह नया जीवनदान दिला सका। सीसा खान पीर रोड निवासी रोडवेज से सेवानिवृत्त बुकिंग क्लर्क इकबाल अहमद की छह संतानों में सबसे छोटी बेटी फलक (17) वर्ष -2011 में जब 10वीं कक्षा में पढ़ रही थी उसे टीबी ने घेर लिया। उसका अजमेर के वक्ष एवं क्षय रोग विभाग से डॉट्स का इलाज शुरू कराया।
लेकिन छह माह का कोर्स बीच में एक महीने छोड़ देने से उसकी हालत बिगड़ गई। तब उसका दुबारा उपचार शुरू हुआ जो लगभग पांच साल तक चला। लेकिन फलक की स्थिति सुधरने की बजाय हालत बिगड़ती ही चली गई। मई-2016 में डॉक्टरों ने फलक को अजमेर से हाई सेंटर के लिए रेफर कर दिया गया। उसके बाद शुरू हुआ इकबाल अहमद का अपनी बेटी की जिंदगी बचाने का संघर्ष।
अपनी निम्न आर्थिक हालत के बावजूद इकबाल ने अपनी बेटी को कई बड़े शहरों में बड़े-बड़े डॉक्टरों को दिखाया लेकिन सभी ने मर्ज लाइलाज बता दिया। थकहार कर इकबाल ने अपनी बेटी का जीवन बचाने के लिए प्रधानमंत्री को बेटी बचाओ नारे की दुहाई देते हुए मार्मिक पत्र लिखा।
चिकित्सा एवं स्वास्थ्य विभाग से संयुक्त निदेशक पद से सेवानिवृत्त डॉ. शरदकुमार खन्ना ने इकबाल अहमद के पत्र को पीएम नरेंद्र मोदी एप पर भेज दिया। इसका तुरंत प्रभाव हुआ और प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) ने राष्ट्रीय क्षय एवं श्वसन रोग संस्थान (एनआईटीआरडी) नई दिल्ली को इकबाल की बेटी का इलाज शुरू करने के आदेश दिए।
इलाज नहीं दुआ की जरूरत एनआईटीआरडी ने बीमार फलक को भर्ती तो कर लिया लेकिन उसकी बीमारी लास्ट स्टेज तक पहुंच चुकी थी। इस स्थिति में चिकित्सकों ने कहा कि फलक के इलाज में जो दवाइयां काम आनी है वह भारत में उपलब्ध नहीं और विदेश से मंगवानी पड़ेंगी। इतनी महंगी दवाइयों का खर्च उठाना इकबाल के बूते के बाहर था। इस पर डॉक्टरों ने इकबाल को सलाह दी कि वह अपनी बेटी को घर ले जाए।
जिंदगी से कीमती नहीं दवा एनआईटीआरडी के रवैये से आहत इकबाल ने एक बार फिर पीएमओ से अपनी बेटी का जीवन बचाने की गुहार लगाई। इस पर पीएमओ ने चिकित्सकों से फलक के इलाज में काम आने वाली दवाइयों के नाम तलब किए।
प्रधानमंत्री राहत कोष के मद में व्यय से अमरीका से दवाइयां मंगवाई गई। एक गोली 7 हजार रुपए से कम नहीं थी और एक दिन में फलक को चार गोलियां देनी पड़ती थी। दवाओं ने असर दिखाया और वीआईपी ट्रीटमेंट से फलक मौत के मुंह से निकल आई।
संघर्ष ने संवारा जीवन एनआईटीआरडी में इलाज के बाद फलक की न केवल जिंदगी बच गई बल्कि उसकी हालत में अब पहले से निरंतर सुधार आता जा रहा है। अब इकबाल अपनी बेटी को महीने में एक बार दिल्ली रुटीन चैकअप के लिए ले जाते हैं।
जरूरी दवाइयां उन्हें एनआईटीआरडी से ही दी जा रही हैं। फलक का जीवन संवरने से न केवल इकबाल अहमद बल्कि उनका पूरा परिवार खुश और पीएमओ के प्रति कृतज्ञ है। उनके इस संघर्ष में महिला एवं बाल विकास राज्यमंत्री अनिता भदेल, डॉ. शरदकुमार खन्ना व पूर्व भाजपा पार्षद दलजीत सिंह सहित कई अन्य व्यक्तियों ने अपनी तरफ से भरसक सहयोग किया।
छूट गई पढ़ाई इकबाल अहमद अथक प्रयासों से अपनी बेटी का जीवन बचाने में तो सफल रहे लेकिन बीमारी के कारण उसकी पढ़ाई छूट गई। लेकिन उनका कहना हैं कि जल्द ही पूरी तरह ठीक होने पर वह उसकी पढ़ाई वापस शुरू करवाएंगे।
इकबाल अहमद की पुत्री फलक टीबी की अंतिम स्टेज पर पहुंच चुकी थी। उसे प्रधानमंत्री राहत कोष से अत्यंत महंगी बेडाक्वीलिन (सरटूरो) दी गई। इससे उसकी हालत में काफी सुधार आया। फलक का केस इस मायने में उन सभी लोगों के लिए प्रेरणादायक है कि सही दिशा में प्रयास किए जाएं तो सफलता जरूर मिलती है।
-डॉ. शरदकुमार खन्ना, पूर्व संयुक्त निदेशक चिकित्सा एवं स्वास्थ्य विभाग अजमेर