याची का कहना था कि तमिलनाडु शासन सेवा और आचरण नियम के रूल-३ की कड़ाई से अनुपालना होनी चाहिए। यह नियम कहता है कि कुछ हित की एवज में उपहारों का विनिमय नहीं होना चाहिए। न्यायाधीश एस. वैद्यनाथन और जज पीटी आशा की अवकाश पीठ ने सरकार को इस याचिका पर दो सप्ताह के भीतर जवाब देने को कहा है।
पूर्व सरकारी सेवक ने ब्रिटिश हुकूमत का हवाला दिया कि उस जमाने में अधीनस्थ अधिकारी नववर्ष की पूर्व संध्या पर अपने वरिष्ठ अफसरों को शुभकामनाएं देते थे। यह प्रथा बधाई तक सीमित थी लेकिन आजादी के बाद इसने पुष्पगुच्छ, शॉल और महंगे गहनों व स्वर्ण सिक्कों का रूप ले लिया। ऐसे महंगे उपहार वरिष्ठ अफसरों को निजी स्वार्थवश दिए जाते हैं। नियम-३ कहता है कि वरिष्ठ अधिकारियों द्वारा ऐसे उपहार लेना पूर्णत: जोखिम भरा और गलत है।
याची ने कहा कि इस संदर्भ में उन्होंने मुख्य सचिव को प्रतिवेदन भेजा था। इसके एवज में कार्मिक प्रशासन व सुधार विभाग से २१ दिसम्बर २०१८ को जवाब मिला कि वह नियम-३ को लागू कर रहा है। याची ने मद्रास हाईकोर्ट की मदुरै शाखा के निर्देश का भी संदर्भ दिया कि न्यायालय ने पुलिस महानिदेशक को सर्कुलर जारी करने का आदेश दिया था कि राज्य का कोई भी पुलिस अधिकारी उपहार स्वीकार नहीं करेगा। उसी आधार पर डीजीपी ने १२ जुलाई २०१९ को परिपत्र भी जारी कर दिया था।
याची ने निराशा जताई कि इस कानून के बाद भी सरकारी सेवक उपहार लेते हैं। इस वजह से उन्होंने ३ अक्टूबर को नई याचिका मुख्य सचिव से लगाई कि इस कुप्रथा को रोकने के निर्देश जारी किए जाएं। लेकिन उनको फिर वही जवाब मिला कि उक्त नियम की पालना हो रही है और नया शासनादेश जारी करने की आवश्यकता नहीं है। इसी वजह से उनको हाईकोर्ट की शरण लेनी पड़ी।