याची का कहना है कि तमिलनाडु हमेशा ही जल की कमी (Water scarcity) से जूझने वाला राज्य रहा है। हमारे पूर्वज जल संचयन को लेकर दूरदृष्टा थे। उन्होंने कृत्रिम जलस्रोत बनाए तथा मंदिर सरोवरों के माध्यम से अमूल्य जल का संरक्षण किया। समय बीतने के साथ इन स्रोतों पर अतिक्रमण बढ़ गया। प्रशासन भी इनकी साफ-सफाई और गहराई बढ़ाने को लेकर लापरवाह हो गया। लिहाजा न्यायालय प्राधिकारियों को रेट्टै येरी (पोरूर और कोलत्तूर), पूझल, पूण्डी, अम्बत्तूर, माधवरम, कोरटूर, चित्तलपाक्कम, शोलावरम, वेलचेरी, मोगाप्पेयर मंगल, पल्लावरम पेरीय येरी जलस्रोतों को कम से कम १० फीट और गहरा करने के निर्देश दे जो कि पर्यावरणीय मंजूरी की शर्तों के अधीन हो।
याची ने कहा नीति निर्माताओं व निर्णयकर्ताओं जिनमें मंत्री व अफसर शामिल हैं को शिक्षित किया जाए कि ताजा पानी की आपूर्ति सीमित है जबकि कई लोगों को यह लगता है कि जल की असीमित मात्रा उपलब्ध है। इस याचिका पर सुनवाई के वक्त सरकार के अपर अधिवक्ता मनोहरण ने हाईकोर्ट को बताया कि कार्पोरेट कंपनियां व सामाजिक जिम्मेदारी वाले लोगों ने जलस्रोतों को साफ और गहराने का कार्य स्वेच्छा से आरंभ कर दिया है।
चेन्नई महानगर निगम के दायरे में २२१ जलस्रोत हैं। इनकी सफाई तथा गहराई बढ़ाने के हरसंभव उपाय किए जा रहे हैं। न्यायिक बेंच ने उनकी बात स्वीकारते हुए चेन्नई कार्पोरेशन आयुक्त को जवाबी पक्ष बनाया तथा सुनवाई ४ दिसम्बर तक स्थगित कर दी।