सरकार विकल्प दे
बाजार के दुकानदारों का कहना है कि सरकार यदि प्लास्टिक उत्पादों पर रोक लगा रही है तो इसका विकल्प भी दे। जब विकल्प नहीं मिलेगा प्लास्टिक उत्पादों पर रोक लगना आसान नहीं होगा। बाजार में पुन: प्लास्टिक आने का एक अन्य कारण है सरकार और ग्रेटर चेन्नई कॉर्पोरेशन राज्य का राज्य में प्लास्टिक उत्पादों के खुले उपयोग के प्रति बेहद उदासीन होना। ऐसे में यह सवाल उठता है कि जब प्लास्टिक उत्पादों के उपयोग से हमारा जीवन प्रभावित हो रहा है तो सरकार प्लास्टिक पर प्रतिबंध के प्रति लापरवाह क्यों है?
हाईकोर्ट के आदेश के बाद लगा था प्रतिबंध
तमिलनाडु सरकार ने साल की शुरुआत में मद्रास हाईकोर्ट के निर्देश के बाद राज्य में प्लास्टिक पर प्रतिबंध लगाया था। हाईकोर्ट ने अंदेशा जताया था कि अब राज्य में प्लास्टिक उत्पादों पर प्रतिबंध नहीं लगेगा तो पर्यावरण को बहुत नुकसान होगा। हालांकि प्लास्टिक उत्पादों से जनता एवं पशुओं को होने वाले नुकसान की जानकारी कमोबेश सरकार और बुद्धिजीवियों को भी है इसके बावजूद राज्य और महानगर में प्लास्टिक उत्पादों के प्रति गंभीर नहीं है।
बढ़ती है फुटकर विक्रेताओं की परेशानी
प्लास्टिक उत्पादों पर रोक से सर्वाधिक परेशानी खुदरा एवं फुटपाथी विक्रेताओं को होती है। उनकी अपनी अलग अलग राय है। कई छोटे दुकानदारों ने प्लास्टिक थैलियों का उपयोग बंद कर दिया है जबकि अधिकांश दुकानदार इसे अभी भी छोडऩे को तैयार नहीं है। कोयम्बेडु सब्जी मार्केट के टमाटर व्यवसायी दिनेश का कहना है कि प्लास्टिक की थैलियां बेहद सस्ती हैं, ये ३० से ५० पैसे में आसानी उपलब्ध हो जाती है जबकि बाजार में कपड़े के थैले १० रुपए से कम में कहीं नहीं मिलता। एमकेबी नगर में फूल विक्रेता पार्वती का कहना है कि सरकार का प्लास्टिक प्रतिबंध सिर्फ फुटकर विक्रेताओं के लिए है, वह उन फैक्ट्रियों को बंद क्यों नहीं करती जिनमें हजारों टन प्लास्टिक की थैलियां बनती हैं। जब प्लास्टिक उत्पादन ही बंद हो जाएगा तो प्रतिबंध स्वत: लग जाएगा।
सरकार पर प्लास्टिक उत्पादकों से सांठगांठ का आरोप
फुटकर विक्रेताओं का आरोप लगाते हुए कहना है कि जब जनवरी में प्रतिबंध लगने के बाद मार्च तक प्लास्टिक का उपयोग बंद हो गया था तो फिर ऐसा क्या हुआ जो बाजार में फिर से प्लास्टिक की थैलियों का उपयोग शुरू हो गया। जाहिर है सरकार और प्लास्टिक उत्पादकों में साठगांठ है। सरकार को यदि प्लास्टिक प्रतिबंध को सफल बनाना है तो दो इसका कोई न कोई विकल्प खोजना होगा। चेन्नई सेंट्रल रेलवे स्टेशन के बाहर पुष्प विक्रेता जानकी का कहना था कि हमने तीन महीने तक प्लास्टिक की थैलियों का कतई उपयोग नहीं किया, लेकिन अचानक बाजार में सस्ती दर पर थैलियां मिलने लगी तो हमने फिर से इस्तेमाल शुरू कर दिया। प्लास्टिक की थैलियों में फूल बेचने में फायदा है।
प्रतिबंध से पहले उत्पादन बंद करना था
डीएमके कार्यकर्ता आर. भास्करण का आरोप है कि जब राज्य सरकार ने प्लास्टिक पर प्रतिबंध लगाया तो उससे पहले प्लास्टिक उत्पादक फैक्ट्रियों को बंद करना चाहिए था। जब प्लास्टिक का उत्पादन ही नहीं होता तो प्रतिबंध स्वत: लग जाता। जनवरी में प्लास्टिक को प्रतिबंधित करने के बावजूद बाजार में प्लास्टिक की थैलियों की उपलब्धि यह साबित करती है कि सरकार और गे्रटर चेन्नई कॉर्पोरेशन उत्पादकों पर पूरी तरह मेहरबान हैं।
बीमारियों का कारण है प्लास्टिक
पर्यावरणविद रविन्द्र का कहना था कि प्लास्टिक उत्पादों के इस्तेमाल से पर्यावरण का भारी नुकसान हो रहा है। इसका अतिशय उपयोग बीमारियों का कारण है। इतना ही नहीं जानवर भी इससे प्रभावित होते हैं वे खाद्य सामग्री के भरोसे प्लास्टिक खा जाते हैं जिससे वे मौत के मुुंह में चले जाते हैं। इसलिए हाईकोर्ट ने सरकार को निर्देश दिया था कि प्लास्टिक का उपयोग बंद होना चाहिए। हालांकि सरकार ने हाईकोर्ट के निर्देश का पालन तो कर दिया लेकिन इस निर्देश की जनसाधारण से पालना करने में सफल नहीं हो पाई।