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Tamilnadu पशुधन के लिए खतरा बन रहा प्लास्टिक

locationचेन्नईPublished: Sep 17, 2019 03:39:08 pm

Submitted by:

Dhannalal Sharma

प्लास्टिक की थैलियां (Plastic Carry Bag) खाने के कारण पशु कई प्रकार की घातक बीमारियों (disease) शिकार हो रहा है। ऐसे में हमें इन जानलेवा प्लास्टिक की थैलियों के इस्तेमाल (Plastic Carry Bag use) पर रोक लगानी होगी, साथ ही आसपास के लोगों को भी इसके उपयोग के भयानक परिणामों से अवगत कराना होगा। Plastic Carry Bag Problem, Chennai: Plastic Problem

Tamilnadu पशुधन के लिए खतरा बन रहा प्लास्टिक

Tamilnadu पशुधन के लिए खतरा बन रहा प्लास्टिक

चेन्नई. सिंगल यूज प्लास्टिक का अंधाधुंध इस्तेमाल पूरे देश के लिए खतरा बनता जा रहा है। सिंगल यूज प्लास्टिक न सिर्फ पर्यावरण को दूषित कर रहा है बल्कि यह कैंसर का भी सबसे बड़ा कारण है। प्लास्टिक की थैलियां खाने के कारण पशु कई प्रकार की घातक बीमारियों शिकार हो रहा है। ऐसे में हमें इन जानलेवा प्लास्टिक की थैलियों के इस्तेमाल पर रोक लगानी होगी, साथ ही आसपास के लोगों को भी इसके उपयोग के भयानक परिणामों से अवगत कराना होगा।


भूखे पशु खा जाते हैं प्लास्टिक थैलियां
जानकार बताते हैं कि सिंगल यूज प्लास्टिक को सौ साल तक नष्ट नहीं किया जा सकता। ऐसे में हमारे पशु गायें, भैंसें, बकरियां यदि इस सिंगल यूज प्लास्टिक को मारे भूख के निगल जाते हैं जिससे उनको भयानक बीमारियों से पीडि़त होने से इनकार नहीं किया जा सकता। यहां गौरतलब है कि पिछले दिनों उत्तरप्रदेश के मथुरा में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के सामने प्लास्टिक की थैलियां खाने से भयानक बीमारियों की शिकार गायों का पशु चिकित्सकों ने सफल ऑपरेशन कर इलाज किया था। ऐन वक्त पर प्रधानमंत्री ने आमजन से अपील करते हुए पशुधन को बचाने के लिए प्लास्टिक की थैलियों को त्यागने की अपील की थी।


प्रतिबंध की परवाह नहीं
चेन्नई समेत पूरे तमिलनाडु में पिछले नौ महीने से प्लास्टिक उत्पादों पर सरकारी प्रतिबंध लगा हुआ है, लेकिन इसका कोई असर नहीं है। लोग प्रतिबंध की परवाह ही नहीं करते। यह बात सड़क पर और कुड़ेदान में भरने वाले प्लास्टिक की थैलियों को देखने स्पष्ट हो जाती है। आलम यह है कि सड़क किनारे यत्र तत्र फैले कचरे के ढेर में गायें, भैंस और बकरियां प्लास्टिक चबाती नजर आती हंै।


दूध भी होता है दूषित
यह बात तो स्पष्ट है कि दुधारू पशु जैसी चीजें खाएंगे वैसा ही दूध देंगे। वही दूध जब बच्चे एवं लोग पीते हैं तो वह प्रभाव डाले बिना नहीं रह सकता। महानगर में बड़ी संख्या में गायें और भैंसें दिनभर सड़कों पर विचरण करती हैं जो सड़कों पर बिखने कचरे को खाकर अपना पेट भरती हैं। ऐसे में गाय के स्वास्थ्य के प्रति हमें गंभीर होने की आवश्यकता है। कहने को तो हम गाय की माता के रूप में पूजा करते हैं। गाय और भैंस के दूध से हमें पौष्टिक चीजें भी मिलती है, ऐसे में गायों को इस दूषित चीज को खाने से बचाने के लिए प्लास्टिक को त्यागने का संकल्पित होना चाहिए।


पशुधन को बचाने के लिए आगे आएं प्रवासी
यह जगजाहिर है कि प्रवासी राजस्थानी, गुजराती और उत्तर भारतीय जहां भी होते हैं वे गायों की सेवा के प्रति समर्पित होते हैं। बात पौधारोपण की हो या फिर स्वच्छता अभियान में हिस्सा लेने की प्रवासियों का कोई सानी नहीं है। ऐसे में प्रवासियों को पशुधन को बचाने के लिए प्लास्टिक की थैलियों के इस्तेमाल पर रोक लगाने के लिए आगे आने की जरूरत है।
चेन्नई कॉर्पोरेशन को जागना होगा
ज्ञातव्य है कि सरकारी प्रतिबंध के बाद करीबन तीन महीने तक गे्रटर चेन्नई कॉर्पोरेशन के अधिकारियों ने महानगर में प्लास्टिक उपयोग रोकने के लिए आंशिक प्रयास किया, लेकिन कुछ महीने बाद उन्होंने इस प्रतिबंध के प्रति उदासीनता बरतना शुरू कर दिया। इसका परिणाम यह हुआ कि प्लास्टिक निर्माताओं धीरे-धीरे बाजार में अपना माल उतारना शुरू कर दिया। ऐसे में आमजन को चाहिए कि वे अपने दैनिक जीवन में प्लास्टिक को त्यागते हुए ग्रेटर चेन्नई कॉर्पोरेशन से पूछें कि आखिर प्रतिबंध के बावजूद प्लास्टिक का इस्तेमाल क्यों हो रहा है?


छोटी दुकानों पर होती है कार्रवाई
एक समाजसेवी जी. दिवाकर के अनुसार तमिलनाडु में सरकार के मंत्रियों ही नहीं प्रशासनिक अधिकारियों में भी भ्रष्टाचार इस कदर बढ़ गया है कि वे इस मामले में कोई कदम नहीं उठाते। इसी कारण प्रतिबंध के बावजूद हर जगह प्लास्टिक की थैलियां मिल रही हैं। अव्वल तो प्रशासनिक अधिकारियों द्वारा कोई कार्रवाई की ही नहीं जाती है और यदि की जाती है तो छोटी दुकानदारों के यहां। कार्रवाई वहां नहीं होती जहां सिंगल यूज प्लास्टिक की थैलियां बनाई जाती है।

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