उन्होंने कहा कि एनईपी में हिन्दी और संस्कृत अनिवार्य करने का उल्लेख कहीं भी नहीं है। लेकिन यह स्वभाविक है कि सीखने में आनंद आने पर विद्यार्थी अतिरिक्त भाषा सीखने में रूचि दिखाते हैं। उन्होंने कहा राज्य में हजारों सीबीएसई पाठ्यक्रम आधारित स्कूल और मैट्रिकुलेशन स्कूल हैं जो कई भाषाओं को पहले से ही सीखाते आ रहे हैं। लेकिन सरकारी स्कूल के विद्यार्थी अतिरिक्त भाषा सीखने के अवसर से वंचित हो रहे हैं। हम स्वयं ही विद्यार्थियों को हिन्दी या कोई अन्य भाषा सीखने के अवसर से दूर कर रहे हैं। वर्ष 1962 और 2020 के समय में बहुत बदलाव आ गया है और विचार भी बदल गए हैं।
जब तमिलनाडु के विद्यार्थी अतिरिक्त भाषा के रूप में हिन्दी, कन्नण, तेलुगु और मलयालम का चयन करेंगे तो अन्य राज्य के विद्यार्थी भी तमिल का चयन करना शुरू कर देंगे। लेकिन इसका विरोध कर हम ऐसे अवसरों को नजरअंदाज कर रहे हैं। नई शिक्षा नीति 2020 में प्राथमिक विद्यालय से लेकर उच्च अध्ययन तक विश्व स्तरीय शिक्षा की परिकल्पना की गई है और इसका उद्देश्य शैक्षणिक संस्थानों में सुधार करना भी है। मातृभाषा के माध्यम से शिक्षण को दिए गए महत्व का सभी ने स्वागत किया है। एनईपी सिर्फ तमिलनाडु के लिए ही नहीं बल्कि पूरे देश के लिए है।