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आदि काल से मनाया जाता है प्रकृति को समर्पित यह पर्व

locationचेन्नईPublished: Jan 07, 2020 06:28:25 pm

Submitted by:

MAGAN DARMOLA

चार दिनों तक चलने वाले इस पर्व के चार पोंगल होते हैं भोगी, सूर्य, माट्टू और काणू पोंगल। अलग अलग नाम से मनाये जाने चारों pongal का अलग अलग महत्व है।

प्रकृति को समर्पित यह पर्व मनाया जाता है आदि काल से

प्रकृति को समर्पित यह पर्व मनाया जाता है आदि काल से

चेन्नई. तमिलनाडु में मनाया जाने वाला एक प्रमुख पर्व है पोंगल । प्रकृति को समर्पित यह त्योहार फसलों की कटाई के बाद आदि काल से मनाया जा रहा है। चार दिनों तक चलने वाले इस पर्व के चार पोंगल होते हैं भोगी, सूर्य, माट्टू और काणू पोंगल। पोंगल त्यौहार नजदीक आते ही मीठी पोंगल बनाने के लिए उपयोग में लाए जाने वाले मिट्टी के घड़ों की महानगर में मांग बढ गई है। पोंगल का वास्तविक अर्थ होता है उबालना। इस पर्व पर अक्सर मिट्टी के घड़ों व अन्य बर्तनों में गुड़ व चावल से बने व्यंजनों का प्रसाद सूर्य को सूर्य को चढाया जाता है। गन्ने का भी इस पर्व में अपना खास महत्व होता है।

प्रकृति को समर्पित यह पर्व मनाया जाता है आदि काल से

तमिलनाडु में राज्य सरकार की ओर से पोंगल पर उपहार देने की योजना भी चलाई जा रही है। सरकार की ओर से गरीबों और राशनकार्ड धारियों को पोंगल का उपहार दिया जाता है। मुख्यमंत्री एडपाडी के. पलनीस्वामी द्वारा इस वर्ष पोंगल पर्व पर राज्य के 2 करोड़ 5 लाख परिवारों को 2245 करोड़ रुपए की लागत से पोंगल गिफ्ट वितरित करने की शुरुआत हो चुकी है। उपहार में एक किलो चावल, एक किलो चीनी, 20 ग्राम किशमिश, 20 ग्राम बादाम, 5 ग्राम इलायची, दो फिट ईख का टुकड़ा एवं एक हजार रुपए आदि दिए जा रहे हैं। वल्लुवरकोट्टम के पास दुकान पर इन दिनों मिट्टी के घड़ों को सजाया जा रहा है।

पोंगल का खास महत्व

 

प्रकृति को समर्पित यह पर्व मनाया जाता है आदि काल से

भोगी पोंगल के दिन अच्छी बारिश और अच्छी फसल के लिए इंद्रदेव की पूजा की जाती है। सूर्य पोंगल के अवसर पर दूसरे दिन सूर्य की पूजा की जाती है। इसके तहत नए मिट्टी के घड़ों या अन्य नए बर्तन में नए चावल, मूंग की दाल, गन्ना आदि पूजन सामग्री डालकर प्रसाद बनाया जाता है। इस प्रसाद को सूर्य के प्रकाश में ही बनाया जाता है। तीसरे दिन माट्टू पोंगल होता है। इस दिन भगवान शिवजी के बैल नंदी की पूजा की जाती है। इसको लेकर मान्यता है कि शिव जी के प्रमुख गणों में से एक नंदी से एक बार कोई भूल हो गई तो उस भूल के लिए भगवान शिव ने उसे बैल बनकर पृथ्वी पर जाकर मनुष्यों की सहायता करने को कहा। उसी की याद में माट्टू पोंगल के रूप में यह पर्व मनाया जाता है। चौथे दिन मनाए जाने वाले काणू पोंगल के दिन अपने परिजनों के साथ किसी पर्यटन स्थल पर जाकर पूजा करती हैं।

उत्तर भारत में यह पर्व मकर संक्रांति के रूप में मनाया जाता है। मकर संक्रांति के दिन से ही सूर्य की उत्तरायण गति भी प्रारम्भ होती है। इसलिए इस पर्व को उत्तरायणी के नाम से भी जाना जाता है। कर्नाटक, केरल तथा आंध्र प्रदेश में इसे केवल संक्रांति कहते हैं।

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