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परिग्रह अधिकार है तो संग्रह बांटने की कला

locationचेन्नईPublished: Sep 11, 2018 11:52:10 am

Submitted by:

PURUSHOTTAM REDDY

परिग्रह दीवार है तो संग्रह द्वार। परिग्रह बाधा है तो संग्रह समाधान। परिग्रह अधिकार है तो संग्रह बांटने की कला। अपने अधिकारों की एक सीमा बनाएं और उसके बाद उनको त्याग दें। परिग्रह लोभ है और मोक्ष मार्ग में बाधक है, यह चौथा कषाय है।

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परिग्रह अधिकार है तो संग्रह बांटने की कला

चेन्नई. पुरुषवाक्कम स्थित एएमकेएम में विराजित उपाध्याय प्रवर प्रवीणऋषि ने कहा जीवन में संग्रह करना पाप नहीं है लेकिन संग्रह किए हुए धन पर अपना अधिकार जमाए रखना परिग्रह व पाप है। इस दुनिया में संग्रह पर अधिकार की ही समस्त लड़ाई है। परमात्मा कहते हैं कि यदि खुला आसमान चाहिए तो परिग्रह व अपने अधिकार छोड़ें। मृत्यु के बाद छूटे उससे पहले अपने अधिकारों को छोडऩे वाला मोक्ष का अधिकारी बनता है।
संग्रह करने का जिसके पास सामथ्र्य है उसे अपनी योग्यता का पूरा उपयोग करते हुए जितना कर सकते हो उतनी ज्यादा कमाई करनी चाहिए और साथ-साथ धर्म कार्य करें एवं पुन: बांटना भी चाहिए। धर्म में संग्रह की मनाही नहीं है लेकिन परिग्रह की अनुमति नहीं है। अपने मन, वचन और काया में बिखराव न रखें, ये संग्रहित और केन्द्रित होने चाहिए। संग्रह करके बांटने वाला साधु होता है, यह महाव्रत है। मधुमक्खी के संग्रह से ही मधु बनता है।
परिग्रह दीवार है तो संग्रह द्वार। परिग्रह बाधा है तो संग्रह समाधान। परिग्रह अधिकार है तो संग्रह बांटने की कला। अपने अधिकारों की एक सीमा बनाएं और उसके बाद उनको त्याग दें। परिग्रह लोभ है और मोक्ष मार्ग में बाधक है, यह चौथा कषाय है। यह छूटते ही सारे कषाय स्वत: ही जल जाते हैं। यदि हम दान भी करें तो उस पर अपना अधिकार न रखें। देव, गुरु, धर्म के प्रति अपने दान पर अपने अधिकार का बोर्ड न लगाएं, उसे प्रचारित न करें यही अधिकार का त्याग है। लिया हुआ कभी भूलो मत और दिया हुआ बोलो मत। नदी स्वयं में अनेक स्रोतों का जल संग्रह करती है लेकिन स्वयं के पास नहीं रखती तो उसका जल मीठा रहता है और समुद्र जल का परिग्रह करता है तो उसका जल खारा होता है।
शरीर से ही नहीं, मन और भावना से भी तप करें। बाह्य तप के साथ अभ्यन्तर तप होना चाहिए। तप में पापों का प्रायश्चित, विनय और स्वाध्याय करें समाधि में रहें।
उत्तम पुरुषों की सोच भी उत्तम ही होती है। जो जीव की चरम-सीमा तक श्रीकृष्ण की भांति नियति से लड़ता है और घटनाओं को टालने में पुरुषार्थ करता है, वह अपने कर्मों की निर्जरा करता है और दूसरों के भी पापों के बंधन रोकता है। परिस्थितियों के आगे समर्पण कभी न करें। पुरुषार्थ छोडऩे वाले चेतन नहीं रहते वे जड़ हो जाते हैं। परमात्मा कहते हैं कि पुरुषार्थ करना धर्म है।
तीर्थेशऋषि ने अंतगड़ सूत्र वाचन किया। १२ सितम्बर को प्रवर्तक पन्नालाल की जन्म जयंती मनाई जाएगी एवं १५ सितम्बर को नवपद एकासन का कार्यक्रम होगा।
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