विषम परिस्थितियों में भी डाक बांटना फर्ज
विरुगमबाक्कम में डाक बांटने आए डाकिये कार्तिक ने बताया कि उनके पास विरुगम्बाक्कम के कुछ इलाके हैं। कुछ दिन पूर्व चेन्नई में कोरोना संक्रमण के मामले 7 हजार के पार पहुंच गए थे, तब कई गलियों में कोरोना के मामले 50 से अधिक मरीज थे जिससे उन गलियों को कंटेनमेंट जोन घोषित कर दिया गया था। इसके बावजूद कभी कभी आवश्यकता पडऩे पर उन्हें डाक बांटने जाना पड़ता था। ये उनकी ड्यूटी में शामिल है, ऐसी परिस्थिति में सरकार का सभी को साथ देना चाहिए।
जोखिम तो है लेकिन देश सेवा सर्वोपरि
माधवरम इलाके में डाक बांटने वाले मुरुगन का कहना है कि सालों से वे डाक विभाग की नौकरी कर रहे है लेकिन ऐसी स्थिति जीवन में पहली बार देखी है। पहले बेफिक्र होकर लोगों के घर जाते थे, लेकिन अब माहौल बदल चुका है। हम जब लोगों के घर डाक लेकर जाते हंै तो उनके चेहरे पर खुशी तो होती है लेकिन संदेह भी होता है कि वे कोरोना के चपेट में ना आ जाए। मुरुगन उच्चाधिकारियों के निर्देशों का पालन करते हैं। वर्तमान में डाक बांटना ही सबसे मुश्किल का काम है, क्योंकि उन्हें इस काम के लिए घर घर जाना पड़ता है।
लोगों में कोरोना को लेकर संकोच
एक अन्य डाकिया का कहना है कि कोरोना के संक्रमण का खौफ इस कदर बढ़ चुका है कि डाकिया से डाक लेने से भी लोग बच रहे है। कई लोग डाक लेने से ही इनकार कर रहे हैं तो वहीं कुछ लोग डाक गेट के नीचे से सरकाने को कह रहे हैं तो कुछ बाउंड्री में फेंकने को। बाउंड्री के भीतर आई डाक सेनिटाइज कर उठा रहे हैं। वहीं रजिस्टर्ड डाक रिसीव करने के बाद पेन बाहर फेंकने वाले भी हैं। कुछ लोग घर के एक कोने में डाक डालकर कई दिनों तक छोड़ देते हैं, अगली बार उनके घर डाक लेकर जाने पर वे ये अनुभव साझा करते हंै।
एक वरिष्ठ नागरिक तंबीदुरै का कहना है कि डाकिया पहले संदेश लेकर आते थे तो खुशियों की लहर दौड़ जाती थी। समय के साथ पहले कोरियर फिर ऑनलाइन ने डाकिया की जगह ले ली। वहीं कोरोना काल में डाकियों की सेवा ने एक बार फिर से खुशियों की सौगात दी है। कोरोना काल में भी डाकिया कर्तव्य में जुटे रहे।