मुनि सुधाकर ने जैन स्थानक में प्रवचन करते हुए आगे कहा समय परिवर्तनशील है किसी के जीवन में एक जैसी परिस्थितियां नहीं रहती है। उत्थान पतन वह सुख-दुख की लहरें उठती रहती हैं। धर्म ग्रंथों में बतलाया है हमें अनुकूल और प्रतिकूल दोनों क्षणों में यह भी सदा नहीं रहेगा का मंत्र याद रखना चाहिए। सुख में सोचें यह भी सदा नहीं रहेगा इसीलिए अभिमान करना भूल है। दुख में सोचें सुख सदा नहीं रहा तो दुख भी सदा नहीं रहेगा। इस विचार से निराशा की लहर दूर हो जाएगी। मनुष्य जितना बीमारी से बीमार नहीं होता है उतना बीमारी का बार बार स्मरण करने से होता है। किसी भी बीमारी और समस्या को दिमाग पर हावी नहीं होने दें। इससे शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक स्वास्थ्य की प्राप्ति होगी ।
मुनि दीप कुमार ने स्वाध्याय विषय पर प्रवचन करते हुए कहा धार्मिक स्वाध्याय से अपने स्वरूप की सही पहचान संभव है। आज का मानव संसार के सूक्ष्म रहस्यों को पहचानने में सफल हुआ है। आकाश के ग्रह नक्षत्रों से संपर्क बना रहा है तथा समुद्र की गहराई का अवगाहन कर रहा है पर अपने आध्यात्मिक स्वरूप से दूर हो रहा है। इसके बिना बाहर का सारा ज्ञान बंधन और पतन का कारण है। स्वाध्याय के द्वारा हम स्वयं को जानने और समझने में सफल हो सकते हैं।
मुनि ने कहा ज्ञान की परंपरा को विकसित और समृद्ध रखने के लिए स्वाध्याय जरूरी है। स्वाध्याय से आत्मिक ज्ञान वह आत्मिक संतुष्टि की प्राप्ति होती है। इस अवसर पर अच्छी संख्या में श्रावक-श्राविकाओं ने प्रवचन का लाभ लिया।
तेरापंथ सभा के मंत्री गजराज बरडिया ने बताया कि मुनि के सान्निध्य में धर्म प्रभावना का अद्भुत रंग खिल रहा है। प्रतिदिन प्रात: कालीन व रात्रि कालीन प्रवचन में अच्छी उपस्थिति रहती है। दोपहर में तत्व चर्चा का कार्यक्रम होता है। वह धार्मिक सद्भावना का अद्भुत वातावरण देखने को मिल रहा है।