उन्होंने कहा कि दक्षिण भारत हिन्दी प्रचार सभा जैसे संस्थानों ने देश की एकता और सौहार्द की नींव को मजबूत बनाया है। सभा ने लगभग 20 हजार सक्रिय प्रचारकों का नेटवर्क विकसित किया है। राष्ट्रपति ने कहा कि हर भारतीय को अपनी खुद की भाषा के अलावा एक भारतीय भाषा सीखने की कोशिश करनी चाहिए। जब एक हिंदी भाषी युवा तमिल, तेलुगू, मलयालम या कन्नड़ सीखता है, तो उसे एक बहुत समृद्ध परंपरा के साथ पेश करता है। यह जानकारी प्रत्येक व्यक्ति के लिए नए अवसर पैदा कर सकता है। ‘दक्षिण भारत हिन्दी प्रचार सभाÓ द्वारा अन्य भाषा-भाषियों के लिए हिन्दी की परीक्षा आयोजित की जाती है। वर्ष 2017-18 के दौरान ऐसे परीक्षार्थियों की संख्या साढ़े आठ लाख से भी अधिक हो गई है। इस सभा के प्रयासों से, अब तक लगभग दो करोड़ छात्र लाभान्वित हो चुके हैं। सभा के स्नातकोत्तर और शोध संस्थान द्वारा लगभग 6 हजार व्यक्तियों को पी.एच.डी., डी-लिट और अन्य प्रमाण पत्र प्रदान किए जा चुके हैं। सभा द्वारा अनेक कॉलेजों के माध्यम से, हिन्दी शिक्षकों को प्रशिक्षण दिया जाता है। सभा के ‘राष्ट्रीय हिन्दी शोध पुस्तकालयÓ में हिन्दी साहित्य की एक लाख से भी अधिक पुस्तकें हैं। इस प्रकार, ‘दक्षिण भारत हिन्दी प्रचार सभाÓ ने एक ऐसा आदर्श प्रस्तुत किया है, जिसका अनुकरण देश के सभी क्षेत्रों में होना चाहिए।
उन्होंने कहा कि अपनी मातृभाषा के अलावा, अन्य भारतीय भाषाएं सीखकर हम भारतीय भाषाओं की शक्ति का बहुआयामी उपयोग कर सकेंगे। ‘दक्षिण भारत हिन्दी प्रचार सभाÓ इसी दिशा में लोगों को आगे बढ़ा रही है। दक्षिण भारत हिन्दी प्रचार सभाÓ की तर्ज पर अन्य भारतीय भाषाओं के लिए भी ऐसी सभाओं की शुरुआत होनी चाहिए। ऐसी पहल करने से ‘दक्षिण भारत हिन्दी प्रचार सभाÓ के इतिहास में एक नया अध्याय जुड़ेगा। इस पहल को सबकी सहायता प्राप्त होगी और इस तरह हम महात्मा गांधी के सपनों को साकार कर सकेंगे।
उन्होंने राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की प्रेरणा और मार्गदर्शन में स्थापित की गई इस संस्था द्वारा वर्ष 2018 में हिन्दी की सेवा के 100 वर्ष पूरा करने के लिए दक्षिण भारत हिन्दी प्रचार सभा से जुड़े सभी लोगों को बधाई दी। उन्होंने कहा कि महात्मा गांधी के बाद भारत के प्रथम राष्ट्रपति भारत-रत्न, डॉ. राजेन्द्र प्रसाद ने इस सभा के अध्यक्ष का पद संभाला था। इस मौके पर सभा के अध्यक्ष शिवराज पाटिल तथा उपाध्यक्ष के.एच. हनुमन्तप्पा उपस्थित थे।