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यहां क्षेत्रीय दलों के आगे राष्ट्रीय पार्टियां फीकी

locationचेन्नईPublished: Jul 23, 2020 08:27:28 pm

तमिलनाडु की राजनीति में कांग्रेस को सहारे की दरकार

regional parties

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चेन्नई. मध्यप्रदेश में कांग्रेस के सरकार गंवाने के बाद राजस्थान में इन दिनों कांग्रेस पर संकट के बादल मंडरा रहे हैं लेकिन बात यदि तमिलनाडु की की जाए तो यहां 1967 के बाद से कांग्रेस सत्ता पर काबिज ही नहीं हो पाई है। मौजूदा समय में दो क्षेत्रीय दलों डीएमके व एआईएडीएमके का ही यहां दबदबा कायम है।
कभी कांग्रेस थी मजबूत
एक दौर में तमिलनाडु में कांग्रेस एक मजबूत पार्टी के रूप में थी। के. कामराज जैसे नेता तीन बार तमिलनाडु के मुख्यमंत्री रहे। तमिलनाडु में कांग्रेस ने 1967 में सत्ता गंवा दी थी उसके बाद से प्रदेश में डीएमके या एआईएडीएमके ही सत्ता पर काबिज रहती आई है। देश में चल रही मिड डे मील व निशुल्क शिक्षा की नींव कामराज की ही देन है। कामराज सरकार के बाद कांग्रेस प्रदेश में कभी सत्ता में नहीं आ सकी। तमिलनाडु प्रदेश कांग्रेस में लंबे समय से फूट है। अक्सर तमिलनाडु प्रदेश अध्यक्ष पर सहमति नहीं बन पाती और आलाकमान को दखल देना पड़ता है। पिछले पांच-छह साल में ही तमिलनाडु में भी कई बड़े नेता कांग्रेस छोड़कर जा चुके हैं। इससे भी पार्टी कमजोर हुई है।
वासन व नटराजन ने भी किया था किनारा
पूर्व केन्द्रीय मंत्री जी.के. वासन ने नवम्बर 2014 में कांग्रेस छोड़ दी थी। उनके पिता जी.के. मूपनार कांग्रेस के बड़े नेता रहे हैं। जी.के. वासन ने आरोप लगाया था कि कांग्रेस की राज्य इकाई में उनकी लगातार उपेक्षा हो रही थी। बाद में उन्होंने देशिय तमिल मनिला कांग्रेस की स्थापना की। पूर्व केन्द्रीय मंत्री जयंती नटराजन ने भी 30 जनवरी 2015 को कांग्रेस छोड़ दी थी। वे तमिलनाडु से तीन बार राज्यसभा सदस्य रही। नटराजन का परिवार 1960 से कांग्रेस से जुड़ा था। उनके दादा भक्तवत्सलम तमिलनाडु में कांग्रेस के मुख्यमंत्री रहे। नब्बे के दशक में पी.वी. नरसिंह राव से भी नाराज होकर एक बार नटराजन ने पार्टी छोड़ी थी। उस समय तमिलनाडु के कई कांग्रेस नेताओं ने भी कांग्रेस छोड़ी थी। हालांकि बाद में राव के पद से हटने पर नजराटन फिर से कांग्रेस में शामिल हो गई थी।
साठ के दशक में उभरी डीएमके
साठ के दशक में हिंदी के खिलाफ हुए आन्दोलन में डीएमके मजबूत दल के रूप में उभरी। 1967 में डीएमके ने तमिलनाडु से कांग्रेस का सफाया कर दिया था। उसके बाद तमिलनाडु में कभी डीएमके तो कभी एआईएडीएमके सत्ता का स्वाद चखती रही है। केन्द्र के गठन में भी इन क्षेत्रीय दलों की अहम भूमिका रही है। डीएमके व एआईएडीएमके के अलावा कई अन्य क्षेत्रीय दल भी उभरे लेकिन वे केवल क्षेत्र विशेष तक ही सीमित रहे। इनमें पीएमके, वीसीके, डीएमडीके एवंं एमडीएमके प्रमुख हैं।
कांग्रेस में अकेली लडऩे की ताकत नहीं
2019 में लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने तमिलनाडु में डीएमके से गठबंधन किया था और आठ सीटें जीती और करीब 12 फीसदी वोट मिले जबकि 2014 में कांग्रेस ने तमिलनाडु में अकेले चुनाव लड़ा था तब उसे केवल 4.3 प्रतिशत वोट ही मिल पाए।
बीजेपी का वजूद नहीं
उधर तमिलनाडु में बीजेपी का वजूद तो कभी रहा ही नहीं। मोदी की तमाम कोशिशें भी यहां फेल रही। आज भी बीजेपी यहां मृतप्राय ही है। लाख कोशिश के बावजूद यहां खुद को स्थापित नहीं कर पा रही है। कुछ पूर्व अध्यक्षों को केन्द्रीय नेतृत्व ने जरूर उपकृत किया है। तमिलनाडु भाजपा के अध्यक्ष रहे एल. गणेशन को मध्यप्रदेश से राज्यसभा में भेजा था तो पूर्व अध्यक्ष तमिलइसै सौंदरराजन को तेलंगाना का राज्यपाल बना दिया। 2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी को गठबंधन के तहत पांच सीटें मिली लेकिन सभी सीटों पर हार का मुंह देखना पड़ा जबकि 2014 में भाजपा एक सीट जीत पाई।

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