जिसकी अन्तरात्मा में उजाला है उसमें कभी अंधकार हो ही नहीं सकता। सजा देने और प्रायश्चित दोनों में अन्तर है। प्रायश्चित में शुद्धिकरण होता है और सजा में दण्ड दिया जाता है। प्रायश्चित प्रार्थना से मिलता है और सजा या पनिशमेंट अपराध सिद्ध हो जाने पर मिलती है। प्रायश्चित करने और देने वालों में आपसी प्रेम बना रहता है और दण्ड या सजा देने पर आपस में वैर-दुश्मनी पनपती है। इसलिए अपने किए गए पापों के लिए कभी स्वयं को अपराधी बनाकर दंड न दें बल्कि उसका प्रायश्चित करें जो आपका जन्म-जन्मांतर सुधारकर कर्मों की निर्जरा करता है। जो भी क्रिया की जाती है उससे बंध तो होता ही है लेकिन वह पाप का है या पुण्य का यह भावों पर निर्भर करता है। इसलिए क्रिया करते समय भावों का ध्यान रखकर इस हिंसा बच सकते हैं।
जो व्यक्ति भाव और क्रिया दोनों के विवेक में समान रहता है वह प्रभु बन जाता है, उसके भीतर का पूरा स्ट्रक्चर बदल जाता है। जोर से बोलने, किसी वस्तु को यूंही फेंकने से कोमल स्पर्श के वायुकाय की हिंसा होती है। इसीलिए परमात्मा ने किसी वस्तु को धीरे से रखने या छोडऩे को कहा है, उन्होंने फेंकने का तो शब्द ही इस्तेमाल नहीं किया। ऐसी सजगता यदि आपमें आ जाए तो अपाप की साधना हो जाएगी। यदि क्रिया करने से पहले उसके परिणाम का चिंतन कर लिया जाए तो पाप और हिंसा से बचा जा सकता है।
तीर्थेशऋषि ने कहा मनुष्य को अपने उपकारियों को कभी नहीं भूलना चाहिए। मनुष्य जीवन पर सबसे बड़ा उपकार या ऋण उसके माता-पिता का होता है। यदि व्यक्ति चाहे तो अपने माता-पिता को धर्म का आलम्बन देकर इस ऋण को भी उतार सकता है। इसलिए कम से कम अंतिम समय में तो धर्म की शरण में ले जाकर उनकी गति सुधारने का प्रयास करना चाहिए। इस मौके पर चातुर्मास समिति की ओर से कांता चोरडिय़ा द्वारा तपस्यार्थी का बहुमान किया गया।
विकास के लिए लक्ष्य निर्धारित करें : आचार्य महाश्रमण
माधवरम में जैन तेरापंथ नगर स्थित महाश्रमण सभागार में आचार्य महाश्रमण ने कहा आज का दिन आचार्य तुलसी का पट्टोत्सव का दिन है जो विकास महोत्सव के रूप में मनाया जा रहा है। वर्षों तक आचार्य तुलसी का पट्टोत्सव मनाया गया।
जब दिल्ली में आचार्य ने अपना पट्टोत्सव इसलिए मनाने से मना कर दिया कि वे आचार्य पद का विसर्जन कर चुके थे। तब वर्तमान आचार्य महाप्रज्ञ ने गुरुदेव तुलसी के पट्टोत्सव को विकास महोत्सव के रूप में मनाए जाने की बात कही और उसके आधार के रूप में एक पत्रावली भी बनाई जो इसका आधार है। आचार्य ने कहा केवल विकास दिवस मनाने से ही कुछ नहीं होता, विकास कार्यों की समीक्षा भी होनी चाहिए। विकास करने के लिए पहले लक्ष्य निर्धारित कर लिया जाए तो उस दिशा में अच्छी गति की जा सकती है। चारित्रात्माएं, समण श्रेणी, श्रावक-श्राविकाओं और संस्थाओं का निरंतर विकास होना चाहिए। इस दृष्टि से कोई दे तो वह बहुत बड़ी सेवा होती है। आचार्य भिक्षु ने एक बीज बोया जिसका विकास हुआ है। सभी पूर्ववर्ती आचार्यों ने इसके विकास का प्रयास किया है।
इस अवसर पर उन्होंनेे स्वरचित गीत ‘साधना पथ पर बढ़े संकल्प द्वारा’ गीत का चतुर्विध संगान किया। साध्वीप्रमुखा ने अपने उद्बोधन में कहा आज का दिन विकास के नए युग में प्रवेश का दिन है। इस महोत्सव का उद्भव अस्वीकार्य की स्थिति से हुआ। तेरापंथ विकासशील धर्मसंघ है। तेरापंथ महिला मंडल ने गीत का संगान किया। विकास परिषद के सदस्य मांगीलाल सेठिया व पदमचंद पटावरी ने विचार व्यक्त किए।