हिन्दी भाषा लोगों के लिए एक चुनौती बनती जा रही है। यहां पढऩे और पढ़ाने वाले दोनों ही हिन्दी को चाहते हुए भी कई बाधाओं का सामना कर रहे हैं। लोग दिल से तो हिन्दी भाषा को चाहते हैं लेकिन लोगों के सामने उसे बोलने और अपना मानने में कतराते हैं जिसका सबसे बड़ा प्रभाव राजनीति और पाश्चात्य संस्कृति दोनों का ही है। हिन्दी अध्यापकों को कई और विषय पढ़ाने के लिए बाध्य किया जाता है जिससे वे अपने विषय से न्याय नहीं कर पाते। इसका सबसे बड़ा परिणाम यह है कि आज हिन्दी अध्यापक ही हिन्दी में नहीं बोल पाता क्योंकि उस एक ही अध्यापक को कई और विषय अंग्रेजी में पढ़ाने के लिए बाध्य किया जाता है। मेरा विचार है कि हिन्दी हो या कोई और भाषा उसकी नैसर्गिकता मरने नहीं देनी चाहिए और उसे वैसे ही प्रेम करें जैसी वह है।
हिन्दी विभागाध्यक्ष
श्री एस.एस. शासुन जैन महिला महाविद्यालय
टी.नगर, चेन्नई
शिक्षा सदैव मनुष्य को सुसंस्कारित करती है। उसे समाज में सिर उठाकर जीने की प्रेरणा देती है। जैसा कि सर्वविदित है आधुनिक शिक्षा एवं शिक्षक दोनों की जिम्मेदारियां बढ़ गई है। आज के इस इंटरनेट क्रांति के युग में छात्रों को क्लास रूम में बिठा पाना अत्यन्त ही कठिन हो गया है, आज समाज जिस राह से गुजर रहा है उसमें फिर से नैतिक शिक्षा का महत्व बढ़ गया है। शिक्षक सदैव अपने छात्र में चरित्र निर्माण, अनुशासन और आगे बढऩे एवं संघर्ष करने की क्षमता विकसित करना चाहता है परन्तु आज के व्यवसायीकरण के इस युग में शिक्षा एक बड़े व्यवसाय के रूप में उभर रही है परन्तु मेरा यह मानना है कि अच्छी एवं गुणवत्ता पूर्ण शिक्षा पर भारत के प्रत्येक छात्र का अधिकार होना चाहिए। शिक्षक समाज की वह धुरी है जिसके चारों तरफ समस्त समाज पहिए की तरह चलता है, बिना स्वार्थ के छात्रों को समाज का एक अच्छा नागरिक बनाना किसी भी शिक्षक का प्रथम एवं अंतिम उद्देश्य होता है। छात्र की सफलता या असफलता में शिक्षक की सफलता एवं असफलता छिपी होती है। गुरु ज्ञान ही नहीं वरन मान सम्मान भी दिलाता है।
डा.मनोज सिंह
हिन्दी विभागाध्यक्ष
डीजी वैष्णव कालेज
जीवन की संपूर्णता को हासिल करने की दिशा में आगे बढने के लिए हमारा पथ आलोकित करने वाला ही शिक्षक है। जो शिक्षक विद्यार्थियों की हर प्रकार की गलतियों को क्षमा कर उनकी कमजोरियों को समझ व दूर कर विद्यार्थियों को जीवन के उच्च शिखर तक पहुंचाने में मदद करता है वही एक सच्चा और त्यागी शिक्षक है। जिन्हें विद्यार्थी अपने जीवन के एक प्रेरणास्त्रोत के रूप में देखते हैं। हिन्दी भारत में सबसे ज्यादा बोली जाने वाली भाषाओं में से एक है। आज हिन्दी का प्रचार-प्रसार दक्षिण भारत में भी अधिक मात्रा में हो रहा है। राजनीतिक षडयंत्रों को पीछे छोड़ते हुए आज तमिलनाडु में हिन्दी उन्नति की ओर है। छात्र हिन्दी सीखने में अधिक रुचि दिखा रहे हैं। हिन्दी का प्रोत्साहन करने के लिए तमिलनाडु के अधिकतर विद्यालयों एवं महाविद्यालयों में हिन्दी भाषा में प्रतियोगिताओं, संगोष्ठियों का आयोजन किया जा रहा है। हिन्दी भाषा के महत्व को निर्धारित करने के लिए पूरे देश में 14 सिंतबर को हिन्दी दिवस मनाया जाता है।
डा.के.प्रिया नायडू, सहायक प्रोफेसर हिन्दी भाषा विभाग, वुमेन्स क्रिस्चयन कॉलेज
साहित्य के साथ-साथ आज हिंदी रोजगार की भी भाषा बन चुकी है। यही कारण है कि भाषाई राजनीति के चलते जहां एक तरफ यहां के सरकारी विद्यालयों से हिंदी निकाल दी गई है वहीं हिंदी सीखने के प्रति लोगों का भारी रुझान को देखते हुए निजी विद्यालयों में हिंदी खूब पढ़ाई जा रही। हालांकि यहां दो तरह के हिंदी शिक्षक काम कर रहे हैं एक वे जो यहीं के रहने वाले हैं और दूसरे वे जो हिंदी भाषी क्षेत्रों से आए हैं। बाहर से आने वाले हिंदी अध्यापकों को शुरुआती दौर में यहां हिंदी पढ़ाने में कुछ दिक्कत होती है लेकिन इससे हिंदी शिक्षण में कोई अवरोध उत्पन्न नहीं होता। अहिंदी भाषी क्षेत्र में हिंदी पढ़ाने का अपना एक अलग अनुभव होता है। समय के साथ अब हिंदी सीखने और सिखाने वाले दोनों की संख्या में तेजी से वृद्धि हो रही है।
टीजीटी हिन्दी, केंद्रीय विद्यालय अशोक नगर
तमिलनाडु जैसे अहिंदी भाषी क्षेत्र में हिंदी पढ़ाना जटिल जरूर है लेकिन उसका अपना एक अलग आनंद है। अधिकांश विद्यालयों में अंग्रेजी माध्यम से हिंदी शिक्षण किए जाने के कारण जहां एक तरफ विद्यार्थियों को भाषा का सही ज्ञान नहीं हो पाता है वहीं अध्यापकों को भी कई तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ता है। अंग्रेजी की बैसाखी के सहारे हिंदी सीखने वाले अधिकांश बच्चे परीक्षा में भले पास हो जाते हैं लेकिन हिंदी बोल नहीं पाते हैं।
एन.विजय लक्ष्मी, अध्यक्ष