script

आत्मसाधना का माध्यम है अनुष्ठान

locationचेन्नईPublished: Oct 05, 2018 01:35:25 pm

Submitted by:

Ritesh Ranjan

अनुष्ठान आत्म साधना का माध्यम है, अनुष्ठान एक औषध, संजीवनी बूटी और कर्म निर्जरा करने का साधन है।

meditation,soul,self,ritual,

आत्मसाधना का माध्यम है अनुष्ठान

जो हमारे गुरूर को मिटा दे वही गुरु
चेन्नई. ताम्बरम जैन स्थानक में विराजित साध्वी धर्मलता ने कहा कि अरिहंत और सिद्ध के ज्ञान की आपूर्ति करने वाले होते हैं आचार्य, उपप्रर्वतक, साधु और साध्वी। गुरु हमारे पथ प्रदर्शक हंै। गुरु नहीं तो जीवन शुरू ही नहीं। जो हमारे गुरूर को मिटा दे वो है गुरु। गुरुवर तो समान रूप से ज्ञान देते हैं मगर ग्रहण करने वाले का अलग अलग नजरिया रहता है। उमेशमुनि ने भी 1954 में संयम अंगीकार करके सभी को ज्ञान का दान दिया। उन्होंने आगम का अनुवाद करके संघ को बहुत बड़ी उपलब्धि दी। उनकी कथनी और करनी समान थी। वे जहां भी गुण देखते उसे सीखने का प्रयास करते। उन्होंने सिर्फ गुण चुनकर समूचे जीवन को गुणों का सागर बना लिया था। उनके पवित्र जीवन के सामने बड़े बड़े विद्वान, राजनेता और विरोधी नतमस्तक थे। ऐसे चुम्बकीय व्यक्तित्व के धनी देह से कमजोर पर दिल से उदार थे। जिनके मन में सरलता, वचन में मधुरता, काया में विनम्रता, नयनों में वात्सल्यता, चेहरे पर प्रसन्नता और चैतन्य में चिंतन, आत्मा में मुमुक्षता के भाव थे। उनकी संयम साधना, निर्णय शक्ति और अनुशासन के आगे सभी झुकते थे।
——-

आत्मसाधना का माध्यम है अनुष्ठान
चेन्नई. अयनावरम स्थित जैन दादावाड़ी में विराजित साध्वी कुमुदलता ने कहा अनुष्ठान आत्म साधना का माध्यम है, अनुष्ठान एक औषध, संजीवनी बूटी और कर्म निर्जरा करने का साधन है। शरीर को जैसे भोजन की आवश्यकता होती है ठीक उसी तरह आत्मा के लिए अनुष्ठान जरूरी होता है। यह जाप करके व्यक्ति मोक्ष की ओर अग्रसर होता है। जाप से आत्मिक शांति के साथ ही घर-परिवार व राष्ट्र में शांति होती है। शांति पाने व तनावमुक्त जीवन जीने के लिए अनुष्ठान परमावश्यक है। चाहने से कुछ नहीं मिलता। जीवन में कुछ पाना है तो अध्यात्म की यात्रा करनी पड़ेगी। व्यक्ति अध्यात्म को भूल कर बस भौतिकता की इस चकाचौंध में फंस गया। ऋषियों ने कहा है मन के मते ना चलिए अर्थात मन के अनुसार चलोगे तो वह और मनमानी करेगा। यह मन कभी तो साहित्य के सुंदर पुष्पों का रस लेता है कभी वहां से उडक़र वासना की ओर दौड़ पड़ता है यह तो पल पल बदलता है क्षण क्षण फिसलता है। ऐसे में इसको समझाएं और इच्छाओं पर ब्रेक लगाएं इस छोटी सी जिंदगी में अरमान बहुत हैं। आज व्यक्ति की जिंदगी इन अरमानों को पूरी करने में लग जाती है इंसान को कैलाश पर्वत जैसे सोने के असंख्य पर्वत भी दे दिया जाए फिर भी उसकी तृष्णा समाप्त नहीं होती उसकी तृष्णा और बढ़ती है इच्छाएं अनंत है। आकाश का तो कोई छोर हो सकता है लेकिन इच्छाओं का कोई छोर नहीं होता। जीवन का चक्र चलेगा तो इस शाश्वत सत्य को समझ कर जीवन में हम अध्यात्म की ओर बढ़े और धर्म की शरण ग्रहण करें। भगवान शांतिनाथ के अनुष्ठान में हजारों की तादात में श्रद्धालु पहुंचे। 9 अक्टूबर को राहु केतु की शांति के लिए महा मंगलकारी अनुष्ठान होगा।

ट्रेंडिंग वीडियो