साध्वी डॉ.हेमप्रभा ने कहा जो श्रम करता है उसे बीच में विश्राम की आवश्यकता होती है उसी प्रकार आध्यात्मिक साधक को भी सांसारिक कार्यों सेआत्मा को आराम देने के लिए चार प्रकार के विश्राम की आवश्यकता है-पहला बारह व्रत, नवकार आदि छोटे-छोटे व्रत ग्रहण करना। दूसरा दो घड़ी सांसारिक प्रपंचों से मुक्त होकर सामायिक, प्रतिक्रमण आदि करना। तीसरा पर्व-तिथि के दिनों में संवर, पोषध ग्रहण व रात्रि धर्म चिंतन करना और चौथा अंतिम समय में आहार, शरीर, पद आदि से ममत्व छोड़कर १८ पापों से मुक्ति प्राप्त करना। श्रावक को अपने आवश्यक गुणों का पालन अवश्य करना चाहिए।
श्रावक को नौ तत्वों का ज्ञान होना चाहिए नहीं तो वह जीव की रक्षा और अजीव की आसक्ति नहीं छोड़ सकता। प्रभु ने नौ तत्व- जीव, अजीव, पुण्य, पाप, आश्रव, संवर, निर्जरा, क्रोध, मोह को बताया है। कर्मों को तोडऩे के लिए तप करना पड़ता है। आत्मा का कर्मों के साथ दूध, पानी की तरह संबंध है। बंध के आवरण हट जाए तो मोक्ष प्राप्त हो जाए। श्रावक को जाननेयोग्य को अवश्य जानना चाहिए, उसे श्रावकधर्म के गुणों से सुसंपन्न होना ही चाहिए। आचारांग में कहा गया है कि आप श्रवण या साधक जिस मार्ग पर हैं, उसे श्रद्धा से पूर्ण करें।