पुलिस महानिरीक्षक कुलकर्णी ने इस मामले में अपने वरिष्ठ अधिकारियों के साथ चर्चा की तथा यह मामला सीधा डीजीपी कार्यालय से संबद्ध न होने से इस मामले को नई गठित कमेटी को सुपुर्द करने के लिए लिखा था। इसके बाद डीजीपी ने वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों की कमेटी का गठन किया जिसमें अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक सीमा अग्रवाल, एस. अरुणाचलम, डीआईजी तेनमोझी, सेवानिवृत्त अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक सरस्वती एवं डीजीपी कार्यालय में प्रशासनिक अधिकारी रमेश को शामिल किया गया। एक दिन पहले एक अधिवक्ता ने मद्रास हाइकोर्ट में जनहित याचिका दायर की जिसमें विशाखा कमेटी को पुनर्गठित करने की मांग की जिसमें किसी एक बाहरी सदस्य, किसी अधिवक्ता या किसी एनजीओ के सदस्य को शामिल करने की मांग की गई।
वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों ने इस मामले में चर्चा के बाद इसे सीबी-सीआईडी को सौंपने का निर्णय लिया। राष्ट्रीय महिला आयोग ने भी 28 अगस्त को डीजीपी को एक पत्र लिखा था जिसमें कार्यस्थल पर महिलाओं के यौन शोषण संबंधी घटनाओं के लिए बने नियमों की पालना करने की मांग की गई थी। हालांकि महिला की शिकायत के बाद उसका तबादला दूसरी जगह कर दिया गया। बताया जाता है कि महिला एसपी को आईजी ने उसकी एसीआर खराब कर देने की धमकी भी दी थी जिससे उसका कॅरियर खराब हो जाए।
पिछले दिनों छत्तीसगढ़ में एक महिला कांस्टेबल ने आईजी पर शारीरिक शोषण का आरोप लगाया था। इसकी जांच के लिए गठित विशाखा कमेटी ने पीडि़त महिला कांस्टेबल ने आरोपों को सही पाया था। हाइकोर्ट ने 27 फरवरी 2018 को आईजी के खिलाफ 45 दिन के भीतर वैधानिक कार्रवाई के निर्देश दिए थे, लेकिन आईपीएस लॉबी के दबाव में राज्य की बीजेपी सरकार ने कोई कार्रवाई नहीं की। विशाखा कमेटी की जांच में दोषी पाए जाने के बावजूद आईपीएस लॉबी के दबाव में उन्हें प्रमोशन देकर एडीजीपी बना दिया गया। आमतौर पर ऐसे मामलों में सरकारी कर्मचारियों की पदोन्नति पर रोक लगा दी जाती है। बाद में आईजी के पक्ष में दिए केन्द्रीय अभिकरण बोर्ड (कैट) के फैसले पर छत्तीसगढ़ हाइकोर्ट ने रोक लगा दी थी।
दरअसल 1997 में सामाजिक कार्यकर्ता भंवरीदेवी ने राजस्थान में बाल विवाह रोकने के लिए आवाज उठाई थी। ऐसे में दबंगों ने उसके साथ दरिंदगी की। इसी केस में फैसला सुनाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कार्यस्थलों पर महिला सुरक्षा से जुड़े कुछ दिशा-निर्देश तय किए जिनको विशाखा गाइडलाइन का नाम दिया गया।