scriptमोटी तनख्वाह छोड़ पशुओं के आंसू पोछ रहीं महिला विज्ञानी शेरानी | 'Sherani', a female scientist who is helping the animals | Patrika News

मोटी तनख्वाह छोड़ पशुओं के आंसू पोछ रहीं महिला विज्ञानी शेरानी

locationचेन्नईPublished: Jan 20, 2022 11:40:56 am

Submitted by:

Santosh Tiwari

– पुरस्कार स्वरूप मिले लाखों रुपए भी पशुसेवा में समर्पित

मोटी तनख्वाह छोड़ पशुओं के आंसू पोछ रहीं महिला विज्ञानी शेरानी

मोटी तनख्वाह छोड़ पशुओं के आंसू पोछ रहीं महिला विज्ञानी शेरानी

चेन्नई. आज समाज में ऐसे उदाहरण बिरले ही देखने को मिलते हैं जब कोई व्यक्ति पशुप्रेम के खातिर अपनी अच्छी खासी तनख्वाह वाली सरकारी नौकरी छोड़ दे। चेन्नई की महिला डा.शेरानी परेरा ने ऐसा कर देश दुनिया के लिए एक मिसाल पेश की है। शेरानी के पशुप्रेम की यह यात्रा बचपन से ही शुरू हो गई थी। एक बड़े बिजनेस परिवार से ताल्लुक रखने वाली परेरा मूल रूप से तमिलनाडु के तूतीकोरीन की रहने वाली हंै। इनके दादा का केरल में अच्छा व्यवसाय था। पूरा परिवार पशुप्रेमी था। दादा के पास घोड़े थे।
पिता से मिली प्रेरणा
वे बताती हैं पिता एक बार सड़क से श्वान को लाए तो भाई ने एक बीमार बिल्ली को घर लाकर उसकी देखभाल की। पिता ने उन्हें हमेशा नेचर (पशु पक्षी) से प्रेम करने की प्रेरणा। परेरा के मन में यही से पशुप्रेम का बीजांकुर हुआ। धीरे-धीरे यह उनका सपना हो गया। केरल में अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद परेरा ने एग्रीकल्चर रिसर्च सर्विसेज की परीक्षा दी और उनका चयन इंडियन काउंसिल आफ एग्रीकल्चर रिसर्च में हो गया।
१९९४ से शुरू हुआ सफर
उनकी पहली पोस्टिंग 1993 में चेन्नई में हुई। 1994 में उनकी मुलाकात सुगालचंद जैन एवं सेतुवैद्यनाथन से हुई और फिर बीमार पशुओं व छुड़ाए हुए पशुओं के देखभाल का सिलसिला शुरू हो गया। पूलीयंतोप में बीमार श्वानों और उसके बाद रेडहिल्स में छुड़ाए गए पशुओं का देखभाल शुरू किया। अभी उत्तकोट्टै में शेल्टर की देखभाल कर रही हैं। केंद्र का संचालन पीपुल्स फॉर एनिमल चैरिटेबल ट्रस्ट द्वारा किया जाता है। डा.शेरानी परेरा इस ट्रस्ट की प्रबंध न्यासी होने के साथ ही सह-संस्थापक भी हैं।
खर्च के लिए बनाई पेंटिंग
नौकरी से एक साल तक छुट्टी और उसके बाद लीव विदाउट सैलेरी पर रहते हुए पशु कल्याण के लिए काम किया। इस दौरान खर्च चलाने के लिए पेंटिंग तक बनाई। करीब 3 से 4 साल तक ऐसे ही खर्च चलाया। परेरा कहती हैं 1996 में उन्होंने वापस नौकरी जॉइन की। 2012 तक नौकरी की, इस बीच नौकरी एवं पशु सेवा दोनों साथ साथ चलती रही। 2012 में बीमार होने के बाद दोनों काम साथ साथ नहीं हो सकते थे उन्होंने नौकरी से वीआरएस ले लिया।
डेढ़ लाख की नौकरी छोड़ी
लगभग 21 साल तक उन्होंने वैज्ञानिक के रूप में अपनी सेवाएं दी। उस समय उनका वेतन डेढ़ लाख रुपए था। वे कहती हैं मुझे इसका दुख: नहीं हुआ। मेरा फैसला एकदम खरा था। मेरा लक्ष्य पशुओं की सेवा है। यह मेरा कर्म है। यही नहीं उन्होंने अपने पुरस्कार राशि के रूप में मिले 25 से 30 लाख रुपए पशुुकल्याण पर खर्च कर दिए।
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