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सुबह एक घंटा जल्दी जगने से अवसाद का जोखिम 23 फीसदी तक कम हो सकता है

locationचेन्नईPublished: Aug 04, 2021 12:28:34 am

सुबह एक घंटा जल्दी जगने से अवसाद का जोखिम 23 फीसदी तक कम हो सकता है- जल्दी जागने से कम होता है अवसाद का खतरा- वैज्ञानिकों ने किया 8.4 लाख लोगों पर अध्ययन

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चेन्नई. यदि आप सुबह में एक घंटा जल्दी जाग जाते हैं तो अवसाद का जोखिम 23 फीसदी तक कम हो सकता है। हाल में हुए एक शोध में यह जानकारी सामने आई है। इस अध्ययन के जरिये पहली बार यह भी पता करने की कोशिश की गई है कि मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित करने के लिए कितना कम या ज्यादा बदलाव की जरूरत होती है। महामारी के इस दौर में दिनचर्या में आए बदलाव की वजह से भी इस अध्ययन के निष्कर्ष काफी अहम साबित हो सकता है।
रात को जल्दी सोने और सुबह जल्दी जागने के कई फायदे गिनाए जाते रहे हैं। यूनिवर्सिटी ऑफ कोलोराडो बाउल्डर और ब्रॉड इंस्टीट्यूट ऑफ एमआइटी एंड हार्वर्ड के शोधकर्ताओं ने करीब 8.4 लाख लोगों पर किए गए अध्ययन के निष्कर्ष में बताया है कि इस बात के ठोस प्रमाण मिले हैं कि व्यक्ति की सोने की प्रवृत्ति से अवसाद का जोखिम प्रभावित होता है।
पूर्व के अध्ययनों में पाया गया है कि देर रात तक जागने वाले लोग कितनी भी देर सोएं, उनमें अवसाद का जोखिम जल्दी जागने वाले लोगों से दोगुना होता है। लेकिन मूड डिसऑर्डर से सोने का पैटर्न बिगड़ता है। शोधकर्ताओं के लिए यह पता करना कठिन रहा है कि आखिर ऐसा होता क्यों है।
प्रयोग के आधार पर औसत शयन मध्यमान का समय तड़के तीन बजे
इलियास डगलस के मुताबिक, हमारे जीन जन्म के समय से ही सेट हो जाते हैं, जिसका प्रभाव बना रहता है। 340 से ज्यादा सामान्य जीनेटिक वैरिएंट जो क्लॉक जीन पीईआर 2 के रूप में जाने जाते हैं, व्यक्तियों के क्रोनोटाइप (किसी खास समय में सोने की प्रवृत्ति) की 12-42 फीसदी तक व्याख्या करते हैं। इसके लिए किए गए प्रयोग के आधार पर औसत शयन मध्यमान का समय तड़के तीन बजे आया। मतलब वे रात को 11 बजे सो कर सुबह छह बजे उठते थे।
सोने के समय और मूड के बीच संबंध
शोध की मुख्य लेखिका सेलिन वेट्टर का कहना है कि हम यह बात तो पहले से जानते हैं कि सोने के समय और मूड के बीच संबंध होता है, लेकिन डाक्टरों से यह सवाल आते रहे हैं कि लोगों में दिखने योग्य फायदे के लिए सोने और जागने के समय को कितना पीछे करना चाहिए। हमने पाया है कि यदि हम एक घंटा की भी जल्दी करें तो अवसाद के जोखिम पर उसका उल्लेखनीय असर होता है। शोधकर्ताओं ने इस जानकारी का इस्तेमाल एक अलग सैंपल पर उनमें अवसाद का पता लगाने के लिए किया। इसमें पाया गया कि सोने और जागने के मध्यमान समय में एक घंटा की जल्दी से अवसाद का खतरा 23 फीसदी तक कम रहा।
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