पुलिस फायरिंग में अब तक १२ की मौत
तुत्तुकुड़ी शूटिंग मामला
- खदेडऩे के लिए चलाई गोली या मारने के लिए?

चेन्नई. तुत्तुकुड़ी स्टरलाइट प्लांट के विरुद्ध हो रहे उग्र विरोध प्रदर्शन से निपटने के लिए हुई पुलिस फायरिंग में अब तक १२ जनों का मौत हो चुकी है। कानून-व्यवस्था बनाए रखने और हिंसा पर उतारू प्रदर्शनकारियों को रोकने के लिए गोली चलाने की बात कही गई। सरकार के इस तर्क को एक पल के लिए सही मान भी लिया जाए लेकिन सबसे बड़ा सवाल यह है कि क्या पुलिस ने प्रदर्शनकारियों को खदेडऩे के लिए गोली चलाई अथवा उनको मौत के घाट उतारने के लिए। मीडिया में प्रकाशित फोटो और वायरल वीडियो में पुलिसकर्मी सीधे-सीधे जनता पर गोली चला रहे हैं। कुछ के सीने तो कुछ के भेजे में गोली लगी। एक छात्रा की मौत तो मुंह पर गोली लगने की वजह से हुई। तुत्तुकुड़ी फायरिंग मामले में पुलिस को गोली चलाने को लेकर जो दिशा-निर्देश तय हैं उनकी खुली अवहेलना हुई। राजनीतिक दलों ने भी फायरिंग के तरीके पर सवाल उठाया है। साथ ही पुलिसकर्मियों द्वारा उपयोग में लाए गए हथियार भी पुलिस की सोच पर प्रश्न पैदा करते हैं।
तुत्तुकुड़ी अस्पताल में भर्ती एक महिला ने एक निजी टीवी चैनल को दिए साक्षात्कार में उस पल को याद किया जब वह मौत के मुंह से वापस लौटी। वह बताती है, 'मेरे घुटने पर गोली लगी। बहुत दूर से गोली चलाई गई थी। मेरे पास खड़ी युवती दुर्भाग्यशाली थी, गोली सीधे उसके सिर में छेद कर गई जिससे उसकी वहीं मौत हो गई।Ó
एके-४७ व एसएलआर
पुलिस फायरिंग और लाठीचार्ज में ६० से अधिक घायल हुए हैं। कुछ ऐसे लोगों को भी गोली लगी जो सड़क किनारे थे। भीड़ को नियंत्रित करने के नाम पर बंदूक का मुंह खोल देना पूरी तरह दुस्साहस भरा था। मानो पुलिस का मानवता से कोई नाता ही नहीं था। प्रभावित लोगों का यही सवाल था कि हमारा प्रदर्शन प्लांट के खिलाफ था न कि सरकार के खिलाफ। फिर हमारे साथ ऐसा बर्ताव क्यों किया गया? प्रदर्शनकारियों पर एसएलआर व एके-४७ का इस्तेमाल किया जाना भी निन्दनीय है। इनका अमूमन उपयोग बॉर्डर पर अथवा दहशतगर्दों के खिलाफ किया जाता है लेकिन यहां तो आम जनता पर पुलिस ने बेखौफ इनसे गोलियां दागी।
खुफिया तंत्र और मॉब मैनेजमेंट की विफलता
तमिलनाडु पुलिस के वरिष्ठ अफसर ने राजस्थान पत्रिका से वार्ता में इस घटना को खुफिया तंत्र और मॉब मैनेजमेंट की विफलता माना। उनका कहना था कि इंटेलीजेंस मशीनरी परफेक्ट होती तो ऐसी परिस्थिति को टाला जा सकता था। जब भीड़ की तादाद हजारों में थी उसके अनुरूप पुलिस व्यवस्था होनी चाहिए थी जबकि यह पता था कि उनका निशाना किस ओर है। उन मार्गों को अवरुद्ध किया जा सकता था जो इनके निशाने पर थे। पुलिस कार्रवाई का जहां तक सवाल है उसका मूल सिद्धांत 'मिनिमम यूज ऑफ फोर्सÓ होता है। पहले चेतावनी के साथ आंसू गैस का इस्तेमाल किया जाता। बात नहीं बनने पर फिर माइक से चेतावनी देकर सामान्य बल प्रयोग किया जाता है। बात ज्यादा ही बिगडऩे पर कड़ी चेतावनी के साथ फायरिंग की जाती है लेकिन फायरिंग का बेहद ही कम राउंड इस्तेमाल किया जाना चाहिए। पुलिस की गोली चलाने की जो गाइडलाइन है वह 'बिलो दी बेल्टÓ यानी कमर के नीचे है ताकि जान की क्षति नहीं हो। जहां तक तुत्तुकुड़ी फायरिंग के दौरान हथियारों का सवाल है शायद इसमें सेमी ऑटोमैटिक वेपन का यूज हुआ है जो नहीं होना चाहिए था।
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