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गृह सचिव और एडीजी को नोटिस : या तो वे आदेश की पालना करें अथवा सुप्रीम कोर्ट से निजी उपस्थिति से छूट के आदेश प्राप्त करें

locationचेन्नईPublished: Nov 27, 2019 09:15:51 pm

Submitted by:

MAGAN DARMOLA

Judicial contempt case : अदालत ने अपने पूर्व के आदेशों का हवाला देते हुए कहा कि उनके पास इन याचिकाओं को स्वीकारने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचा है। इन पर तीनों अधिकारियों को वैधानिक नोटिस भेजा जा रहा है। बहरहाल, तीनों अधिकारियों को न्यायिक पीठ ने एक और अवसर दिया है कि पूर्व आदेशों को लागू करें।

गृह सचिव और एडीजी को  नोटिस : या तो वे आदेश की पालना करें अथवा सुप्रीम कोर्ट से निजी उपस्थिति से छूट के आदेश प्राप्त करें

गृह सचिव और एडीजी को नोटिस : या तो वे आदेश की पालना करें अथवा सुप्रीम कोर्ट से निजी उपस्थिति से छूट के आदेश प्राप्त करें

चेन्नई. अपने आदेश की पालना नहीं करने पर गंभीर रुख व्यक्त करते हुए मद्रास हाईकोर्ट ने बुधवार को गृह सचिव निरंजन मार्डी और दो अन्य वरिष्ठ अधिकारियों को वैधानिक नोटिस जारी किया है। कोर्ट ने कहा कि या तो वे आदेश की पालना करें अथवा सुप्रीम कोर्ट (supreme court) से निजी उपस्थिति से छूट के आदेश प्राप्त करें।

जस्टिस एमएम सुंदरेश और जस्टिस आरएमटी टीकारमन की न्यायिक पीठ ने अवमानना की पांच याचिकाओं पर गृह सचिव के अलावा अपर पुलिस महानिदेशक आभास कुमार और कोयम्बत्तूर सेंट्रल जेल के एसपी आर. कृष्णराज को वैधानिक नोटिस जारी किया है। अवमानना याचिका में कहा कि २०१८ में जारी आदेशों तथा कुछ कैदियों की २०१९ में समय पूर्व रिहाई के संबंध में जारी शासनादेश संबंधी निर्देशों का इन अधिकारियों ने पालन नहीं किया है।

बेंच ने अपने पूर्व के आदेशों का हवाला देते हुए कहा कि उनके पास इन याचिकाओं को स्वीकारने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचा है। इन पर तीनों अधिकारियों को वैधानिक नोटिस भेजा जा रहा है। बहरहाल, तीनों अधिकारियों को न्यायिक पीठ ने एक और अवसर दिया है कि पूर्व आदेशों को लागू करें। बेंच ने प्रतिवादियों से कहा कि अगर वे आदेश की पालना करते हैं अथवा अपनी पेशी से छूट के सुप्रीम कोर्ट से आदेश प्राप्त करते हैं तो उनको उपस्थित होने की आवश्यकता नहीं है।

मूलत: सरकार ने एमजीआर जन्मशती समारोह के उपलक्ष्य में १ हजार आजीवन कारावास कैदियों की रिहाई का निर्णय किया था। इस सिलसिले में १ फरवरी २०१८ को शासनादेश जारी हुआ था। वादियों जिनको आइपीसी की धारा ३०२ के तहत उम्रकैद हुई थी को शासनादेश के तहत नहीं छोड़ा गया था। इस वजह से उनके परिजनों ने मद्रास हाईकोर्ट की शरण ली और बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका लगाई। अधिकारियों ने कोर्ट के आदेश की पालना नहीं की। इस वजह से परिजनों को अवमानना यायिका दायर करनी पड़ी।

उल्लेखनीय है कि पूर्व में जब भी इन याचिकाओं पर सुनवाई हुई उस वक्त सरकारी अधिकवक्ता ने न्यायालय से कोर्ट के आदेश की पालना के लिए समय मांगा। गत २१ नवम्बर को हुई सुनवाई में अपर महाधिवक्ता ने हाईकोर्ट से कहा कि वे अपील कर रहे हैं जिस पर २५ को सुनवाई होगी। फिर यह सुनवाई २६ नवम्बर के लिए स्थगित कर दी गई थी। बेंच ने पाया कि यही स्थिति जारी है तो सख्ती बरतते हुए वैधानिक नोटिस जारी कर दिए कि तीनों अधिकारी चार सप्ताह के भीतर न्यायालय में पेश हों अथवा सुप्रीम कोर्ट से राहत हासिल करें।

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