इस मामले में कोर्ट ने ४ सितम्बर तक केंद्र सरकार की ओर से जवाबी हलफनामा दायर करने को कहा है। कार्ति ने यह याचिका अपने ऊपर लगे लुक आउट नोटिस को रद्द करने के लिए लगाई थी, जिसमें उन्होंने बताया था कि उनके खिलाफ यह नोटिस राजनीति से प्रेरित होकर जारी किया गया है। कार्ति और उनके साथी सीबीएन रेड्डी, रवि विश्वनाथन, मोहन राजेश और एस. भास्कर रामन के खिलाफ जारी इस लुकआउट नोटिस को दो अलग-अलग याचिकाओं में चुनौती दी गई है। कार्ति ने कहा कि केंद्र सरकार स्वतंत्र ऐजेंसियों को अपने फायदे के लिए इस्तेमाल कर रही है। कार्ति और आईएनएक्स मीडिया के आठ लोगों के खिलाफ १५ मई को फॉरन इंवेस्टमेंट प्रोमोशन बोर्ड (एफआईपीबी) के नियमों की अवहेलना का मामला दर्ज किया गया। वर्ष २००७ में इन्होंने मीडिया हाउस को फॉरेन डायरेक्ट इन्वेस्टमेंट के लिए अनुमति दिलाई।
जांच एजेंसी का आरोप है कि यह एफडीआई प्रस्ताव तर्कसंगत नहीं था इसके बावजूद तत्कालीन वित्तमंत्री पी. चिदम्बरम ने इसे अनुमति दे दी। इस संबंध में १५ जून को सीबीआई की विशेष अदालत के सामने कार्ति को पेश होना पड़ा। दिल्ली के पाटियाला हाउस स्थित सीबीआई के विशेष जज के समक्ष १५ मई २०१७ को इस मामले में एफआईआर दर्ज की गई, जिसके बाद मई महीने में ही कार्ति और उसके दोस्तों के घर छापेमारी की गई और उनके खिलाफ लुक आउट नोटिस जारी किया गया।
कार्ति ने इस मामले में पहले ही स्पष्ट कर दिया है कि उन्होंने एफआईआर को चुनौती दे रखी है। उन्होंने कभी भी कानून और कानूनी कार्रवाई का उल्लंघन नहीं किया है। एफआईआर के आधार पर जारी लुकआउट नोटिस मान्य नहीं होना चाहिए। कार्ति ने बताया कि पिछले दो सालों से केंद्र सरकार उन पर और उनके परिवार पर नाहक दबाव बनाने का प्रयास कर रही है। इस दबाव को बढ़ाने और बनाए रखने के लिए केंद्र सरकार अपनी स्वतंत्र एजेंसियों का इस्तेमाल कर रही है। केंद्र सरकार के जन विरोधी नीतियों और फैसलों की सार्वजनिक रूप से निंदा न की जाए इसी के लिए यह सब प्रयास किया जा रहा है।