चीन से तल्ख होते रिश्तों के बीच जोर स्वदेशी राखी पर
चेन्नईPublished: Jul 15, 2020 07:55:32 pm
– बाजार से गायब चीनी राखी लेकिन बाजार मंदा- कई महिला समूह जुटे राखियां बनाने में
चेन्नई. चीन से तल्ख होते रिश्तों के बीच इस बार भाई-बहन के पवित्र रिश्ते रक्षाबंधन पर चीनी राखियां नजर नहीं आएगी। चीनी राखियों का बहिष्कार और स्वदेशी राखी की मुहिम जोर पकडऩे लगी है। कई संगठन स्वदेशी राखी को प्रमोट करने के लिए आगे आए हैं। व्यापारियों ने भी ग्राहकों की मंशा को भांपते हुए इस बार चीनी राखियों के बजाय स्वदेशी राखी बेचने पर जोर दे रहे हैं।
भारत-चीन सीमा पर तनाव का असर यहां के पर्व-त्यौहारों पर भी पड़ा है। यही वजह है कि इस बार चीनी नहीं स्वदेशी राखी की मांग बढ़ गई है।
चीनी बाजार को जोरदार झटका
एक अनुमान के अनुसार राखी पर करीब छह हजार करोड़ रुपए का कारोबार होता है। इसमें अकेले चीन की हिस्सेदारी करीब चार हजार करोड़ रुपए है। राखी बनाने के लिए काम में आने वाली सामग्री जैसे धागा, मोती, फोम एवं सजावटी सामग्री चीन से आती है। चीनी राखियां सस्ती व देखने में आकर्षक होती हैं। यहां राजस्थान, पश्चिम बंगाल, महाराष्ट्र व गुजरात में राखियां बनती हंै।
इस बार लॉकडाउन के चलते परिवहन में हो रही दिक्कत का असर राखियों की कीमतों पर पड़ा है। व्यापारियों की मानें तो राखियां इस बार 15 से 20 फीसदी महंगी दर पर बिक रही है। जरी, धागे व मोती में पिरोई राखियों की मांग अधिक है। स्टोन व ब्रेसलेट वाली राखियों की डिमांड भी है।
महिलाओं के रोजगार के द्वार खुले
इस बार चीनी राखियों के बहिष्कार से स्वदेशी मुहिम को बल मिला है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के आत्मनिर्भर भारत की दिशा में एक कदम आगे बढ़ाते हुए कई महिला समूह राखी बनाने में जुट चुके हैं। इससे महिलाओं को रोजगार भी मिल रहा है।
इस बार बहुत कम दुकानें
महानगर में पांच दशक से व्यवसाय कर रहे रूपकला के मालिक जयपुर मूल के राजीव जैन कहते हैं, इस बार बाजार में चीन की राखियां बिल्कुल नहीं हैं। राखी से पहले हर बार बाजार सजता है लेकिन इस बार बहुत कम दुकानें लगी हैं। ऐसे में इस बार बिक्री कम रहने की संभावना है। कोरोना, लॉकडाउन व कूरियर सेवाओं की कमी का सीधा असर राखी बाजार पर पड़ा है।