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जहां भी जाएं आस्था, व्यवस्था और मर्यादा का ध्यान रखें

locationचेन्नईPublished: Aug 14, 2018 12:25:16 pm

Submitted by:

PURUSHOTTAM REDDY

आप धर्मसभा में जाएं और वहां का गौरव नहीं बनाए रख सकते तो उसे तोडऩे का भी आपको अधिकार नहीं है। ऐसा व्यक्ति धर्म सभा में नहीं जाए तो ही अच्छा है। जो व्यक्ति जागकर दूसरों को तकलीफ देता है, पीडि़त, संत्रस्त और शांति भंग करता है वह सोया हुआ ही अच्छा है और जो दूसरों के दु:खों को दूर करता है वह व्यक्ति जागे तो ही अच्छा है।

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जहां भी जाएं आस्था, व्यवस्था और मर्यादा का ध्यान रखें

चेन्नई. पुरुषवाक्कम स्थित एएमकेएम में विराजित उपाध्याय प्रवर प्रवीणऋषि महाराज एवं तीर्थेशऋषि महाराज के पावन सानिध्य में तपस्यार्थियों का पारणा और आलोचना कार्यक्रम हुआ। इस मौके पर उपाध्याय प्रवर ने कहा किसी कार्य या परिस्थिति की आदत होते ही व्यक्ति उससे परेशान होना बंद हो जाता है और जिस वातावरण या परिस्थिति की आदत नहीं है वह उसे परेशान करती रही है। सभी को बाहर का वातावरण प्रभावित करता ही है, किसी को ज्यादा और किसी को कम।
भगवान महावीर ने चार ध्यान बताए हैं- आर्तध्यान, रौद्रध्यान, धर्मध्यान और शुक्लध्यान। हमें कभी-कभार आर्तध्यान और रौद्रध्यान हो सकता है, लेकिन धर्मध्यान में हमें स्थिर रहना चाहिए जबकि हम इसका विपरीत आचरण करते हैं और धर्मध्यान तो नाममात्र का लेकिन अन्य ध्यान में ही लगे रहते हैं। परमात्मा ने दो प्रकार के धर्म बताए हैं- श्रावक धर्म और साधु धर्म। एक आगार श्रावक और दूसरा अणगार श्रमण। श्रावक परमात्मा के पास जाते हैं और वहां से कुछ उपहार लेकर आ जाते हैं। श्रमण परमात्मा के चरणों में जाता है और वहां का ही होकर रह जाता है।
आप धर्मसभा में जाएं और वहां का गौरव नहीं बनाए रख सकते तो उसे तोडऩे का भी आपको अधिकार नहीं है। ऐसा व्यक्ति धर्म सभा में नहीं जाए तो ही अच्छा है। जो व्यक्ति जागकर दूसरों को तकलीफ देता है, पीडि़त, संत्रस्त और शांति भंग करता है वह सोया हुआ ही अच्छा है और जो दूसरों के दु:खों को दूर करता है वह व्यक्ति जागे तो ही अच्छा है।
धर्मसभा में जाएं तो आस्था और व्यवस्था का भी ध्यान रखें, भावना और व्यवहार की तरफ भी ध्यान दें। सामाजिक पक्ष और साधना का भी ध्यान रखें, श्रद्धा और व्यवहार का भी ध्यान रखें। धर्म की मर्यादा का उल्लंघन हो ऐसा काम नहीं करना चाहिए, विवेक रखना चाहिए। कम से कम दूसरो ंकी शांति को भंग कभी नहीं करना चाहिए।
गलती से ज्यादा वहम और गलतफहमी नुकसान करती है। हमें भी अपने घर-परिवार में अपनों में गलतफहमी हो जाए तो उसे शीघ्र ही दूर करना चाहिए। अपनों पर कभी गलतफहमी मत करना।
बुधवार सवेरे जैनोलोजी प्रेक्टिकल क्लास होगी और प्रवचन होगा।
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