फिल्म में इस आदर्श बेटे और भाई की भूमिका में हैं शिवकार्तिकेयन जो अपने रोल में बड़े ही सहज अंदाज में नजर आए। उन्होंने जब चाहा दर्शकों को अपने कॉमिक सेंंस से हंसाया तो वहीं भावुक भी किया।
शुक्रवार को रिलीज यह फिल्म औसत एंटरटेनर कही जा सकती है कि जिसकी पटकथा साधारण है लेकिन कर्णप्रिय गाने और योगी बाबू व परोटा सूरी के साथ कॉमेडी सीन्स दर्शकों को काफी पसंद आए।
फिल्म में शिवकार्तिकेयन (अरुमपोन) एक गांव का युवक है। वह तेल की घाणी चलाता है। उसके पिता समुद्रकनी (चंद्रबोस) गांव में हर क्षेत्र में आगे है। उसका मित्र आर. के. सुरेश (धर्मा) कुछ दुश्मनों द्वारा मार दिया जाता है।
धर्मा की बेटी ऐश्वर्या राजेश (तुलसी) को घर ले आता है। फिर चंद्रबोस की भी मृत्यु हो जाती है लेकिन तुलसी को शिवकार्तिकेयन और उसकी मां सच्चा प्यार देते हैं।
शिवकार्तिकेयन के लिए उसकी बहन की खुशी ही सबकुछ है।
उसकी शादी को लेकर कहानी कई मोड़ लेते हैं जहां हीरो के सगे ही उसे दगा देते हैं। फिर भाई के सिर से बोझ कम करने के लिए तुलसी नटराज सुब्रमण्यन (अय्यनार) जो बार मालिक है से शादी कर लेती है।
शिवकार्तिकेयन से बदला लेने अय्यनार दरअसल ऐसा करता है और उसे यातनाएं देना शुरू करता है। एक दिन जब वह अपनी पत्नी पर हाथ उठा देता है तब भाई के सब्र का बांध टूट जाता है।
शिवकार्तिकेयन अपने जीजा की जमकर पिटाई करते हुए बहन का पति होने की वजह से जान बख्श देता है।
उसकी मारपीट से बौखलाया अय्यनार गुस्से में उसके करीबी दोस्त मारी की हत्या कर देता है। मारी के परिजन और उसके सगे अय्यनार को मौत के घाट उतारने के लिए कूद पड़ते हैं।
फिर हीरो कैसे अपने जीजा को बचाते हुए उसका दिल जीतता है यही फिल्म का क्लाईमैक्स है।
फिल्म में ख्यातनाम निर्देशक भारतीराजा पात्र भूमिका में है और कहानी में फिट बैठते हैं।
शिवकार्तिकेयन और ऐश्वर्या ने अपने अभिनय का लोहा मनवाया है वहीं फिल्म की हीरोइन अनु इमानुवेल के लिए ज्यादा कुछ करने के लिए नहीं था लेकिन वे खूबसूरत नजर आईं।
फिल्म के गाने अच्छे हैं लेकिन क्लाईमैक्स में फिल्म बोर करने लगती है। इस लिहाज से एनवीपी औसत दर्जे में आती है।