जबकि यह संख्या 2020 में 40 पहुंच गई थी और जून 2021 तक यह संख्या 11 थी। 2019 में छेड़छाड़ के मामले 802 थे, जो 2020 में बढ़कर 892 हो गए और इस साल जून तक 416 मामले सामने आए थे। पंजीकृत यौन उत्पीडऩ के मामले 2019 में 7 से बढ़कर 2020 में 31 हो गए थे। हालांकि महिलाओं और बच्चों के खिलाफ अपराधों के लिए 2019 में केवल 784 और 2020 में 785 मामले में चार्जशीट दायर की गई थी। 2021 में अब तक केवल 155 मामलों में चार्जशीट दायर की गई है।
2019 से अब तक लगभग 2 हजार 934 मामलों की जांच चल रही है और 308 मामलों का निपटारा तथ्य या कानून की गलतियों का दावा करने के लिए किया गया था। सामाजिक कार्यकर्ताओं और विशेषज्ञों का कहना है कि लॉकडाउन ने लोगों को घरों में रहने के लिए मजबूर किया और इसके परिणाम स्वरूप घर्षण बढ़ गया। मादक द्रव्यों के सेवन में वृद्धि हुई और मानसिक स्वास्थ्य में गिरावट भी दर्ज की गई। कई महिलाओं और बच्चों के साथ उनके घरों या मोहल्लों में छेड़छाड़ की गई।
इनका कहना है
मनोचिकित्सक सलाहकार डॉ श्री विद्या ने बताया कि कई लोग घरेलू विवाद या उत्पीडऩ के मामले में पेशेवर सलाहकारों की मदद नहीं लेते है, बल्कि घर में ही वे इसे सुलझाने की कोशिश करते हैं, जो अक्सर काम नहीं करता है। इसके अलावा मादक द्रव्यों का सेवन लोगों के दिमाग को खोने का एक और कारण है।
एक पुलिस अधिकारी ने बताया कि बाल कल्याण पुलिस अधिकारियों के लिए प्रशिक्षण कार्यक्रम और ऑनलाइल वेबिनार नियमित रूप से आयोजित किए जाते हैं। इसके अलावा सहायता प्रदान करने के लिए 800 महिला हेल्प डेस्क की स्थापना की गई है।