न्यायाधीश एम. सत्यनारायणन और न्यायाधीश एन. शेषसाई की बेंच में कैप्टन पी. एन. नारायणन ने यह जनहित याचिका लगाई।
याची ने कहा कि वह इसी इलाके का रहवासी है। इस सालै पर रीजनल इंस्टीट्यूट ऑफ ऑप्थेमेलॉजी और राजकीय नेत्र चिकित्सालय है।
इस परिसर में अस्पताल प्रशासन ने नवनिर्माण के लिए 75 पूर्ण विकसित वृक्षों को गिराने का निर्णय किया है। ये पेड़ पक्षियों की आश्रयस्थली हैं तथा पारिस्थितिकी संतुलन के लिए आवश्यक है। चार एकड़ का यह क्षेत्र अब तक अनछुआ था जो जैविक विविधता के लिहाज से जरूरी है।
याची ने कहा कि यह अस्पताल विश्व का दूसरा सबसे पुराना नेत्र चिकित्सालय है। नेत्र उपचार में लगा यह अस्पताल पर्यावरणीय बर्बादी का कारण नहीं बन सकता।
अस्पताल की जरूरतों के हिसाब से निर्माण कार्य जरूरी हो सकते हैं लेकिन इसके लिए नर्सिंग छात्रावास की पास की जमीन और अन्य क्षेत्र का उपयोग किया जा सकता है।
उन्होंने कहा कि एकबारगी पेड़ काट दिए गए तथा जमीन की संरचना से छेड़छाड़ कर दी गई तो इसे पुराने स्वरूप में नहीं लौटाया जा सकेगा।
अस्पताल को इन वृक्षों के द्वारा शहरी इलाकों में दी जा रही पारिस्थितिकी सेवा के बारे में भी गौर करना चाहिए। इनसे ऑक्सीजन मिलती है तो कार्बन डाई ऑक्साइड का अवशोषण भी होता है। ये शीतल और शुद्ध हवा तथा पक्षियों को बसेरा देते हैं।