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तमिलनाडु के मंदिरों को जल्द ही मिलेंगी महिला पुजारी

locationचेन्नईPublished: Jun 13, 2021 11:26:48 pm

तमिलनाडु के मंदिरों को जल्द ही मिलेंगी महिला पुजारी

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चेन्नई. तमिलनाडु के मंदिरों को जल्द ही महिला पुजारी मिल सकती हैं। हिंदू धार्मिक और धर्मार्थ बंदोबस्ती (एचआर एंड सीई) विभाग ने सभी हिंदुओं को अर्चक (पुजारी) पाठ्यक्रम की योजना बनाई है।
मंत्री पी के शेखर बाबू ने कहा कि विभाग द्वारा प्रबंधित मंदिरों में पुजारी बनने की इच्छुक महिलाओं को प्रशिक्षण प्रदान करेगा। जिस तरह सभी हिंदू पुजारी बन सकते हैं, महिलाएं भी पुजारी बन सकती हैं। मुख्यमंत्री एम के स्टालिन से मंजूरी मिलने के बाद हम उन्हें प्रशिक्षण देंगे। एक समीक्षा बैठक की अध्यक्षता करने के बाद मंत्री ने कहा कि प्रशिक्षित गैर-ब्राह्मण पुजारियों को डीएमके सरकार के सत्ता में पहले 100 दिन पूरे होने से पहले उचित प्रक्रियाओं का पालन करके विभाग द्वारा प्रबंधित मंदिरों में नियुक्त किया जाएगा।
रिक्त पदों का विवरण मंगा रहे
हम मंदिरों में रिक्त पदों का विवरण एकत्र करने की प्रक्रिया में हैं। विभाग जल्द ही प्रशिक्षित गैर-ब्राह्मण अर्चकों सहित योग्य उम्मीदवारों को साक्षात्कार के लिए बुलाएगा। कुछ साल पहले कर्नाटक के मैंगलोर शहर के एक मंदिर में एक दलित महिला को पुजारी नियुक्त किया गया था। देश भर में कुछ ऐसे मंदिर हैं, जहां परंपरा के अनुसार केवल महिलाओं को ही पूजा करने की अनुमति है। यह जानते हुए कि द्रविड़ पार्टी लैंगिक समानता और सामाजिक न्याय के लिए खड़ी है, मंत्री की इच्छुक महिलाओं को पुजारी बनने के लिए प्रोत्साहित करने की घोषणा आश्चर्य के रूप में नहीं आई है। इसका उद्देश्य लैंगिक रूढ़िवादिता को तोड़ना है।
करुणानिधि के विचार आगे बढ़ा रहे
तमिलनाडु सरकार अर्चकर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष रंगनाथन ने कहा, घोषणा और कुछ नहीं बल्कि पूर्व मुख्यमंत्री एम करुणानिधि के विचार को आगे ले जाना है, जो सभी मोर्चों पर जाति की बाधाओं को तोड़ना चाहते थे। वे उन 206 लोगों में शामिल थे, जिन्होंने 2007-08 में एक वर्षीय जूनियर अर्चक कोर्स पास किया था। इस पाठ्यक्रम की शुरुआत तत्कालीन मुख्यमंत्री करुणानिधि ने छह मंदिरों तिरुवन्नामलै, तिरुचेंदूर, पलनी, मदुरै, श्रीरंगम और ट्रिप्लिकेन में की थी। उनमें से दो को मदुरै और पुदुकोट्टै जिलों में नियुक्त किया गया था, जबकि शेष 13 साल से अधिक समय से कानूनी लड़ाई लड़ रहे हैं। सत्याबाबा ट्रस्ट के सत्यबामा अम्मायार ने कहा कि तमिल संस्कृति और परंपरा ने मंदिरों में महिलाओं को प्राथमिकता दी है। लेकिन आर्यों ने देशी प्रथाओं को नष्ट कर दिया और महिलाओं के प्रति भेदभाव दिखाया।
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