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कार्तिकेयन के ‘वेल’ की गहराई अनंत

locationचेन्नईPublished: Sep 11, 2018 06:55:27 pm

Submitted by:

P S VIJAY RAGHAVAN

भक्तों की आस्था के केंद्र हैं कांचीपुरम जिले के उत्तिरमेरूर के हरियाले आवरण के बीच भगवान विष्णु और भगवान मुरुगन के मंदिर

Temple of Lord Vishnu and Lord Murugan

कार्तिकेयन के ‘वेल’ की गहराई अनंत

चेन्नई. कांचीपुरम जिले के उत्तिरमेरूर के हरियाले आवरण के बीच भगवान विष्णु और भगवान मुरुगन के मंदिर भक्तों की आस्था के केंद्र है। भगवान विष्णु का सुंदरराज स्वामी मंदिर आठवीं सदी का बताया जाता है तो इसके पड़ोस में श्री बालसुब्रमण्यम मंदिर है जो करीब हजार साल पुराना है। इस मंदिर में भगवान मुरुगन के वेल (हाथ में धारण शूल) का दर्शन अत्यंत विशिष्ट माना जाता है। उत्सवों के वक्त इस मंदिर की छटा ही निराली होती है जिससे यह छोटा सा कस्बा दुल्हन की तरह सज जाता है।

इतिहास और संरचना

उत्तिरमेरूर का अपना इतिहास शंकराचार्य के काल से है। बताया जाता है कि बालसुब्रमण्यम मंदिर करीब एक हजार साल पुराना है। मंदिर का पांच मंजिला राजगोपुरम दूर से ही दिखाई देता है और भक्तों की आंखों को आराम देता है। राजगोपुरम के आगे जलकुण्ड है जिसमें पानी है। राजगोपुरम से जुड़ी दीवार के भीतर गर्भगृह और अन्य सन्निधियां हैं। गर्भगृह में भगवान बालसुब्रमण्यम विराजे हैं जो शूल धारी हैं और अपने वाहन मुर्गे केस साथ हैं। उनकी दोनों पत्नियां वल्ली और देवयानै एकरूप में गजवल्ली के रूप में दर्शन देती हैं जिसे दुर्लभ बताया गया है। मंदिर में भगवान कदम्बनाथर, पेरून दंडम उडय़र, महादेवी तिरुपुर सुंदरी, काशी विश्वनाथ, संतान गणपति और भीतरी परिक्रमा में शूल रूप में मुरुगन की वेलायुद मूर्ति के दर्शन होते हैं।

विशेष आकर्षण

तमिल महीने अइपसी में अन्नाभिषेक, कार्तिक दीपम और अन्य महोत्सवों में श्रद्धालुओं का तांता लग जाता है। मंदिर के उत्तर-पूर्वी कोने में मुरुगन का शूल स्थापित है। कहा जाता है कि अब तक इस शूल के जमीन में गड़े हिस्से की गहराई कोई नहीं माप सका है। मंदिर की एक प्रमुख विशेषता यह भी है कि मुरुगन की दोनों भार्याएं देवयानै और वल्ली एकरूप में दर्शन देती हैं। ऐसा अन्य किसी मुरुगन मंदिर में देखने में नहीं आता है। परिसर में झूला और वसंत मंडप है तो किन्वदंती के अनुसार इंद्रदेव द्वारा मुरुगन को दिया गया हाथी भी पत्थर रूप में दर्शित है।

पौराणिक कथा

जातक कथा के अनुसार माना जाता है कि मंदिर में मुरुगन अपने अस्त्र वेल के रूप में खड़े हैं। यह वेल उन्होंने कश्यप मुनि को उनकी तपस्या की सुरक्षा के लिए गाड़ा था। इस क्षेत्र को इलयनार वेलूर कहा जाता है जिसका तात्पर्य है कि युवा मुरुगन शूल गड़े स्थान पर खड़े हैं। पुराने जमाने में इस मंदिर के दोनों ओर नदियां चैयारू और उत्तरवाहिनी बहती थी। यह क्षेत्र घना जंगल और ऋषि-मुनियों की तपस्थली थी। उस वक्त दो असुरों ने ऋषियों को खूब आंतकित किया और उनकी तपस्या में विघ्न डालने लगे। भगवान कदम्बनाथर से बचाने की प्रार्थना की गई। भगवान ने अपने पुत्र बालसुब्रमण्यम की ओर इशारा किया कि वह असुरों का नाश कर उनकी रक्षा करेगा। शिव ने अपनी तलवार भी संग्राम के लिए जा रहे अपने पुत्र को दी। कार्तिकेयन ने अपने अस्त्र शूल को पूर्वी छोर पर स्थापित कर दैत्यों से सुरक्षा आवरण देने को कहा। फिर हुए संग्राम में दानव मकरन का शिव की तलवार से सिर कलम कर दिया। भाई के वध से क्रोधित असुर मलयन ने अपनी मायावी शक्तियों का उपयोग किया लेकिन मुरुगन ने उसका भी संहार कर दिया। दैत्यों से युद्ध जीतने के बाद भगवान मुरुगन ने भगवान शिव का तिरुकदम्बनाथर शिवलिंग स्थापित कर मंदिर बनाया।

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