यम को मिला भोलेनाथ का आशीर्वाद
केंद्रशासित प्रदेश पुदुचेरी के धर्मपुरम में याळमूरीनाथर मंदिर है। कारैकाल जिले के धर्मपुरम स्थित यह अतिप्राचीन शिवालय यमराज पर भगवान शिव की...

चेन्नई।केंद्रशासित प्रदेश पुदुचेरी के धर्मपुरम में याळमूरीनाथर मंदिर है। कारैकाल जिले के धर्मपुरम स्थित यह अतिप्राचीन शिवालय यमराज पर भगवान शिव की कृपा दृष्टि की वजह से श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र है। शैव संतों द्वारा उपासित २७४ शिवालयों में से एक याळमूरीनाथर मंदिर में भगवान शिव के सभी उत्सव हर्षोल्लास के साथ मनाए जाते हैं।
पौराणिक कथा
मंदिर के भगवान की कथा उनके अनन्य भक्त नीलकंठ याळपान नायनार से जुड़ी है। वे याळपान वादक थे। नीलकंठ दम्पती शैव संत तिरुज्ञानसंबंदर के साथ उनकी तीर्थयात्रा में शामिल हो गए। नीलकंठ को अपनी विद्या पर गर्व हो गया था। भगवान शंकर ने उसकी परीक्षा ली। यहां पहुंचने पर तिरुज्ञानसंबंदर ने भक्ति पाठ शुरू किया लेकिन लाख कोशिश के बाद भी नीलकंठ याळपान से संगीत नहीं निकाल पाए।
निराश नीलकंठ वाद्ययंत्र तोडक़र ईहलीला समाप्त करने का निर्णय किया। तब भगवान प्रकट हुए और नीलकंठ से याळपान लेकर बजाया और नृत्य भी किया। इस प्रसंग की वजह से वे याळपान नाथर कहलाए। अपनी सुधामय आवाज की वजह से देवी को अमृतवल्ली तायार नाम मिला।
एक अन्य जातक कथा के अनुसार तिरुकडय़ूर में शिवलिंग से आलिंगन किए मार्कण्डेय ऋषि के प्राण हरण की वजह से यमराज को भगवान शिव ने दण्डित किया था और जीवन हरण का उनका कार्य छीन लिया था। नतीजतन पर भूलोक में मृत्यु होना बंद हो गई और भूमि देवी का बोझ बढऩे लगा। उनके आग्रह पर भगवान शिव ने यम से उनकी तपस्या करने को कहा। यमराज इस क्षेत्र में आए और एक कुआं खोदकर भगवान शंकर की आराधना की। प्रसन्न होकर भगवान ने उनको आशीर्वाद दिया कि सही समय पर यम को उनकी सभी शक्तियां वापस मिल जाएंगी।
इतिहास और संरचना
यह मंदिर कावेरी नदी तट के दक्षिणी छोर पर स्थित ५१वां शिवालय है। मंदिर का गोपुरम तीन मंजिला है। इस गोपुरम से निकली चारदीवारी के भीतर ही गर्भगृह और अन्य सन्निधियां हैं। गर्भगृह में यळमूरीनाथर का शिवलिंग है जो स्वयंभू है। मां पार्वती की तेनअमृतवल्ली तायार की मूर्ति प्रतिष्ठित है। मंदिर का मूल वृक्ष केले का पेड़ है। मंदिर के जलकुण्ड का नाम ब्रह्मतीर्थम है। इस मंदिर पर शैव संत तिरुज्ञानसंबंदर के भक्ति काव्य प्राप्त है। भगवान लिंगोद्भव, ब्रह्मा, विश्वनाथ, महाविष्णु, गणेश और दक्षिणामूर्ति की मूर्तियां भी मंदिर में प्रतिष्ठित है।
विशेष आकर्षण
याळ का आशय संगीत वाद्य यंत्र से है जो वीणा सरीखा होता है। भगवान शंकर ने जब इसे यहां बजाया तो इसके मधुमय संगीत में भगवान दक्षिणामूर्ति डूब गए और आगे की ओर झुक गए। इसी वजह से वे यहां नत मुद्रा में दर्शित हैं तथा पीतवस्त्र के बजाय भगवा वेश में है। ऐसा माना जाता है कि मृत्यु के देवता यम ने यहां तपस्या के वक्त कुआं खोदा था जो आज भी मंदिर में है।
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