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मानव को मानव बनाने का मध्यम मार्ग हैं अणुव्रत: आचार्य महाश्रमण

locationचेन्नईPublished: Nov 10, 2018 02:57:05 pm

Submitted by:

Ritesh Ranjan

-अच्छे कार्य की निष्पत्ति के लिए सपना, संकल्प और क्रियान्विती के योग को बताया जरूरी-आचार्य तुलसी के जन्म दिवस पर ससंघ ने उनके अवदानों को याद कर आत्मसात करने का लिया संकल्प

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मानव को मानव बनाने का मध्यम मार्ग हैं अणुव्रत: आचार्य महाश्रमण

चेन्नई. आदमी के भीतर प्रज्ञा की चेतना का जागरण या सुन्दर कल्पना शक्ति का होना एक चरण हैं। दूसरा चरण हैं – वह कल्पना या प्रज्ञा से आये विचार एक संकल्प रूप ले लेना। जब तक हमारी कल्पना, संकल्प का रूप नहीं ले लेती, तब तक उसका साकार होना कठिन हो सकता हैं। तो कल्पना पैदा हो और कल्पना संकल्प का रूप धारण करें, फिर वह संकल्प साकार होने की अवस्था में आये, वह कार्यान्वित हो, क्रियान्विती हो। सपना, संकल्प और क्रियान्विती इन तीनों का योग होता हैं, तो कार्य सम्पन्न हो सकता हैं, निष्पत्ति सामने आ सकती हैं। उपरोक्त विचार माधावरम स्थित जैन तेरापंथ नगर के महाश्रमण समवसरण में अणुव्रत दिवस के रूप में आचार्य श्री तुलसी के 105वें जन्मदिवस के अवसर पर धर्मसभा को संबोधित करते हुए कहे। आचार्य महाश्रमण ने आगे कहा कि आज से 104 वर्ष पूर्व लाडनूं की दूसरी पट्टी में, खटेड़ वंश में बालक तुलसी का जन्म हुआ। आचार्य तुलसी जब तेरापंथ धर्मसंघ के सम्राट, अनुशास्ता बने, तब से पूर्व में सामान्य रूप में, बाद में व्यवस्थित, आज के दिन को मनाया जाने लगा। आचार्य ने आगे कहा कि एक दिन आचार्य श्री तुलसी ने कहा कि मैं तो अपने जन्मदिन के दिन साधना, जप आदि करता था, बाद में यह कार्यक्रम, उपक्रम के रूप में मनाया जाने लगा। आचार्य तुलसी के आचार्य कार्यकाल में अनेक महत्वपूर्ण कार्य सम्पादित हुए। आचार्य तुलसी में चेतना की विशेष निर्मलता, ज्ञानावरणीय कर्म का विशेष क्षयोपक्षम था। उन्होंने ज्ञान की चेतना थी, समझने की चेतना थी और बात को प्रस्तुत करने की चेतना थी। आचार्य ने आगे कहा कि आचार्य तुलसी ने अणुव्रत आन्दोलन की शुरुआत की। अणुव्रत मध्यम मार्ग हैं, मानव को मानव बनाने का। अणुव्रत दिवस के रूप में आज का दिन आत्म शक्ति और अणुव्रत की शक्ति नियोजन का दिन हैं। आचार्य तुलसी ने अणुव्रत के प्रचार प्रसार में अपनी शक्ति, श्रम का सम्यक नियोजन कर दक्षिण भारत की यात्रा पर भी आए, चेन्नई में पच्चास वर्ष पूर्व चातुर्मास भी किया। यह उनका भाग्य था, पुरुषार्थ था, कि अणुव्रत जन जन के ग्रहण शक्ति में शामिल हो गया और तेरापंथ का भी भाग्य था, कि आचार्य तुलसी जैसे आचार्य मिले। आज से ठीक चार वर्ष पूर्व दिल्ली से 09 नवम्बर 2014 को अहिंसा यात्रा के रूप में हम यात्रायित हुए। अहिंसा यात्रा भी अणुव्रत का प्राण हैं। सद्भावना, नैतिकता और नशामुक्ति अणुव्रत के प्राण हैं, जीवन के त्राण हैं। अणुव्रत अनेक जागतिक समस्याओं का समाधान हैं। आज ही के दिन 38 वर्ष पूर्व आचार्य तुलसी द्वारा समण श्रेणी का जन्म हुआ। समण श्रेणी ने प्रगति की हैं, कहीं पगडंडी से, कही मध्यम गली से, तो कहीं राजमार्ग से भी गति की हैं। गति करने वाले में संकल्प हो और गति कराने वाले में भी संकल्प हो, मनोबल भी हो, कांटों की चुभन झेलनी की भी क्षमता हो, कांटों की चुभन से बचने के लिए अच्छे पदत्राण की पहने हुए हो, तो आदमी कहीं पहुंच सकता हैं। समण श्रेणी की गति – मति हुई हैं। समण श्रेणी भारत से बाहर और अन्दर भी काम करती हैं, सेवा दे रही हैं। जैन विश्व भारती संस्थान में भी शिक्षण सेवाएं दे रही हैं। साधु – साध्वियों की सेवा, परिचर्या, समणियों की सेवा, परिचर्या के साथ, श्रावकों की सार संभाल भी कर रही हैं। सेवा एक ऐसा तत्व हैं कि सेवा में व्यक्ति को नहीं, अपितु संघ को देखना चाहिए। व्यक्ति की प्रकृति को गौण करके सेवा करे, कि हमें तो संघ की सेवा करनी हैं। सेवा में प्रकृति पर ध्यान नहीं देकर, संस्कृति पर ध्यान देना चाहिए। जहां भी सेवा की अपेक्षा हो, हमें अहोभाव से सेवा में लगकर, सामने वाले को चित्त समाधि प्रदान करने में सहयोगी बनना चाहिए।
साध्वी कनकप्रभा ने कहा कि आज का दिन त्रिआयामी हैं। आचार्य तुलसी का जन्मदिवस, समण श्रेणी जन्मदिन और अणुव्रत दिवस, ये तीन आयाम जिसके साथ जुड़ जाते हैं, वह दिन सुबुद्ध हो जाता हैं। आचार्य तुलसी नैसर्गिक व्यक्तित्व साथ लेकर आये, प्रकृति ने भी सब कुछ दिया, जिसमें विकास हो सकता हैं। वे उत्तम व्यक्तित्व थे, गुरुकृपा से और निखार आया। 16 वर्ष की आयु में साधुओं का प्रशिक्षण का दायित्व और 22 वर्ष में संघ का दायित्व संभाला। समाज और धर्मसंघ के विकास का चित्र बनाया, उसमें एक था साध्वियों के शिक्षण का साध्वी और समणी वर्ग ने जो संघीय विकास किया है, गुरुदेव तुलसी का ही पुरूषार्थ हैं। दीक्षा के पहले शिक्षा के लिए परमार्थिक शिक्षण संस्था की स्थापना की। वे महान प्रवचनकार, संगीतकार, साहित्यकार थे, साहित्यकारों के सृष्टा थे।
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