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कर्मों का फल ही जाता है साथ

locationचेन्नईPublished: Sep 20, 2018 11:35:39 am

Submitted by:

Ritesh Ranjan

आदमी को यह सोचने का प्रयास करना चाहिए कि धन, संपत्ति, भौतिक सुख-सुविधाएं सब यहीं रह जाएंगी। मृत्यु के पश्चात् आदमी कोई भी परिग्रह लेकर नहीं जाता। उसके साथ जाता है तो उसके द्वारा किए हुए कर्मों का फल।

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कर्मों का फल ही जाता है साथ

चेन्नई. माधवरम में जैन तेरापंथ नगर स्थित महाश्रमण सभागार में आचार्य महाश्रमण ने कहा बारह देवलोकों में चौथा देवलोक माहेन्द्र देवलोक होता है। इसमें केवल देवता ही होते हैं। देवलोक में जाने वाले प्राणी मानो कोई विशेष धर्म-साधना करने वाले होते हैं। इस देवलोक में उत्पन्न होने वाली आत्मा का सबसे जघन्य आयुष्य दो सागरोपम का होता है। इसमें पैदा होने वाला कोई विशेष साधना करने वाला हो सकता है।
आदमी को यह सोचने का प्रयास करना चाहिए कि धन, संपत्ति, भौतिक सुख-सुविधाएं सब यहीं रह जाएंगी। मृत्यु के पश्चात् आदमी कोई भी परिग्रह लेकर नहीं जाता। उसके साथ जाता है तो उसके द्वारा किए हुए कर्मों का फल। उसके साथ आगे केवल उसका धर्म ही जाता है। आदमी को अपने धर्म के टिफिन को तैयार रखने का प्रयास करना चाहिए। आदमी को समय रहते धर्म की कमाई करने का प्रयास करना चाहिए। इसके लिए उसे ध्यान, साधना और स्वाध्याय आदि के माध्यम से धर्मार्जन करने की कोशिश करनी चाहिए। कोई मनुष्य हिंसा, चोरी, झूठ, मारकाट, लूट, हत्या आदि में लिप्त रहता है, दूसरों को सताता है और प्राणियों की हत्या करता है वह मरकर नरक गति में पैदा होता है। जो आदमी जीवन में न अधर्म करता है और न ही धर्म करता है। हिंसा, चोरी, झूठ और मारपीट तो नहीं करता, किन्तु ध्यान, स्वाध्याय, जप आदि धार्मिक कार्य भी नहीं करता तो मरकर वापस मनुष्य की गति को प्राप्त कर लेता है। जो आदमी अपने जीवन में धर्म को स्थान दे, उसके जीवन में धार्मिकता रहे, लोगों को चित्त समाधि और शांति प्रदान करने वाला हो तो वह मरकर मनुष्य से भी ऊंची गति अर्थात देवलोक में पैदा हो सकता है।
आदमी को तपस्या में निदान नहीं करना चाहिए। निदान से तपस्या की तेजस्विता मंद पड़ सकती है। हमेशा स्वर्ग में जाने की लालसा नहीं बल्कि आत्मा के मोक्ष की कामना करने का प्रयास करना चाहिए। धर्माराधना और साधना करने वाला व्यक्ति चौथे देवलोक को प्राप्त कर सकता है। प्रवचन के पश्चात् आचार्य ने ‘मुनिपत के व्याख्यान’ को भी आगे बढ़ाया और लोगों को अनेक कथानकों के माध्यम से अपने जीवन को अच्छा बनाने की प्रेरणा भी प्रदान की। मोमासर से आए सुखराज सेठिया ने भी विचार व्यक्त किए। साथ ही वहां के अन्य श्रद्धालुओं ने गीतिका प्रस्तुत की।

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