scriptसुखी जीवन के लिए सही प्रयास जरूरी | The right effort is essential for a happy life | Patrika News

सुखी जीवन के लिए सही प्रयास जरूरी

locationचेन्नईPublished: Oct 15, 2018 12:53:24 pm

Submitted by:

Ritesh Ranjan

उपप्रवर्तक गौतममुनि ने रविवार को कहा प्रत्येक आत्मा स्वतंत्र और अपने विचारों के अनुरूप प्रवर्तन करने वाला होता है।

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सुखी जीवन के लिए सही प्रयास जरूरी

चेन्नई. साहुकारपेट जैन भवन में विराजित उपप्रवर्तक गौतममुनि ने रविवार को कहा प्रत्येक आत्मा स्वतंत्र और अपने विचारों के अनुरूप प्रवर्तन करने वाला होता है। संसार का हर प्राणी आनंद और सुख चाहता है, दुख की कोई इच्छा नहीं करता। सुख को पाने के लिए मनुष्य अपने बुद्घि अनुसार प्रयत्न भी करता है। जीवन में शांति और आनंद प्राप्त करने की कोशिश करता है। लेकिन सही जगह प्रयास नहीं करने की वजह से कहीं ना कहीं असफल हो ही जाता है। उन्होंने कहा कि चोर भी सुखी बनने की भावना से ही चोरी जैसे कार्य करता है। जीवन में कोई भी मनुष्य खुद को दुखी करने के लिए कोई भी कार्य करने का प्रयास नहीं करता है। लेकिन इतना सब कुछ होने के बावजूद मनुष्य दुखी हो जाता है। उन्होंने कहा कि अगर लाख कोशिश के बाद भी दुख आ रहा है तो समझो कार्य सही रूप से नहीं किया जा रहा है। सुखी जीवन बनाने के लिए सही जगह प्रयास करने की जरूरत है। ज्ञानी कहते है कि जिस सुख के अंदर दुख बसते है वह सुख भी दुख के बराबर होता है। जिस शिखर पर चढ़ कर वापस फिर से गिरना पड़े, तो उस शिखर पर चढऩे का कोई महत्व नहीं है। सागरमुनि ने कहा कि खुद की आत्मा को जानने वाला पूरे लोक के स्वरूप को जान लेता है। जो मनुष्य जीवन के अंधकार को जान लेता है उसके जीवन में प्रकाश आ जाता है। उन्होंने कहा कि मानव का भविष्य उसके वर्तमान पर निर्भर करता है। इस पर विचार करने की जरूरत है क्योंकि वर्तमान गया तो सब गया। उन्होंने कहा कि मनुष्य चाहे तो अपने अच्छे आचरण से आत्मा के अंधकार को दूर कर सकता है। विनयमुनि ने मंगलपाठ सुनाया। इस मौके पर संघ के अध्यक्ष आनंदमल छल्लाणी सहित अन्य पदाधिकारी उपस्थित थे। संचालन मंत्री मंगलचंद खारीवाल ने किया। इससे पहले संघ द्वारा सांप-सीढ़ी प्रतियोगिता भी कराई गई। इस प्रतियोगिता में 18 टीमों ने भाग लिया। कार्यक्रम के अंत में प्रतियोगिता के विजेताओं को पुरस्कार देकर सम्मानित किया गया।
कर्मों के अनुरूप मिलता है सुख-दुख

चेन्नई. ताम्बरम में विराजित साध्वी धर्मलता ने कहा संसार में प्रत्येक प्राणी अपने कर्मों के अनुसार ही सुख और दुख भोगता है। कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जो सुकाल में भी दुष्काल का दुख भोगते हैं। कुछ ऐसे होते हैं जो अकाल में भी सभी तरह से संपन्न होते हैं। दुष्काल के दुख के ताप का अनुभव नहीं हो पाता है।
उन्होंने कहा यह शरीर धर्म साधना के लिए प्राप्त हुआ है। पानी जिस प्रकार मछली के लिए प्राण है, वैसे ही धर्म मनुष्य का प्राण है। समय, शक्ति और समझ ये तीनों प्राण धर्माराधना के लिए जरूरी है। यह धर्म शाश्वत है। जो दुर्गति में गिरती हुई आत्मा को बचाए वही धर्म है। जो अहिंसा, करुणा, दया से युक्त है वही धर्म है। आज के युग में हर व्यक्ति सफल और लोकप्रिय होना चाहता है। लोकप्रियता दो प्रकार से होती है कुख्यात और विख्यात। प्रसिद्धि भी दो प्रकार की होती है स्थायी और दीर्घकालीन। स्थायी प्रसिद्धि के लिए स्वभाव उदार होना चाहिए एवं मुख पर प्रसन्नता व मुस्कान होनी चाहिए।
साध्वी सुप्रतिभा ने कहा सामायिक समभाव की साधना है। भगवान महावीर ने भी समत्व साधना, आरधना पर बल दिया है। साधु-संतों का आजीवन सामायिक का संकल्प होता है। श्रावकों को भी प्रतिदिन एक सामायिक का नियम होना जरूरी है।
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