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परिस्थिति पराधीन होती है, मन:स्थिति स्वाधीन

locationचेन्नईPublished: Oct 08, 2018 02:37:24 am

साहुकारपेट स्थित राजेंद्र भवन में विराजित मुनि संयमरत्न विजय व भुवनरत्न विजय के सान्निध्य में रविवारीय युवा क्रांति शिविर में ‘कोई मुझे…

The situation is under consideration, the mind is independent

The situation is under consideration, the mind is independent

चेन्नई।साहुकारपेट स्थित राजेंद्र भवन में विराजित मुनि संयमरत्न विजय व भुवनरत्न विजय के सान्निध्य में रविवारीय युवा क्रांति शिविर में ‘कोई मुझे तोड़ नहीं सकता, मैं हर चीज से लड़ सकता हूं’ विषय पर प्रवचन देते हुए कहा किसी की तरक्की को देखकर हम उससे नफरत कर सकते हैं, उसकी मजाक उड़ा सकते हैं, किंतु उसे तोड़ नहीं सकते। हम दूसरों को तोड़ते हैं, लेकिन खुद को नहीं जोड़ते, क्योंकि हम अंदर से अधूरे हैं।

हमारी सच्ची ताकत किसी की उम्मीद या आत्मविश्वास को तोडऩे में नहीं, अपितु उसकी हिम्मत बनने में है। गिरकर उठना और उठकर चलना, यही क्रम है संसार का, कर्मवीर को फर्क नहीं पड़ता, किसी जीत या हार का।

इस दुनिया में आए हैं तो कुछ करके दिखाओ, कुछ बनकी दिखाओ, अपना नाम इस दुनिया में छोडक़र दिखाओ। बंद द्वार से वापस लौटने से पूर्व हमें उसे धक्का देकर खोलने की कोशिश करनी चाहिए, क्या पता द्वार के उस ओर सांकल भी न हो। दु:खों के प्रति हमारा व्यवहार नकारात्मक है तो तुच्छ दु:ख भी हमें परेशान कर देंगे और हमारा व्यवहार यदि सकारात्मक है तो भयंकर दु:ख भी हमारे मन की स्वस्थता को खंडित नहीं कर सकता।

परिस्थिति पराधीन होती है जबकि मन:स्थिति स्वाधीन होती है। इच्छानुसार परिस्थिति किसी को नहीं मिलती, किंतु इच्छानुसार मन:स्थिति सबको उपलब्ध हो सकती है। शांत सागर ने आज तक किसी भी कुशल नाविक को जन्म नहीं दिया है, क्योंकि अनुकूल परिस्थिति में साहस बाहर नहीं आता, प्रतिकूल परिस्थिति में ही साहस जगता है। पुष्पों को कांटों से, गेहूं को कंकर से और नदी को कीचड़ से मुक्त करने में हम एक बार तो सफलता प्राप्त कर सकते हैं, किंतु असफलताओं और प्रतिकूलताओं से मुक्त रहकर कभी भी सफल नहीं हो सकते।

जैसे रीढ़ की हड्डी टूटने से हमारी शारीरिक स्वस्थता नहीं रहती, वैसे ही मानसिक स्वस्थता के नष्ट होते ही जीवन की शक्ति टूट जाती है। दु:ख की असली ताकत दु:ख में नहीं, दु:ख का विरोध करने में है। दु:ख के स्वीकार भाव में हमें टन भर जितना दु:ख कण भर जितना लगता है और दु:ख के इन्कार भाव में कण भर जितना दु:ख भी टन भर जितना लगता है। दु:ख की कल्पना करते करते हम राई का पहाड़ और तिल का ताड़ बना देते हैं। श्री राजेन्द्रसूरि जैन पाठशाला द्वारा सामूहिक क्षमापना का कार्यक्रम हुआ जिसमें प्रतिभाशाली बच्चों का सम्मान करके प्रोत्साहित किया गया।

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