हाईकोर्ट की मुख्य न्यायाधीश इंदिरा बनर्जी ने जहां अध्यक्ष द्वारा विधायकों की सदस्यता रद्द करने के फैसले को बहाल रखा, वहीं दूसरे जस्टिस सुंदर ने विधायकों की सदस्यता रद्द करने के खिलाफ फैसला सुनाया। इस फैसले से पलनीस्वामी सरकार को राहत मिल गई है। फैसला खंडित होने के बाद अब निर्णायक फैसला तीसरा जज करेगा। इस फैसले से राज्य सरकार गिरने का खतरा फिलहाल टल गया है।
गौरतलब है कि पीठ अपना फैसला पहले ही रिजर्व कर चुकी थी। फैसला आने से पहले मुख्यमंत्री एडपाडी के. पलनीस्वामी अपने निवास पर वरिष्ठ मंत्रियों के साथ बैठक करते रहे। फैसला आने की स्थिति में अलग-अलग पहलुओं पर विचार किया गया। दरअसल, अगर कोर्ट ने विधायकों की सदस्यता रद्द करने के फैसले को खारिज कर दिया होता तो सरकार को फ्लोर टेस्ट से गुजरना पड़ता, जिसमें उसके गिरने के आसार नजर आ रहे थे। इस फैसले से विधायकों की सदस्यता रद्द ही रहेगी। सरकार सुरक्षित है और कोई उपचुनाव नहीं होगा।
फैसले पर प्रतिक्रिया देते हुए टीटीवी दिनकरण ने कहा कि फैसले ने जनता विरोधी सरकार को कुछ और महीनों के लिए जिंदगी दी है। उन्होंने कहा कि एक न्यायाधीश ने स्पीकर के फैसले को गलत बताया है। उन्होंने मुख्य न्यायाधीश के फैसले पर सवाल उठाते हुए कहा कि उन्होंने एक समान मामले में पुदुचेरी और तमिलनाडु के लिए अलग फैसला कैसे दिया।
उन्होंने कहा कि तमिलनाडु के लोग इस फैसले को देख रहे हैं और इसके पीछे की सच्चाई को समझ भी रहे हैं। इसलिए वे उनके साथ खड़े हैं। बता दें कि पिछले साल 18 सितंबर को तमिलनाडु विधानसभा के स्पीकर पी. धनपाल ने 18 एआईएडीएमके विधायकों की सदस्यता रद्द कर दी थी। दरअसल, इन विधायकों ने राज्यपाल से मिलकर पलनीस्वामी सरकार में अविश्वास जाहिर किया था।
सभी विधायक शशिकला के करीबी हैं। इस पर पार्टी के मुख्य सचेतक एस. राजेंद्रन ने स्पीकर से शिकायत की थी। सदस्यता रद्द होने के बाद विधायक हाईकोर्ट चले गए थे। 20 सितंबर 2017 को हाईकोर्ट ने चुनाव आयोग को इन अयोग्य घोषित विधायकों की सीटें खाली घोषित करने से रोक दिया था। इसके बाद से ही विधायकों की सदस्यता को लेकर तमाम अटकलें लगाई जा रही थी।