scriptघोंसले में चिडिय़ा के बच्चों को सुरक्षित रखने के लिए ३५ दिनों तक अंधेरे में थे गांव के लोग | The villagers were in the dark for 35 days to keep the bird's safe in | Patrika News

घोंसले में चिडिय़ा के बच्चों को सुरक्षित रखने के लिए ३५ दिनों तक अंधेरे में थे गांव के लोग

locationचेन्नईPublished: Jul 27, 2020 08:59:22 pm

Submitted by:

Vishal Kesharwani

लेकिन इस बुरे दौर के बीच भी मानवता नहीं मरी है। जी हां मै बात कर रहा हूं तमिलनाडु के शिवगंगा जिले के पोत्ताकुड़ी गांव की।

घोंसले में चिडिय़ा के बच्चों को सुरक्षित रखने के लिए ३५ दिनों तक अंधेरे में थे गांव के लोग

घोंसले में चिडिय़ा के बच्चों को सुरक्षित रखने के लिए ३५ दिनों तक अंधेरे में थे गांव के लोग


शिवगंगा. पिछले पांच महीने से तेजी से फैल रहे कोरोना के प्रसार को रोकने को लेकर लॉकडाउन जारी है। इसके कारण लोगों का काम धंधा ठप पड़ा हुआ है जिसके परिणाम स्वरूप लोग अपने घरोंं में ही रह रहे हैं। इस दौरान अगर दिन में थोड़ी देर भी बिजली गुल होती है तो लोग परेशान हो जाते हैं और एक दो दिन तक उसे बर्दास्त करते हैं और उसके बाद प्रदर्शन करना शुरू कर देते हैं। लोगों को अपने से फुरसत ही नहीं है तो दूसरों की सहायता क्या करेंगे। महामारी ने हर वर्ग के लोगों की स्थिति बुरी कर दी है। लेकिन इस बुरे दौर के बीच भी मानवता नहीं मरी है। जी हां मै बात कर रहा हूं तमिलनाडु के शिवगंगा जिले के पोत्ताकुड़ी गांव की। जहां पर लोगों ने इंसान के लिए नहीं बल्कि पक्षी के बच्चों को जिंदा रखने के लिए एक और दो दिन नहीं बल्कि 35 दिन तक बिजली बंद करके अपना जीवन बसर किया।

 

 

-यह गांव 35 दिनों से अंधेरे में है 

यह गांव 35 दिनों से अंधेरे में है और इसके पीछे का कारण सामान्य तौर पर बिजली कटना या ट्रांसफार्मर जलना नहीं है, जो देश के कई गांव में होता है और कई महीनों तक गांव अंधेरे में डूबा रहता है। इसके पीछे का जो नेक काम है उसे जानने के बाद सभी गांव के लोगों की सराहना कर रहे हैं। गांव की एक स्ट्रीट लाइट्स एक महीने से अधिक समय से बंद है, क्योंकि भारतीय रॉबिन नामक पक्षी ने गांव के मुख्य स्विचबोर्ड पर अपने अंडे दिए थे। पक्षी और उसके बच्चे की जान बचाने के लिए गांव के सभी लोगों ने 35 दिनों तक अंधेरे में रहने का फैसला लिया था। स्ट्रीट लाइट्स को बंद करने का विचार 20 वर्षीय करुप्पुराजा नामक कॉलेज छात्र के दिमाग में आया था। गांव का सामान्य स्विचबोर्ड उसके घर के पास है और उसने देखा था कि एक पक्षी ने वहां घोंसला बनाया है। करुप्पुराजा ने बताया कि जब लॉकडाउन शुरू हुआ तो मैंने एक पक्षी को फूस और पत्तियों से बॉक्स को भरते देखा, जिसमें तीन छोटे हरे नीले अंडे थे और उन पर धब्बे बने हुए थे। जिसके बाद मैने गांव के लोगों को इसमें शामिल करने का फैसला किया।

एक सामान्य वाट्सएप ग्रुप पर मैने पक्षी के बारे में लोगों को सूचित किया।

 

एक सामान्य वाट्सएप ग्रुप पर मैने पक्षी के बारे में लोगों को सूचित किया। जिसके बाद गांव के सदस्यों ने पक्षी के बच्चों की सुरक्षा में अपनी मदद देने का आश्वासन दिया। ग्रुप के लोगों ने गांव के बाकी लोगों को इसके बारे में जानकारी दी। इस पहल में गांव के सौ लोगों के साथ गांव पंचायत की अध्यक्ष एच. कालीश्वरी भी सहयोग के लिए आगे आईं। शुरूआत में गांव के कुछ लोगों ने इसका जमकर विरोध भी किया, लेकिन बाद में मानवता के नाते सभी एकजुट हो गए। इस दौरान प्रत्येक दिन कुछ लोग इस चिडिय़ा के बच्चों को देखने आते थे और धीरे धीरे उसके बच्चे बड़े हुए और उनके पंच आ गए। जब उनके पंख आए और वे उड़ गए तो स्विचबोर्ड को साफ कर गांव में फिर से बिजली शुरू की गई।

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