कई विद्यार्थी गलत कदम उठाकर अपनी जिंदगी बर्बाद कर लेते हैं। उन्होंने विद्यार्थियों को सलाह दी कि सफलता-असफलता तो जीवन में मिलती ही है इससे घबराएं नहीं। परीक्षा के दबाव से बाहर निकलने के बाद किसी भी परीक्षार्थी के लिए सबसे बड़ी चिंता का विषय उसका परिणाम होता है। खास तौर पर यह चिंता और अधिक बढ़ जाती है जब परिणाम बोर्ड परीक्षा से संबंधित है। क्योंकि उम्र के लिहाज से इस समय परीक्षार्थी की उम्र परिपक्व नहीं रहती है। दरअसल अधिकांश छात्र 14 वर्ष से लेकर 18 वर्ष की अवस्था में दसवीं एवं बारहवीं की बोर्ड परीक्षा में बैठते हैं। मनोविज्ञान के अनुसार इस उम्र को किशोरावस्था कहते हैं जिसमें बच्चे आवेश एवं भावावेश में आकर कुछ ऐसे निर्णय ले लेते हैं जो घर वालों के लिए जीवन भर का दर्द बन जाता है। परामर्शदाताओं का कहना है कि छात्र प्राप्तांक को लेकर परेशान न हों।
बच्चों को यही सलाह है कि वे आराम से रहें। परीक्षा परिणाम आने के बाद विद्यार्थी अगली कक्षा की तैयारी में जुट जाते हैं। कई विद्यार्थी कालेज में प्रवेश की तैयारी करते हैं। तो कई को विषय चयन को लेकर मशक्कत करनी पड़ती है। हर कोई प्रतिष्ठित कालेज में प्रवेश पाने की जुगत बिठाता है। शिक्षकों, अभिभावकों एव विशेषज्ञों से परामर्श लेने का क्रम शुरू हो जाता है।