चेन्नई

धर्म का उपयोग तकरार के नहीं प्यार के लिए करें

राष्ट्रसंत चन्द्रप्रभ ने कहा कि धर्म इंसानियत की दहलीज पर प्रेम और मोहब्बत का जलता हुआ चिराग है।

चेन्नईJan 15, 2018 / 07:09 pm

Sanjay Kumar Sharma

use religion for love and peace not for violence

वेलूर. राष्ट्रसंत चन्द्रप्रभ ने कहा कि धर्म इंसानियत की दहलीज पर प्रेम और मोहब्बत का जलता हुआ चिराग है। इस चिराग का उपयोग आगजनी के लिए नहीं, सबके जीवन को रोशन करने के लिए कीजिये। जैसे सूरज की किरणें अपनी छाया बनाने के लिए नहीं, अपितु जीवन को रोशन करने के लिए होती हैं वैसे ही धर्म के सिद्धान्तों का उपयोग तकरार के लिए नहीं, प्यार के लिए कीजिये। याद रखें, राम-कृष्ण, महावीर-बुद्ध, जीसस-मोहम्मद आदि महापुरुष धर्म के उपवन में खिले हुए विभिन्न फूल हैं। इनके नाम पर लड़कर इन्हें मानवता के लिए कांटे न बनाइये। अंगुलियों में ताकत तभी तक है जब वे एक साथ हों। धर्म के नाम पर हम विगत पच्चीस सौ वर्षों में खूब लड़ चुके हैं और आपस में दूरियां बढ़ा चुके हैं।
धर्म के नाम पर बढ़ाई दूरियां
पच्चीस साल तक धर्म के नाम पर एक दूजे के निकट आने का प्रयास कीजिये, आप पृथ्वी ग्रह का कायाकल्प करने में सफल हो जायेंगे। संतप्रवर सोमवार को आंबूर के जैन भवन में आयोजित कार्यक्रम में श्रद्धालुओं को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि कृपया एक बार प्रयास अवश्य कीजिये, गली-गली, ठौर-ठौर, हर नुक्कड़ पर प्रेम के मंदिर , प्यार के गिरजे और मोहब्बत की मस्जिदों का निर्माण कीजिये। इनके नाम पर कभी झगड़े नहीं हो पाएंगे अपितु मानवता का कल्याण ही होगा। धर्म के नाम पर हमने बेवजह दूरियां बढ़ा दी हैं। किसी गली से ताजिया नहीं गुजर सकता और किसी गली से गणेश की प्रतिमा। पर दोनों ही गलियों से नगर पालिका का कचरे से भरा हुआ ट्रेक्टर तो गुजर रहा है ना।
पापों से बचने के लिए करें धर्म का उपयोग
जरा कबूतर को देखिये कितना भोला-भाला सीधा पंछी है। कभी मंदिर के शिखर पर गुटर गूं करता है तो कभी मस्जिद की मीनार पर। वह दोनों ही जगह मस्त रहता है। क्या हम भी कबूतर सा भोलापन ला पाएंगे। उन्होंने कहा कि धर्म का उपयोग पापों को धोने के लिए नहीं अपितु पापों से बचने के लिए कीजिए। धर्म न तो स्वर्ग पाने के लिए हो, न ही नरक से बचने के लिए। धर्म जीवन को बदलने के लिए हो। कुछ लोग धर्म में भी धंधा करने की सोच रखते हैं। उत्तम पुरुष वे होते हैं जो धंधे में भी धर्म का विवेक रखते हैं। उन्होंने कहा कि केवल यज्ञ, हवन, पूजा-पाठ और सामायिक ही धर्म के चरण न हों अपितु अपने जीवन को इस तरह जिएं कि चलना-फिरना, उठना-बैठना, खाना-पीना, धंधा-व्यवसाय भी धर्ममय हो जाए। उन्होंने कहा कि क्रोध में प्रेम, लोभ में संतोष, अहंकार में सरलता और विलासिता में संयम की सोच रखिये। यही तो धर्म का आचरण है।
बड़ा रखें धर्म का कैनवास
धर्म के नाम पर अपने कैनवास को सदा बड़ा रखिये। याद रखें जितना बड़ा कैनवास होगा आप उतने बड़े चित्र उकेर पाएंगे। इंसान होकर इंसान के काम आने का प्रयास कीजिये। देव-पुरुष वही होता है जो औरों के हितों के लिए अपने हितों का त्याग करता है। अगर आप धार्मिक हैं तो किसी भी कार्य को करने से पहले देखिये कि हमसे किसी का अहित तो नहीं हो रहा। इससे पूर्व राष्ट्र-संत ललितप्रभ सागर महाराज, संत चन्द्रप्रभ महाराज और डॉ. मुनिश्री शांतिप्रिय सागर महाराज के जैन भवन पहुंचने पर समाज के श्रद्धालुओं द्वारा स्वागत किया गया। कार्यक्रम के संयोजक लिखमीचंद सिंघवी परिवार और विमलचंद मूथा परिवार को गुरुजनों ने साहित्य देकर सम्मानित किया। प्रवचन में अशोक चंद सिंघवी, मनोज मूथा, आनंद सिंघवी, पदम सिंघवी, पारस पिरगल, निर्मला मूथा, अर्चना मूथा आदि अनेक श्रावक-श्राविकाएं उपस्थित थे।
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