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जो मिला है उसका सदुपयोग करें

locationचेन्नईPublished: Aug 03, 2018 01:31:45 pm

Submitted by:

PURUSHOTTAM REDDY

दु.:खों का कारण मानव की स्वयं की सोच है। जो मिला है उसी में प्रसन्न रहना सीखें व उसका सदुपयोग करें। आर्त और रौद्र ध्यान छूटेगा तो ही धर्मध्यान शुरू होगा और मंजिल प्राप्त होगी।

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चेन्नई. पुरुषवाक्कम स्थित एएमकेएम में विराजित उपाध्याय प्रवर प्रवीणऋषि ने कहा आहार में संयम रखें। इससे स्वस्थ जीवन जी सकेंगे।
परमात्मा ने जीवन को चलाने के लिए छह पर्याप्ति बताए हैं जो मैं आहार के लिए पुद्गल ग्रहण करता उसी से मेरा शरीर, भाषा,मन सभी चलते हैं।
पहला सूत्र है आहार, जिसके कारण शरीर का पोषण हो न कि शरीर परेशान हो जाए। यह आपको ही तय करना है कि आपके शरीर के लिए क्या जरूरी है। आपका शरीर ही आपका गुरु बन सकता है।
दूसरा सूत्र है शरीर। इससे हम जितना अधिक काम लेंगे व परिश्रम करेंगे, इसकी क्षमता बढ़ेगी। इसे स्वस्थ, सशक्त और समर्थ बनाना है तो इसका पूर्ण उपयोग करना होगा।
तीसरा सूत्र है उपाधीश यानी बोझ। अपने मस्तिष्क पर हम व्यर्थ के विचारों का दबाव बनाए रखते हैं और व्यर्थ ही इस भार को ढोते रहते हैं। कोई काम हो जाने के बाद भी उसे नहीं छोडऩा ही उपाधि कहलाता है। हमें जम्बूस्वामी के चरित्र से प्रेरणा लेनी चाहिए कि अपने देव, गुरु, धर्म के प्रति आस्था, विश्वास और दृढ़ता रखें। यदि ऐसी दृढ़ता हमारे रिश्तों में आ जाए तो संसार के समस्त पारिवारिक झगड़े और क्लेश स्वत: शान्त हो जाएंगे। रिश्तों को समझने के लिए उन्हें गहराई से जीना पड़ता है। प्रभु के अनुसार जो यह विवेक करता है और जानता है वही मुनि, ज्ञानी, साधक और संत कहलाता है।
दु.:खों का कारण मानव की स्वयं की सोच है। जो मिला है उसी में प्रसन्न रहना सीखें व उसका सदुपयोग करें। आर्त और रौद्र ध्यान छूटेगा तो ही धर्मध्यान शुरू होगा और मंजिल प्राप्त होगी।
मुनि तीर्थेशऋषि ने कहा तपस्या से अनन्तानुबंध भोगी व्यक्ति भी मुक्त होता है। नारकी के जीव हजारों वर्ष कष्टों को सहन करते हैं और भूखे भी रहते हैं लेकिन यह कष्ट सहना तपस्या नहीं है। सम्यक विधि और सम्यक साधना से किया हुआ अल्प तप ही तप कहलाता है और वही अनेक भव के पापों को नष्ट करने में सक्षम है। गुरु कहते हैं कि तपस्या भी पूर्व तैयारी के साथ करेंगे तो तप करने वाले को कोई विपत्ति नहीं आती। तप एक ऐसी ज्योति है जो स्वयं तपस्वी को प्रकाशमान कर दूसरों को भी प्रकाशित करती है। जैसे-जैसे तप बढ़ता है तपस्वी कर्मों का क्षय करता जाता है और तपस्वी की चेतना भी ऊध्र्वगामी होती जाती है। इस चातुर्मास के समय का सदुपयोग कर तपस्या का संबल अवश्य लें और अपने जीवन को जप, तप और ध्यान के द्वारा त्रिवेणी संगम बनाएं।

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