१६ जून को जिला सचिवों की बैठक के बाद पार्टी प्रवक्ता डी. जयकुमार ने पत्रकारों से कहा था कि एकल नेतृत्व को लेकर वरिष्ठ नेताओं ने राय रखी है। इस पर किसी भी तरह का फैसला हाईकमान द्वारा किया जाएगा। इस बीच न केवल पोस्टर अभियान छिड़ा बल्कि दोनों नेताओं ने समर्थकों से अलग-अलग बैठकें भी कीं।
बदलते घटनाक्रम के बीच ओपीएस ने अचानक संवाददाता सम्मेलन बुलाते हुए सधे अंदाज में ईपीएस और उनके समर्थकों को अल्टीमेटम दिया कि २३ जून को होने वाली महापरिषद की बैठक में सबकुछ ठीक-ठाक हो इसकी वे ईश्वर से प्रार्थना करते हैं।
ईपीएस से वार्ता को तैयार
एकल नेतृत्व का मसला कहां से उपजा कैसे आया इसके प्रति अनभिज्ञता व्यक्त करते हुए पन्नीरसेल्वम ने कहा कि दोहरा नेतृत्व सही काम कर रहा है और यही जारी रहना चाहिए। एकल नेतृत्व के बारे में ईपीएस को अपनी राय स्पष्ट करनी चाहिए। बैठक में उन्होंने इस बारे में कुछ नहीं कहा था। वे इस मसले पर ईपीएस से बात करने को तैयार हैं। दोनों को मिलकर यह पता लगाना होगा कि किसने यह मसला उछाला है और उसकी निन्दा करनी होगी।
महासचिव पद का चुनाव
महासचिव पद को लेकर उनकी प्रतिक्रिया थी इसका केवल चुनाव ही हो सकता है। उनकी अनुमति के बिना यह प्रक्रिया आगे नहीं बढ़ सकती। वे जयललिता के विश्वासपात्र रहे हैं। महासचिव पद का चुनाव किया जाना जयललिता के साथ विश्वासघात की तरह रहेगा। वीके शशिकला को अस्थाई रूप से पार्टी के मार्गदर्शन के लिए उस पद पर बिठाया गया था। राज्य में विपक्षी दल के रूप में अन्नाद्रमुक की स्थिति पर उनका जवाब था कि विधानसभा चुनाव के नतीजों से जनता ने स्पष्ट कर दिया है कि राज्य की प्रतिपक्षी पार्टी कौन है?
पन्नीरसेल्वम ने सधे अंदाज में कहा कि उन्होंने समन्वयक पद से हटाने का कोई दबाव नहीं है। उनको पार्टी से किनारे नहीं किया जा सकता। पद से हटाने का किसी को अधिकार है तो वे पार्टी के कार्यकर्ता हैं। वे नहीं चाहते हैं कि पार्टी टूटे। इसलिए हमेशा शांत रहे और कोई मुद्दों को नजरंदाज भी किया। एकल नेतृत्व के पेचीदा विषय से कार्यकर्ताओं को आशंकित और भ्रमित नहीं किया जाना चाहिए।