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chennai water crisis : खाना दुबारा मिलेगा पानी नहीं!

government hospital भी अछूते नहीं water crisis से : बाहर से मुंहमांगा पैसा चुकाकर पानी खरीदते हैं अस्पताल में आने वाले लोग

चेन्नईJul 06, 2019 / 06:22 pm

MAGAN DARMOLA

chennai water crisis : खाना दुबारा मिलेगा पानी नहीं!

चेन्नई. महानगर में जल संकट से कोई अछूता नहीं है। यहां तक कि महानगर के प्रमुख सरकारी अस्पताल भी पानी की कमी से जूझ रहे हैं। राजीव गांधी जनरल अस्पताल, स्टेनली अस्पताल, किलपॉक मेडिकल कॉलेज और एगमोर चिल्ड्रन अस्पताल आदि की हालत यह है कि इनमें भर्ती मरीजों के साथ आने वाले परिजनों को अस्पताल के बाहर महंगी दर पर बिकने वाले पानी के कैन खरीदने पड़ रहे हैं। इतना ही नहीं स्वास्थ्यकर्मियों और चिकित्सकों को भी जल संकट से जूझना पड़ रहा है। यहां गौरतलब है कि इन सभी अस्पतालों में अममून वहीं लोग इलाज कराने आते हैं जो आर्थिक रूप से कमजोर हैं और निजी महंगे चिकित्सालयों में इलाज कराने में अक्षम हैं।

मिली जानकारी के अनुसार राजीव गांधी जनरल अस्पताल में पानी की घोर कमी है जिसके कारण अस्पताल के कई वार्डों के शौचालयों के ताला जड़ दिया गया है। यही हालत कमोबेस अन्य अस्पतालों की भी है। इन सभी अस्पतालों की भी दिनचर्या वाटर टैंकर पर ही निर्भर हो गई है। एक रोगी ने अपना नाम नहीं छापने की शर्त पर बताया कि कई स्वास्थ्यकर्मी ऐसे हंै जो अस्पताल में उपलब्ध पानी पहले अपने रिश्तेदारों या उन लोगों को मुहैया करवाते हैं जिनसे उसे कुछ आमदनी मिलती है जबकि जिन यात्रियों की सैटिंग नहीं होती उनको बाहर से पानी खरीदकर लाना पड़ता है।

स्टेनली अस्पताल के सर्जरी विभाग के बाहर बैठी विमला बताती है कि उसका पति पिछले एक सप्ताह से अस्पताल में भर्ती है। यहां बाथरूम में उपयोग करने के लिए भी पानी का इंतजाम वह खुद करती है क्योंकि अस्पताल में पानी बमुश्किल ही मिल पाता है। इसी अस्पताल के कई कर्मचारियों ने बताया कि अस्पताल में पानी जरूरत के अनुसार नहीं मिल पाता। ऐसे में हम लोग बाथरूम में तो पानी मुहैया कराते हैं लेकिन यदि लोग पीने के लिए पानी बाजार से खरीदकर लाते हैं तो इसमें गलत क्या है?

जनरल अस्पताल के कई मरीजों का आरोप था कि अस्पताल में प्रतिदिन टैंकर से पानी तो आता है लेकिन वह पानी हम लोगों को पैसे लेकर भी नहीं दिया जाता, जबकि अम्मा कैंटीन में प्रति बोतल १० रुपए खरीदना हमारे लिए बहुत मंहगा है क्योंकि हमारी हैसियत इतनी नहीं है कि हम दिनभर में पांच बोतल पानी खरीदकर ला सकें।

एक मरीज के रिश्तेदार संथानम ने बताया कि रातभर काम में लेने के लिए १० बोतल पानी खरीदना पड़ता है और वह भी कम पड़ जाता है। यदि अस्पताल प्रशासन उनको प्रति केन २० से तीस रूपए में भी उपलब्ध करवा दे तो उनको खलेगा नहीं। संतानम का कहना था कि उसकी पत्नी महिला वार्ड में भर्ती है जहां उसका जाना वर्जित है जबकि उसकी देखरेख के लिए कोई महिला नहीं है।

ऐसे ही एक मजदूर गुरुनाथन का कहना था कि हम लोग आर्थिक रूप से बेहद कमजोर हैं इसीलिए सरकारी अस्पताल में चिकित्सा कराने आए हैं। यहां चिकित्सा और दवाइयां मुफ्त में मिल जाती है लेकिन खाने और पानी में बहुत खर्चा हो रहा है।
हालांकि स्वाथ्यकर्मियों का कहना है कि हम लोग मरीजों और स्वास्थ्यकर्मियों के लिए ड्रम में पानी भरकर रखते हैं लेकिन मरीज अत्यधिक पानी का इस्तेमाल करते हैं ऐसे में कई बार नल से पानी आना बंद हो जाता है। ऐसे में मरीजों के साथ ही स्वास्थ्यकर्मियों को भी जल संकट से जूझना पड़ता है। उनका कहना था कि इस अस्पताल के नल से पानी वैसे तो कम ही आता है लेकिन जो पानी आता है वह पीने लायक नहीं रहता।

एक अनुमान के अनुसार सरकारी चिकित्सालय में भर्ती मरीजों के परिजनों का प्रतिदिन दो सौ से भी अधिक रुपए पीने के पानी पर ही खर्च हो जाते हंै जबकि भोजन के लिए भी उसे अक्सर बाहर से व्यवस्था करनी पड़ती है। अस्पताल में जो भोजन मिलता है वह स्वादहीन होने के कारण न उसे मरीज खाना चाहता है और न ही उनके साथ आने वाले सहयोगी।

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