नलिनी को निजी रूप से जिरह पेश करने की अनुमति क्यों नहीं दी जा सकती : हाईकोर्ट
चेन्नईPublished: Jun 12, 2019 05:52:10 pm
– सरकार से पूछा सवाल
नलिनी को निजी रूप से जिरह पेश करने की अनुमति क्यों नहीं दी जा सकती : हाईकोर्ट
चेन्नई. मद्रास उच्च न्यायालय ने मंगलवार को तमिलनाडु सरकार को निर्देश दिया कि वह बताए कि राजीव गांधी हत्याकांड की सजायाफ्ता नलिनी श्रीहरन को उनकी छह महीने की अवकाश संबंधी याचिका पर जिरह करने की अनुमति क्यों नहीं दी जा सकती। नलिनी ने अपनी पुत्री के विवाह में शामिल होने के लिए छह महीने की अवकाश की याचिका लगाई है।
न्यायाधीश एम. एम. सुंदरेश और जज एम. निर्मल कुमार की न्यायिक पीठ ने राज्य सरकार द्वारा जताई गई सुरक्षा उपायों की चिंता के तर्क को खारिज करते हुए अंतरिम निर्देश जारी किया हम उसको खुद के केस की पैरवी करने के अधिकार से वंचित नहीं कर सकते हैं।
हाईकोर्ट ने कहा कि अगर नलिनी को पेश करने को लेकर यदि कोई विशेष उपाय करने की जरूरत पड़ती है तो की जाए। न्यायिक पीठ ने सरकारी वकील से कहा कि वे अधिकृत प्राधिकारियों से सुरक्षा पहलू तथा याची को कोर्ट में एस्कॉर्ट सुविधा देने संबंधी निर्देश प्राप्त कर कोर्ट को सूचित करे।
नलिनी जो २७ सालों से जेल में है ने हाईकोर्ट से अर्जी लगाई है कि वेलूर की विशेष महिला जेल के एसपी को निर्देश दिए जाए कि उसे कोर्ट में अपने केस की पैरवी करने के लिए पेश किया जाए।
नलिनी के अनुसार आजीवन कैदी को अधिकार है कि वह दो साल में एक बार एक महीने का अवकाश ले सकता है। चूंकि उसने ऐसा अवकाश गत २७ सालों में कभी नहीं लिया है लिहाजा जेल प्राधिकारियों से गुहार लगाई है कि उसे पुत्री के विवाह की व्यवस्था के लिए ६ महीने का अवकाश दिया जाए।
नलिनी के फरवरी महीने में की गई इस फरियाद के बाद २२ मार्च को उसकी मां ने भी ऐसी ही एक अर्जी लगाई। जेल प्रशासन ने दोनों अर्जियां ठुकरा दीं। उसके बाद नलिनी ने कोर्ट की शरण ली। नलिनी को मूल रूप में मौत की सजा सुनाई गई थी। २४ अप्रेल २००० को राज्य सरकार ने उसकी सजा को आजीवन कारावास में बदल दिया।
नलिनी ने याचिका में कहा कि उसकी मौत की सजा की माफी के बाद ३७०० उम्रकैदियों को आजाद किया गया है। राज्य की १९९४ की समयपूर्व रिहाई की नीति के तहत उनकी अर्जी को ९ सितम्बर २०१८ को राज्य के मंत्रिमंडल ने स्वीकार कर लिया था और राज्यपाल से उनके समेत ७ कैदियों की रिहाई की सिफारिश की गई थी। यह निर्णय हुए छह महीने बीत चुके हैं लेकिन इसे अभी तक लागू नहीं किया गया है।