script14 साल जेल काटने के बाद डेढ़ साल की बेटी की हत्या के मामले में मां हुई बरी | woman held guilty for killing her daughter get justice after 14 years | Patrika News

14 साल जेल काटने के बाद डेढ़ साल की बेटी की हत्या के मामले में मां हुई बरी

locationचेन्नईPublished: Aug 27, 2021 06:33:08 pm

Submitted by:

P S VIJAY RAGHAVAN

– सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर मद्रास हाईकोर्ट ने फिर से की थी सुनवाई
– निचली अदालत की आजीवन कैद की सजा निरस्त

Madras High Court on Elephant Protection

Madras High Court on Elephant Protection

मदुरै. डेढ़ साल की बेटी की हत्या की दोषी ठहराई गई मां के कलेजे में आखिरकार उस वक्त ठंडक पड़ी जब मद्रास उच्च न्यायालय ने उसे आरोपमुक्त करते हुए निचली अदालत की सजा को खारिज कर दिया। ट्रायल कोर्ट ने उसे आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी।

मामले के अनुसार तिरुचि निवासी सेल्वराज पत्नी शकुंतला (49) और दो बेटियों के साथ बसे थे। उस वक्त छोटी बेटी डेढ़ साल की थी। पति-पत्नी के बीच अक्सर झगड़े होते रहते थे। शकुंतला २००२ में सेल्वराज से नाराज होकर मायके चली गई। अगले दिन उसकी छोटी बेटी का शव कुंए से बरामद हुआ। पुलिस ने शकुंतला को बेटी के कत्ल और लाश को कुंए में फेंकने के आरोप में गिरफ्तार कर लिया था।

मामले की सुनवाई तिरुचि जिला न्यायालय ने की और शकुंतला को आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी। शकुंतला की अपील २०१४ में मद्रास उच्च न्यायालय ने ठुकरा दी थी। वादी ने फिर सुप्रीम कोर्ट की शरण ली।

शीर्ष न्यायालय का निर्देश
शकुंतला को जब सुप्रीम कोर्ट से जमानत मिली तब तक वह १४ साल जेल में काट चुकी थी। आला अदालत ने हाईकोर्ट को उनके खिलाफ मामले पर पुनर्विचार करने का आदेश दिया। इस मामले की सुनवाई जस्टिस भारतीदासन और निशा बानू ने की।

विरोधाभासी साक्ष्य
शकुंतला के वकील ने दलील दी कि उनके मुवक्किल के खिलाफ ऐसा कोई साक्ष्य नहीं है जो साबित करे कि उसने अपने डेढ़ साल की बेटी को कुंए में फेंक कर मार डाला था। गवाहों के पेश बयान भी विरोधाभासी हैं। पोस्टमार्टम रिपोर्ट के मुताबिक बच्चे की आंतों और फेफड़ों में पानी नहीं था। जो यह इशारा है कि बच्ची की मौत शव को कुंए में फेंकने से पहले हो गई थी। इसके अलावा बड़ी बात यह है कि शकुंतला बिना बेटियों के मायके गई थी। इसलिए सजा रद्द की जानी चाहिए और उन्हें रिहा किया जाना चाहिए।

न्यायिक पीठ का निर्णय
न्यायाधीशों ने तब फैसला सुनाया कि इस मामले में छोटी-छोटी घटनाओं की भी ठीक से जांच नहीं की गई। गवाहों द्वारा दी गई जानकारी के आधार पर याचिकाकर्ता को दोषी ठहरा दिया गया था। लिहाजा शकुंतला को सुनाई गई आजीवन कारावास की सजा निरस्त की जाती है।
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