बात यहां सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकॉनमी ( सीएमआईई ) के अप्रैल के दूसरे सप्ताह के रोजगार रिपोर्ट की है। रिपोर्ट में भारत में श्रम भागीदारी दर (एलपीआर) ३९.५ प्रतिशत है जो आलोच्य अवधि फरवरी २०२२ के ३९.९ से भी कमतर है। यह वह महीना है जहां देश में महामारी नहीं के बराबर थी। ऐसे में एलपीआर का घटना अर्थ विश्लेषकों को चुभ रहा है।
यह है एलपीआर
एलपीआर का आशय कार्य योग्य आबादी की गिनती से है। किसी देश का एलपीआर इस बात का द्योतक है कि वहां कितने लोग कार्य कर रहे हैं अथवा तत्परता से नौकरी की तलाश कर रहे हैं। इसका कम होना यह बताता है कि शेष आबादी को रोजगार नहीं है अथवा वे उद्यत नहीं हो रहे। एलपीआर का इस तरह घटना ऐसे लोगों की बढ़ी संख्या को दर्शाता है जो नौकरी तलाशने से निराश हो चुके हैं।
रोजगार को लेकर निराशा
बकौल श्रम विशेषज्ञ, रोजगार प्राप्ति को लेकर निराश बड़ा तबका शिक्षित हैं। सीएमआईई के सर्वेक्षण में शामिल आबादी 15 से 64 आयु-वर्ग की थी। इसमें शिक्षा पूरी कर चुके और 15 से 29 आयु वर्ग के लोग अधिक जुड़ रहे हैं। ऐसे युवा जिनको साल दर साल नौकरी नहीं मिलती तो वे अपने प्रयास रोक देते हैं एलपीआर में स्थाई रूप से शामिल हो जाते हैं। हालांकि एलपीआर को लेकर सरकार का नजरिया यह है कि कार्य योग्य आबादी का बड़ा हिस्सा शिक्षा ग्रहण में लगा है और नौकरी नहीं तलाश रहा।
एलपीआर के फैक्ट फाइल
- मार्च में श्रम बल में ३८ लाख लोगों की कमी
- यह आंकड़ा जुलाई २०२१ के बाद का सबसे कम
- नौकरी हासिल करने में संघर्ष होने पर लोग नहीं लेते दिलचस्पी
- प्रतिवर्ष ५० लाख नए युवा तलाशते हैं नौकरी
- महिला श्रम शक्ति में गिरावट और पुरुषों की तुलना में कम अवसर
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कम्फर्ट जोन से बाहर आना होगा
देश में अवसरों की कमी नहीं है। युवा आबादी का नौकरी तलाशने से मोहभंग होना सही प्रतीत नहीं होता। शायद वे आरामपसंद होने लगे हैं। उनको कम्फर्ट जोन से बाहर आना होगा और जॉब को लेकर उनकी जो सोच है उसे बदलना होगा। वे स्वयं का 'आइडलÓ नहीं रख सकते 'स्ट्रगलÓ तो करना ही होगा। महिलाओं को अवसर में कमी शायद यह इशारा है कि नियोक्ता फिलहाल यह मानते हैं कि मौजूदा परिप्रेक्ष्य में उनको दिए गए मौके से वे न्याय नहीं कर पाएं।
- भवानी शिवम, श्रम मामलों की विशेषज्ञ (समर्थना कार्पाेरेट सर्विसेज)
पांच साल में ६ फीसदी घटी एलपीआर
'सरकार लंबे समय से इस बात को नकार रही है कि देश में रोजगार की समस्या बड़ी हो चुकी है। 2017 से 2022 के बीच कुल श्रम सहभागी दर यानी एलपीआर, 46 फीसदी से गिरकर 40 फीसदी पर पहुंच गई है।Ó
- सीएमआईई के प्रबंध निदेशक महेश व्यास