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युगों को जीने का तरीका सिखाने वाले कहलाते हैं युग पुरुष

locationचेन्नईPublished: Aug 27, 2018 11:55:11 am

Submitted by:

Ritesh Ranjan

-मरुधर केसरी मिश्रीमल व शेरू राजस्थान रूपमुनि की जन्म जयंती मनाई
साध्वी कुमुदलता ने दोनों संतों के प्रति अपने भाव व्यक्त करते हुए कहा कि भारत की यह धरती महापुरुषों की धरती है। मरुधर केसरी और रूपमुनि दोनों महापुरुष शांति के दूत थे। इन महान संतों की गौरव गाथा शब्दों में बयान नहीं की जा सकती। भक्तों के रोम-रोम में बसे हुए हैं।

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युगों को जीने का तरीका सिखाने वाले कहलाते हैं युग पुरुष

चेन्नई. गुरु दिवाकर कमला वर्षावास समिति, चेन्नई के तत्वावधान में अयनावरम स्थित जैन दादावाड़ी में उपाध्याय प्रवर प्रवीणऋषि, उपप्रवर्तक विनयमुनि ‘वागीश’ और यहां चातुर्मासार्थ विराजित साध्वी कुमुदलता व अन्य साध्वीवृन्द के सान्निध्य में सैकड़ों गुरुभक्तों की उपस्थिति में मरुधर केसरी मिश्रीमल एवं राष्ट्र संत रूपमुनि की जन्म जयंती मनाई गई। दोनों महापुरुषों को साधुवृन्द व साध्वीवृन्द के अलावा कई गुरु भक्तों ने अपनी भावांजलि अर्पित की।
उपाध्याय प्रवीणऋषि ने दोनों संतों का जीवन परिचय देते हुए कहा कि जो युगों को जीने का तरीका सिखाते हैं वे युग पुरुष कहलाते हैं और मरुधर केसरी मिश्रीमल व शेरे राजस्थान रूपमुनि भी युग पुरुष थे। उन्होंने कहा जिस प्रकार सूर्य खुद को तपकर संसार को रोशनी देकर प्रकाशित करता है उसी प्रकार मरुधर केसरी ने भी अपने तप और साधना के बल पर मानव कल्याण का प्रकाश फैलाया। इसीलिए वे श्रमणसूर्य कहलाए। मरुधर केसरी में कोयले को हीरा, कंकर को शक्कर और कच्चे रिश्ते को पक्के में बदलने की शक्ति थी। मिश्रीमल के मंगलपाठ को सुनकर श्रावक धन्य हो जाता था और जीवन में हमेशा मंगल बारिश होती थी। उनका संदेश था कि अमंगल सोचने वाले का मंगल सोचो, प्रहार करने वाले को प्यार करो, निंदा करने वाले का सम्मान करो। उन्होंने संघ को मां का वात्सल्य और पिता का अनुशासन दिया। उन्होंने संघ बना, संघ व्यवस्था दी और हमेशा जोडऩे का कार्य किया। इसलिए उनके बनाए इस संघ को अक्षुण रखें।
प्रवीणऋषि ने रूपमुनि के साथ बिताए अपने कई प्रसंगों को याद करते हुए कहा कि मरुधर केसरी मिश्रीमल के जाने के बाद भक्तों को कभी नहीं लगा कि वे अकेले पड़ गए हैं क्योंकि रूपमुनि की छांव भक्तों के साथ थी। अब रूपमुनि के बाद खालीपन महसूस हो रहा है। रूपमुनि में वह शक्ति थी वे बिना सुने ही दुखियारे को दुख को समझ लेते थे और उस पर संकट आने से पहले ही उसका निराकरण कर देते थे।
उपप्रवर्तक विनयमुनि ने कहा कि जिनशासन में दोनों महापुरुषों के योगदान को हमेशा याद रखा जाएगा।
साध्वी कुमुदलता ने दोनों संतों के प्रति अपने भाव व्यक्त करते हुए कहा कि भारत की यह धरती महापुरुषों की धरती है। मरुधर केसरी और रूपमुनि दोनों महापुरुष शांति के दूत थे। इन महान संतों की गौरव गाथा शब्दों में बयान नहीं की जा सकती। भक्तों के रोम-रोम में बसे हुए हैं। संत द्वय ने जीव दया के प्रति कई कार्य किए जिनके तहत कई गौशाला, बकराशाला, कबूतर शालाओं का निर्माण करावाया गया। मानव कल्याण के लिए अनेकों संस्थाएं स्थापित करवाई। धर्म संघ और जिन शासन को उन्होंने बहुत कुछ दिया। ऐसे महापुरुषों के जीवन से हमें कुछ न कुछ अपने जीवन में उतारने की कोशिश करनी चाहिए। साध्वी महाप्रज्ञा, पदमकीर्ति व राजकीर्ति ने गीतिका के माध्यम से दोनों संतों के प्रति अपने भाव व्यक्त किए। कई भक्तों के अलावा साहुकारपेट जैन संघ, एएमकेएम संघ की ओर से भी संत द्वय के प्रति भावांजलि अर्पित की गई। कार्यक्रम का संचालन महामंत्री हस्तीमल खटोड़ ने किया।
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