जिले में वर्ष 2019 में कुपोषित बच्चों की संख्या 26483 थी, वहीं अतिकुपोषित बच्चों की संख्या 2564 थी, लेकिन कोरोना संक्रमण काल में देखभाल और इलाज न होने के कारण जिले में अतिकुपोषित बच्चों की संख्या बढ़कर 2782 हो गई है, यानि इस साल अतिक ुपोषित बच्चों की संख्या में 218 का इजाफा हुआ है। वहीं कुपोषित बच्चों की संख्या इस साल 25046 है। कम वजन वाले कुपोषित बच्चों की संख्या में 1437 की कमी आई है।
पूरे देश में प्रति हजार जन्म पर जहां 30 शिशुओं की जान जाती है तो वहीं राज्य के हिसाब से यह आंकड़ा 35 है, लेकिन छतरपुर जिले में प्रति हजार जन्म पर 79 शिशुओं की मौत हो जाती है। जन्म के बाद भी बच्चों की जिंदगी के लिहाज से छतरपुर जिला कम खतरनाक नहीं है। बाल मृत्यु दर के आंकड़ों पर नजर डालें तो पूरे देश में प्रति हजार जन्म के बाद 40 बच्चे अपनी जान गवां देते हैं तो वहीं राज्य के हिसाब से यह आंकड़ा 47 है लेकिन छतरपुर जिले में प्रति हजार जन्म पर 63 बच्चों की मौत हो रही है।
जान बचाने के लिए शुरु किया पूर्णा अभियान
जिले में कुपोषण से बच्चों की मौत को कम करने के लिए आकांक्षी जिला के अंतर्गत पूर्णा अभियान शुरु किया गया है। जिसके तहत अभियान चलाकर गांव-गांव में कैंप और डोर-टू-डोर संपर्क के जरिए जिले की 15575 गर्भवती महिलाओं की जांच की गई। जिसमें से हाई रिस्क वाली 536 गर्र्भवती महिलाओं को आवश्यक दवाइंया व पोषण आहार का वितरण किया गया है। पूर्णा अभियान के जरिए माताओं में पोषण की कमी को दूर किया जा रहा है, ताकि जन्म लेने वाले बच्चे में कुपोषण न हो। अक्टूबर माह में आशा व आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं के जरिए चिंहित कुपोषित बच्चों व उनकी माताओं को आयरन, सुक्रोज की दवाइयों का वितरण किया गया। अभियान अभी भी जारी है, लेकिन अभिभावकों को अपने अतिकुपोषित बच्चों को एनआरसीट सेंटरों तक पहुंचाने में प्रशासन सफल नहीं हो पा रहा है।