प्राइवेट वाहन में सब डीएफओ की नेम प्लेट, ड्राइवर सरकारी :
एसडीओ परमार के ठाठ डीएफओ से भी बढ़कर है। वे डीएमओ सहाय के वाहन की तुलना में ज्यादा लग्जरी वाहन उपयोग करते हैं। एसडीओ की पोस्ट होने के बाद भी वे अपने वाहन में सब डीएफओ की प्लेट लगाए हैं। जबकि वन विभाग में इस नाम की कोई पोस्ट ही नहीं है। इसके अलावा वे अपना निजी वाहन अनुबंध पर प्राइवेट तौर पर विभाग में लगाए हैं। नियमानुसार अनुबंध वाले प्राइवेट वाहन का ड्राइवर भी प्राइवेट होता है, लेकिन एसडीओ परमार सरकारी ड्राइवर धरमदास यादव की सेवाएं ले रहे हैँ। डीएफओ सहाय का कहना था कि इस तरह की कोई भी पोस्ट नहीं है। वे एसडीओ हैं, नेम प्लेट गलत लिखे हैं। उनसे जवाब मांगा जाएगा।
सरकारी खर्च से कराया ऑफिस और घर का रिनोवेशन :
वन विभाग में एसडीओ स्तर के अधिकारियों के लिए जो सरकारी आवास आवंटित किए गए हैं उनमें सबसे हाइटेक-सुंदर और सुविधा संपन्न बंगला एसडीओ परमार का है। ग्रीन नेट से ढके इस बंगले की सजावट पर ही लाखों रुपए खर्च किए गए हैं। बंगले के रिनोवेशन पर ५ से ७ लाख रुपए खर्च किए गए हैं। यह पूरा खर्च विभागीय स्तर पर हुआ है। इसी तरह ऑफिस के सौंदर्यीकरण पर भी ३ से ४ लाख रुपए खर्च किया गया है। नियमानुसार एसडीओपी स्तर के अधिकारी को कार्यालय में एसी लगाने की पात्रता नहीं है, लेकिन एसडीओ परमार के हाइटेक ऑफिस में एसी लगा है और इस पर आने वाले बिजली बिल का खर्च विभाग के खाते से जाता है। इस बारे में जब डीएफओ अनुपम सहाय से बात की गई तो वे निरुत्तर थे। उन्होंने कहा कि इस बारे में जांच कराई जाएगी। जब उनसे कहा गया कि आपके ऑफिस परिसर में ही बगल वाले कक्ष में बैठे अफसर इतना सब कर रहे हैं और आपको जानकारी नहीं तो वे निरुत्तर थे। हालांकि उन्होंने कहा कि वे इस बारे में अपने वरिष्ठ अधिकारियों को जानकारी देंगे।
मंत्रियों से बड़े हैं साहब के ठाठ, बंगले पर एक दर्जन कर्मचारी है तैनात :
एसडीओ परमार के ठाठ मंत्रियों से भी बढ़कर है। उनके बंगले पर एक दर्जन कर्मचारी सेवाएं दे रहे हैं। एसडीओ बंगले पर ७ दैनिक वेतन भोगी सुरक्षा श्रमिक काम करते हैं। इनमें दो महिलाएं पानाबाई और भुवनबाई है। इसके अलावा पांच पुरुष श्रमिक में हीरा रजक, परशुराम रैकवार, लच्छी पटेल, धरमदास यादव और बलवीर यादव शामिल है। इनमें से प्रत्येक को १२ से १५ हजार रुपए वेतन मिलता है। इसके अलावा ५ कर्मचारी और लगे हैं जिनके वेतन का भुगतान ग्राम वन समिति से किया जाता है। इनमें से कुछ कर्मचारी एसडीओ परमार के लोकनाथपुरम स्थित निर्माणाधीन बंगले की चौकीदारी करते हैं।
अधिकांश नौकरी छतरपुर जिले में ही करते आ रहे परमार :
एसडीओ परमार सन् २००० में रेंजर के रूप में छतरपुर जिले में पदस्थ हुए थे। छतरपुर, बड़ामलहरा, बक्स्वाहा, किशनगढ़ में रेंजर के रूप में पदस्थ रहे। बीच में कुछ दिनों के लिए वे २००४ में पन्ना उत्तर वन मंडल में पदस्थ रहे। प्रमोशन मिलते ही वे फिर से छतरपुर आ गए। तब से यहीं पदस्थ है। इस समय वे एसडीओ फारेस्ट हैं और उनके अनुविभाग में छतरपुर और लवकुशनगर रेंज आते हैं। हालही में उनका तबादला राज्य शासन स्तर पर किया गया था, लेकिन उनका तबादला निरस्त हो गया। जबकि परमार का तबादला छतरपुर रेंज के सभी कर्मचारियों द्वारा दिए गए सामूहिक ज्ञापन के बाद किया गया था।
डीएफओ का चैंबर और वाहन साधारण :
डीएफओ अनुपम सहाय का चैंबर उसी परिसर में है जहां डीएफओ बैठते हैं, लेकिन उनका चैंबर एक दम साधारण है। प्लेन दीवार और टेबल-कुर्सी वाले कक्ष में केवल फाइलों के ढेर लगे मिले। जबकि एसडीओ के चैंबर की हर दीवार पर महंगा डेकोरेशन है। टेबल पर फाइलों की जगह एंटिक सजावटी सामान रखे हैं। वहीं डीएफओ के पास साधारण वाहन है। जबकि एसडीओ लग्जरी वाहन रखते हैं।
अशोक चिन्ह प्रतीक का नहीं कर सकते इस्तेमाल :
भारत का प्रतीक (अशोक चिन्ह) प्रयोग का निषेध अधिनियम 2005 के अनुसार इसका उपयोग एसडीओ वन स्तर के अधिकारी किसी भी स्थिति में नहीं कर सकते हैं। गजेटियर के अनुसार राष्ट्रपति भवन, राजभवन पर अशोक चिन्ह का प्रतीक प्रदर्शित किया जा सकता है। प्रतीक भारत के राजनयिक मिशन के परिसर में भी प्रदर्शित किया जा सकता है। विदेश में और मिशनों के प्रमुख अपने निवास स्थान पर प्रतीक प्रदर्शित कर सकते हैं। प्रतीक भारत के वाणिज्य दूतावासों के कब्जे वाली इमारतों पर प्रदर्शित किया जा सकता है। विदेश में और कांउसलर पदों के प्रमुखों के निवासों पर उनकी मान्यता के देशों में प्रयोग किया जा सकता है। अधिनियम के अनुसार व्यक्तियों का कोई संघ या निकाय उनके लेटर-हेड्स, ब्रोशर, सीट, बैज, घर के झंडे पर इस प्रतीक का इस्तेमाल नहीं कर सकता है। कोई एसडीओ या डीएफओ स्तर का अधिकारी भी अशोक चिन्ह वाली सीट का या फ्लैग का इस्तेमाल नहीं कर सकते हैं।
डीएफओ बोले- नियम देखना पड़ेगा, वैसे उपयोग नहीं कर सकते हैं :
भारत के प्रतीक का उपयोग करने का अधिकारी एसडीओ को है या नहीं इस बारे में नियम देखना होगा। लेकिन मेरे अनुसार एसडीओ इसका उपयोग नहीं कर सकते हैं। दो दिन पहले ही यह मामला मेरे संज्ञान में आया है। अगर अधिकार नहीं तो कार्रवाई प्रस्तावित की जाएगी।
– अनुपम सहाय, डीएफओ छतरपुर
एसडीओ परमार के ठाठ डीएफओ से भी बढ़कर है। वे डीएमओ सहाय के वाहन की तुलना में ज्यादा लग्जरी वाहन उपयोग करते हैं। एसडीओ की पोस्ट होने के बाद भी वे अपने वाहन में सब डीएफओ की प्लेट लगाए हैं। जबकि वन विभाग में इस नाम की कोई पोस्ट ही नहीं है। इसके अलावा वे अपना निजी वाहन अनुबंध पर प्राइवेट तौर पर विभाग में लगाए हैं। नियमानुसार अनुबंध वाले प्राइवेट वाहन का ड्राइवर भी प्राइवेट होता है, लेकिन एसडीओ परमार सरकारी ड्राइवर धरमदास यादव की सेवाएं ले रहे हैँ। डीएफओ सहाय का कहना था कि इस तरह की कोई भी पोस्ट नहीं है। वे एसडीओ हैं, नेम प्लेट गलत लिखे हैं। उनसे जवाब मांगा जाएगा।
सरकारी खर्च से कराया ऑफिस और घर का रिनोवेशन :
वन विभाग में एसडीओ स्तर के अधिकारियों के लिए जो सरकारी आवास आवंटित किए गए हैं उनमें सबसे हाइटेक-सुंदर और सुविधा संपन्न बंगला एसडीओ परमार का है। ग्रीन नेट से ढके इस बंगले की सजावट पर ही लाखों रुपए खर्च किए गए हैं। बंगले के रिनोवेशन पर ५ से ७ लाख रुपए खर्च किए गए हैं। यह पूरा खर्च विभागीय स्तर पर हुआ है। इसी तरह ऑफिस के सौंदर्यीकरण पर भी ३ से ४ लाख रुपए खर्च किया गया है। नियमानुसार एसडीओपी स्तर के अधिकारी को कार्यालय में एसी लगाने की पात्रता नहीं है, लेकिन एसडीओ परमार के हाइटेक ऑफिस में एसी लगा है और इस पर आने वाले बिजली बिल का खर्च विभाग के खाते से जाता है। इस बारे में जब डीएफओ अनुपम सहाय से बात की गई तो वे निरुत्तर थे। उन्होंने कहा कि इस बारे में जांच कराई जाएगी। जब उनसे कहा गया कि आपके ऑफिस परिसर में ही बगल वाले कक्ष में बैठे अफसर इतना सब कर रहे हैं और आपको जानकारी नहीं तो वे निरुत्तर थे। हालांकि उन्होंने कहा कि वे इस बारे में अपने वरिष्ठ अधिकारियों को जानकारी देंगे।
मंत्रियों से बड़े हैं साहब के ठाठ, बंगले पर एक दर्जन कर्मचारी है तैनात :
एसडीओ परमार के ठाठ मंत्रियों से भी बढ़कर है। उनके बंगले पर एक दर्जन कर्मचारी सेवाएं दे रहे हैं। एसडीओ बंगले पर ७ दैनिक वेतन भोगी सुरक्षा श्रमिक काम करते हैं। इनमें दो महिलाएं पानाबाई और भुवनबाई है। इसके अलावा पांच पुरुष श्रमिक में हीरा रजक, परशुराम रैकवार, लच्छी पटेल, धरमदास यादव और बलवीर यादव शामिल है। इनमें से प्रत्येक को १२ से १५ हजार रुपए वेतन मिलता है। इसके अलावा ५ कर्मचारी और लगे हैं जिनके वेतन का भुगतान ग्राम वन समिति से किया जाता है। इनमें से कुछ कर्मचारी एसडीओ परमार के लोकनाथपुरम स्थित निर्माणाधीन बंगले की चौकीदारी करते हैं।
अधिकांश नौकरी छतरपुर जिले में ही करते आ रहे परमार :
एसडीओ परमार सन् २००० में रेंजर के रूप में छतरपुर जिले में पदस्थ हुए थे। छतरपुर, बड़ामलहरा, बक्स्वाहा, किशनगढ़ में रेंजर के रूप में पदस्थ रहे। बीच में कुछ दिनों के लिए वे २००४ में पन्ना उत्तर वन मंडल में पदस्थ रहे। प्रमोशन मिलते ही वे फिर से छतरपुर आ गए। तब से यहीं पदस्थ है। इस समय वे एसडीओ फारेस्ट हैं और उनके अनुविभाग में छतरपुर और लवकुशनगर रेंज आते हैं। हालही में उनका तबादला राज्य शासन स्तर पर किया गया था, लेकिन उनका तबादला निरस्त हो गया। जबकि परमार का तबादला छतरपुर रेंज के सभी कर्मचारियों द्वारा दिए गए सामूहिक ज्ञापन के बाद किया गया था।
डीएफओ का चैंबर और वाहन साधारण :
डीएफओ अनुपम सहाय का चैंबर उसी परिसर में है जहां डीएफओ बैठते हैं, लेकिन उनका चैंबर एक दम साधारण है। प्लेन दीवार और टेबल-कुर्सी वाले कक्ष में केवल फाइलों के ढेर लगे मिले। जबकि एसडीओ के चैंबर की हर दीवार पर महंगा डेकोरेशन है। टेबल पर फाइलों की जगह एंटिक सजावटी सामान रखे हैं। वहीं डीएफओ के पास साधारण वाहन है। जबकि एसडीओ लग्जरी वाहन रखते हैं।
अशोक चिन्ह प्रतीक का नहीं कर सकते इस्तेमाल :
भारत का प्रतीक (अशोक चिन्ह) प्रयोग का निषेध अधिनियम 2005 के अनुसार इसका उपयोग एसडीओ वन स्तर के अधिकारी किसी भी स्थिति में नहीं कर सकते हैं। गजेटियर के अनुसार राष्ट्रपति भवन, राजभवन पर अशोक चिन्ह का प्रतीक प्रदर्शित किया जा सकता है। प्रतीक भारत के राजनयिक मिशन के परिसर में भी प्रदर्शित किया जा सकता है। विदेश में और मिशनों के प्रमुख अपने निवास स्थान पर प्रतीक प्रदर्शित कर सकते हैं। प्रतीक भारत के वाणिज्य दूतावासों के कब्जे वाली इमारतों पर प्रदर्शित किया जा सकता है। विदेश में और कांउसलर पदों के प्रमुखों के निवासों पर उनकी मान्यता के देशों में प्रयोग किया जा सकता है। अधिनियम के अनुसार व्यक्तियों का कोई संघ या निकाय उनके लेटर-हेड्स, ब्रोशर, सीट, बैज, घर के झंडे पर इस प्रतीक का इस्तेमाल नहीं कर सकता है। कोई एसडीओ या डीएफओ स्तर का अधिकारी भी अशोक चिन्ह वाली सीट का या फ्लैग का इस्तेमाल नहीं कर सकते हैं।
डीएफओ बोले- नियम देखना पड़ेगा, वैसे उपयोग नहीं कर सकते हैं :
भारत के प्रतीक का उपयोग करने का अधिकारी एसडीओ को है या नहीं इस बारे में नियम देखना होगा। लेकिन मेरे अनुसार एसडीओ इसका उपयोग नहीं कर सकते हैं। दो दिन पहले ही यह मामला मेरे संज्ञान में आया है। अगर अधिकार नहीं तो कार्रवाई प्रस्तावित की जाएगी।
– अनुपम सहाय, डीएफओ छतरपुर
अगर नियम नहीं है तो हटा लेंगे :
अशोक चिन्ह का फ्लैग और कुर्सी ऐसे ही रख ली थी। अगर नियम नहीं है तो हटा लेेंगे। विभाग के वाहन पर लगी नेम प्लेट भी बदल लेंगे। इसमें कौन सी बड़ी बात हो गई। काम करने के लिए अनुकूल माहौल बनाने के लिए कई बार ऐसा करना पड़ता है। अगर किसी को आपत्ति है तो सब कुछ पहले जैसा कर लिया जाएगा।
– वायएस परमार, एसडीओ वन छतरपुर
अशोक चिन्ह का फ्लैग और कुर्सी ऐसे ही रख ली थी। अगर नियम नहीं है तो हटा लेेंगे। विभाग के वाहन पर लगी नेम प्लेट भी बदल लेंगे। इसमें कौन सी बड़ी बात हो गई। काम करने के लिए अनुकूल माहौल बनाने के लिए कई बार ऐसा करना पड़ता है। अगर किसी को आपत्ति है तो सब कुछ पहले जैसा कर लिया जाएगा।
– वायएस परमार, एसडीओ वन छतरपुर