छतरपुर

बड़े लड़इया महुबे वाले, इनकी मार सही न जाए

– वीर आल्हा ऊदल के पराक्रम की याद दिलाता है महोबा का ऐतिहासिक कजली मेला, बुंदेलखंड सहित देशभर के लोग होते हैं मेले में शामिल- महोबा में दूसरे दिन मनाया जाता है रक्षाबंधन का त्योहार- 83७ साल पहले दिल्ली के राजा पृथ्वीराज चौहान को हराकर, निकाली थी विजयी यात्रा, तभी से आयोजित किया जा रहा कजली महोत्सव

छतरपुरAug 17, 2019 / 01:15 pm

Unnat Pachauri

बड़े लड़इया महुबे वाले, इनकी मार सही न जाए

– उन्नत पचौरी
छतरपुर/महोबा। जिले की सीमा से जुड़े और बुंदेलखंड की वीरभूमि कहे जाने वाले महोबा में एक दिन बाद कजली महोत्सव की तैयारियां पूरी हो चुकी हैं। शुक्रवार से शुरू किया गया। जो सप्ताह तक चलेगा। यहां सदियों से रक्षाबंधन के पर्व को एक दिन बाद कजली महोत्सव के रूप में मानाने की परंपरा है। इसके पीछे बहन भाई के प्रेम और ऐतिहासिक युद्ध की कहानी है। वीरगाथा काल के सुप्रसिद्ध कवि जगनिक द्वारा रचित परमाल रासो के नायक आल्हा और ऊदल के पराक्रम से जुड़ा महोबा का ऐतिहासिक कजली मेला आज भी त्याग और बलिदान की याद दिलाता है। आल्हा और ऊदल के शौर्य, स्वाभिमान व मातृभूमि प्रेम की अनूठी मिसाल संजोए कजली मेला उत्तर भारत का सबसे पुराना मेला है। यह मेला पृथ्वीराज चौहान पर विजय दिवस के रूप में आठ सौ साल से मनाया जा रहा है। यह कजली महोत्सव एक सप्ताह तक चलेगा।
इतिहासकार शरद तिवारी दाऊ और वरिष्ठ समाजसेवी तारा पाटकार बताते हैं कि महोबा का एक अपना गौरवशाली इतिहास है। यहां रक्षाबंधन एक दिन बाद मनाने की परंपरा 1182 ईस्वी के चंदेल शासनकाल से चली आ रही है। 83७ साल पहले महोबा के चंदेल राजा परमाल के शासन से कजली मेला का जुड़ाव है। विंध्य पर्वत श्रृंखलाओं, सुरम्य सरोवरों और मोहन नैसर्गिक छटाओं से परिपूर्ण बुंदेलखंड अपनी ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और लोक साहित्य की विविधता व लोक उत्सवों को जाना जाता है। 1182 में राजा परमाल की पुत्री चंद्रावलि 1400 सखियों के साथ भुजरियों के विसर्जन के लिए कीरत सागर जा रही थीं। रास्ते में दिल्ली नरेश पृथ्वीराज चौहान के सेनापति चामुंडा राय ने आक्रमण कर दिया था। पृथ्वीराज चौहान की योजना चंद्रावलि का अपहरण कर उसका विवाह अपने बेटे सूरज सिंह से कराने और पारस पथरी, पवन बछेडा (उडऩे वाले घोड़े), नौ लखा हार हथियाने की योजना थी। यह वह दौर था जब आल्हा ऊदल को राज्य से निष्कासित कर दिया गया था और वह अपने मित्र मलखान के पास कन्नौज में रह रहे थे। रक्षाबंधन के दिन जब राजकुमारी चंद्रावल अपनी सहेलियों के साथ भुजरियां विसर्जित करने जा रही थी तभी पृथ्वीराज की सेना ने उन्हें घेर लिया। आल्हा ऊदल के न रहने से महारानी मल्हना ने अपने मुह बोले भाई अल्हा उदल को दी और तलवार ले स्वयं युद्ध में कूद पड़ी थीं। दोनों सेनाओं के बीच हुए भीषण युद्ध में राजकुमार अभई मारा गया और पृथ्वीराज सेना राजकुमारी चंद्रावल को अपने साथ ले जाने लगी। अपने राज्य के अस्तित्व व अस्मिता के संकट की खबर सुन साधु वेश-भूसा में आए वीर आल्हा ऊदल ने अपने मित्र मलखान के साथ पृथ्वीराज की सेना का डटकर मुकाबला किया। चंदेल और चौहान सेनाओं की बीच हुए युद्ध में कीरतसागर की धरती खून से लाल हो गई। युद्ध में दोनों सेनाओं के हजारों योद्धा मारे गए। राजकुमारी चंद्रावल व उनकी सहेलियां अपने भाईयों को राखी बांधने की जगह राज्य की सुरक्षा के लिए युद्ध भूमि में अपना जौहर दिखा रही थीं। इसी वजह से भुजरिया विसर्जन भी नहीं हो सका। तभी से यहां एक दिन बाद भुजरिया विसर्जित करने व रक्षाबंधन मनाने की परंपरा है। महोबा की अस्मिता से जुड़े इस युद्ध में विजय पाने के कारण ही कजली महोत्सव विजयोत्सव के रूप में मनाया जाता है। सावन माह में कजली मेला के समय गांव देहातों में लगने वाली चौपालों में आल्हा गायन सुन यहां के वीर बुंदेलों में आज भी ८३७ पहले हुई लड़ाई का जोश व जुनून ताजा हो जाता है।

जब रानी ने पृथ्वीराज को ललकारा :
5200 डोलों के बीच जब रानी मल्हना और राजकुमारी चंद्रावलि कजरियां भुजरियां कीरत सागर के तट पर विसर्जित करने जा रही थीं, तभी पृथ्वीराज चौहान की सेना ने चंद्रवलि का डोल उठा लिया था। रानी मल्हना डोले से निकलकर हाथी पर चढ़ गई और पृथ्वीराज चौहान को ललकार दिया। ललकार सुनते ही 5200 डोलों से नारियां तलवार लेकर युद्ध के लिए निकल पड़ी थीं।

कीरत सागर तट पर शुक्रवार से एक सप्ताह चलेगा मेला :
महोबा का ऐतिहासिक कजली मेला शुक्रवार से कीरत सागर के तटबंध पर लगेगा। पहले दिन कजली मेला कीरत सागर के तटबंध पर दूसरे दिन कजली मेला गोरखनाथ महाराज की तपोस्थलि गोरखगिरी व तीसरे दिन शहीद स्थल हवेली दरवाजा मैदान में लगेगा। शुक्रवार को दोपहर २ बजे शहर के हवेली दरवाजा मैदान से कीरत सागर तटबंध तक जाने वाली शोभायात्रा को जिलाधिकारी (कलेक्टर) द्वारा हरी झंडी दिखाकर रवाना करेंगे। यह शोभायात्रा शहर में भ्रमण करते हुए कीरत सागर पहुंचेगी। जहां कीरत सागर सरोवर के पानी में कजरियां व भुजरियों का विसर्जन किया जाएगा।

एक दिन बाद मनाया जाता है रक्षाबंधन का पर्व :
महोबा जिले की ऐतिहासिक गाथा का वर्णन देश विदेश में प्रसिद्ध है, 52 गढ़ जीतने वाले यहां के वीरों का साम्राज्य छीनने की चेष्टा रखने वाले दिल्ली नरेश को पराजय का सामना करना पड़ा था। रक्षाबंधन के दिन कीरत सागर तट पर दिल्ली नरेश पृथ्वीराज चौहान व वीर आल्हा उदल की दोनों सेनाओ के बीच युद्ध हुआ था। जिसके चलते प्राचीन समय से यहां दूसरे दिन कजली विसर्जन के साथ पर्व मनाने की परंपरा चली आ रही है। जबकि पूरे देश मे एक दिन पूर्व रक्षा बंधन का पर्व मनाया जाता है।
 

आल्हा उदल की वीर गाथा से जुड़ी कुछ पंक्तियां :
बड़े लड़इया महोबा वाले, जिनसे हार गई तलवार
पानीदार यहां का पानी, आग यहां के पानी में
गढ़ महुबे के आल्हा उदल, जिनकी मार सही न जाय
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